14 अप्रैल 2025 को देशभर में अंबेडकर जयंती 2025 हर्षोल्लास के साथ मनाई गई। इस अवसर पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने एक जनसभा को संबोधित करते हुए डॉ. भीमराव अंबेडकर को गहरी श्रद्धांजलि अर्पित की। उनका यह भाषण न केवल अंबेडकर के विचारों को उजागर करता है, बल्कि आधुनिक भारत में उनकी प्रासंगिकता को भी रेखांकित करता है।
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भागवत ने कहा, “डॉ. अंबेडकर केवल एक संविधान निर्माता नहीं थे, वे एक विचार थे, एक आंदोलन थे, और एक दिशा थे, जो आज भी समाज को एकता, समरसता और समानता की ओर ले जाते हैं।” उन्होंने यह भी कहा कि भारत का संविधान केवल कानूनों का दस्तावेज नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और समान अवसरों की आधारशिला है।
भागवत का यह भाषण एक संदेश की तरह था जो देशवासियों को सामाजिक समरसता और एकजुटता की राह पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। उन्होंने कहा कि जातिवाद और सामाजिक भेदभाव केवल भारत को कमज़ोर करने वाले तत्व हैं। “हमें अंबेडकर जी के दिखाए रास्ते पर चलना होगा, जिसमें सबको समान अधिकार और सम्मान मिले,” उन्होंने जोड़ा।
इस वर्ष का अंबेडकर जयंती समारोह विशेष था, क्योंकि इसमें विभिन्न सामाजिक संगठनों, युवाओं और दलित अधिकार कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया। भागवत ने कहा कि आज के युग में युवाओं को अंबेडकर की विचारधारा से जोड़ना जरूरी है, ताकि वे न केवल अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हों, बल्कि समाज के प्रति भी जिम्मेदार बनें।
उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि “सामाजिक न्याय केवल एक नारा नहीं, एक कर्तव्य है। जब तक समाज के हर वर्ग को समान अवसर नहीं मिलेगा, तब तक भारत असली विकास नहीं कर सकता।”
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सामाजिक समरसता को लेकर भागवत ने कहा कि अंबेडकर का जीवन संघर्षों से भरा था, लेकिन उन्होंने कभी हिंसा या टकराव का मार्ग नहीं अपनाया। “अंबेडकर जी ने जो कुछ भी प्राप्त किया, वह शिक्षा, संघर्ष और आत्मबल के माध्यम से था। यही हमारे लिए सबसे बड़ी प्रेरणा है।”
डॉ. अंबेडकर ने जिस भारत के संविधान की रचना की, वह आज भी विश्व के सबसे विस्तृत और लोकतांत्रिक दस्तावेजों में गिना जाता है। भागवत ने कहा कि हमें संविधान की मूल भावना को समझकर ही सामाजिक सुधार करना होगा। उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि वे दलित अधिकार, समानता, और सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों को लेकर संवेदनशील बनें।
अपने भाषण के अंत में मोहन भागवत ने कहा, “डॉ. अंबेडकर का सपना था – एक ऐसा भारत, जहां व्यक्ति को उसकी जाति, धर्म या वर्ग के आधार पर नहीं, बल्कि उसके कर्मों के आधार पर आंका जाए। आज हमें उसी सपने को साकार करने के लिए कार्य करना है।”
भीम जयंती 2025 पर उनका यह संदेश न केवल संघ की बदलती सोच को दर्शाता है, बल्कि एक व्यापक सामाजिक विमर्श को जन्म देता है, जिसमें हर वर्ग की भागीदारी सुनिश्चित हो।
देश के विभिन्न हिस्सों में अंबेडकर जयंती को लेकर विशेष कार्यक्रम, रैलियाँ, संगोष्ठियाँ और सांस्कृतिक आयोजन किए गए। युवाओं ने सोशल मीडिया के माध्यम से अंबेडकर के विचारों का प्रचार-प्रसार किया, वहीं कई जगहों पर संविधान पाठ और विचार गोष्ठियों का आयोजन किया गया।
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आज जब देश डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया और वसुधैव कुटुंबकम जैसे विचारों को आगे बढ़ा रहा है, तब अंबेडकर के सामाजिक समानता के विचार पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हैं। भागवत का यह वक्तव्य इस दिशा में एक सकारात्मक कदम माना जा सकता है।
निष्कर्षतः, अंबेडकर जयंती केवल एक श्रद्धांजलि का अवसर नहीं, बल्कि आत्मनिरीक्षण का भी दिन है। जब देश की शीर्ष संस्थाओं और नेताओं द्वारा अंबेडकर को सच्चे मन से याद किया जाता है, तो यह स्पष्ट होता है कि भारत बदल रहा है और डॉ. अंबेडकर की शिक्षाएँ अभी भी इस बदलाव का आधार हैं।