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वक़्फ़ बचाओ सम्मेलन में असदुद्दीन ओवैसी की हुंकार: “इसे क़ानूनी नहीं, सामुदायिक लड़ाई बनाइए”

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1️⃣ सम्मेलन का उद्देश्य

हैदराबाद के बर्ला विज्ञान भवन में जुटे—

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2️⃣ ओवैसी का मुख्य भाषण

“वक़्फ़ बोर्ड महज़ प्रशासनिक निकाय नहीं, यह हमारी ग़रीब‑नवाज़ इमारतों, मज़ारों, दरगाहों, मदरसों और अनाथालयों की रक्षक इकाई है। इस पर कोई ‘कॉर्पोरेट मॉडल’ थोपना मुसलमानों की सामाजिक सुरक्षा पर हमला है।”

उन्होंने तीन प्रमुख चिंताएँ गिनाईं:

  1. धारा 52 में संशोधन— वक़्फ़ संपत्ति के “अधिग्रहण” को आसान बनाना।

  2. राज्य वक़्फ़ बोर्ड शक्तियों की कटौती— निर्णय का अधिकार कलेक्टर या एसडीएम को देना।

  3. ट्रिब्यूनल प्रणाली का संदर्भ— न्यायिक अपीलों को लंबा करना, जिससे क़ब्ज़े वैध हो जाएँ।

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3️⃣ प्रस्तावित रोड‑मैप

 

कदम विवरण समय‑सीमा
1. लीगल टास्क‑फोर्स पूर्व हाईकोर्ट जजों व सीनियर एडवोकेट्स की टीम 1 महीना
2. वक़्फ़ डिजिटल मैपिंग ड्रोन/जियो‑टैग के ज़रिए देश‑भर की संपत्तियों का पोर्टल 6 महीने
3. राज्य‑स्तरीय जनसभा 14 प्रमुख शहरों में “वक़्फ़ अधिकार यात्रा” 3 महीने
4. संसद लॉबीइंग सांसदों को श्वेत‑पत्र सौंपना, संयुक्त संसदीय समिति की माँग शीतकालीन सत्र

4️⃣ महिला वक़्फ़ संरक्षण मंच

सम्मेलन में पहली बार महिला प्रतिनिधियों ने वक़्फ़ शिक्षण संस्थानों की स्थिति पर पेपर पेश किया। उन्होंने कहा कि प्रस्तावित संशोधन से महिला मदरसा छात्राओं तथा सिलाई‑केंद्रों को मिलने वाला अनुदान प्रभावित होगा। ओवैसी ने मंच से वादा किया कि “महिला नेतृत्व” को कार्यसमिति में 33 % आरक्षण दिया जाएगा।

5️⃣ विरोधी स्वर

कुछ प्रगतिशील वक्ताओं ने वक़्फ़ बोर्डों की भीतरी पारदर्शिता पर प्रश्न उठाए। जवाब में ओवैसी ने माना कि “भ्रष्टाचार और दुहरा लीज़” एक सच्चाई है, पर इसका हल अधिग्रहण नहीं बल्कि E‑ऑक्शन पारदर्शी प्लेटफ़ॉर्म है।

6️⃣ राजनीतिक संकेत

विश्लेषकों के मुताबिक AIMIM इस मुद्दे को—

7️⃣ सरकार का पक्ष

अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के अधिकारियों का तर्क है कि संशोधन से “वक़्फ़ प्रॉपर्टी का मॉडर्न मैनेजमेंट” और रुकी परिसंपत्तियों का व्यावसायिक दोहन संभव होगा। पर सम्मेलन ने इसे “सैंध लगाकर विनिवेश” करार दिया।

8️⃣ निष्कर्ष

“वक़्फ़ बचाओ सम्मेलन” ने स्पष्ट कर दिया कि मुसलमानों के लिए यह सिर्फ कानूनी लड़ाई नहीं, सांस्कृतिक अस्मिता का विषय है। असदुद्दीन ओवैसी का आक्रामक रुख केंद्र के सामने चुनौती पेश करता है—क्या सरकार बहुपक्षीय संवाद करेगी या संसद में संख्याबल के भरोसे संशोधन पारित करेगी? जवाब आने वाले सत्र में मिलेगा, लेकिन इतना तय है कि वक़्फ़ प्रोटेक्शन बनाम प्रॉपर्टी रिफॉर्म बहस अब और तेज होगी।

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