संजय सिंह का बयान: ‘संसद को जनता की आवाज़ बनने दीजिए’
संसद के आगामी सत्र को लेकर हुई सर्वदलीय बैठक में सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के नेताओं ने हिस्सा लिया। बैठक के बाद आम आदमी पार्टी के नेता और सांसद संजय सिंह ने प्रेस को संबोधित करते हुए कहा कि सरकार को संसद में विपक्ष की बात सुननी चाहिए और केवल अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।
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संजय सिंह ने कहा कि जनता से जुड़े मुद्दों जैसे महंगाई, बेरोजगारी, किसानों की समस्याएं, शिक्षा और स्वास्थ्य पर चर्चा होनी चाहिए। उनका आरोप था कि सरकार इन मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश कर रही है और संसदीय प्रक्रियाओं को एकतरफा बना रही है।
उन्होंने जोर देकर कहा, “संसद लोकतंत्र का मंदिर है, इसे मनमानी का अड्डा न बनाइए। अगर सरकार सच में जनहित चाहती है तो उसे खुलकर बहस का मंच देना होगा और विपक्ष की बातों को भी सम्मान देना होगा।”
विपक्ष की एकजुटता की अपील
संजय सिंह ने यह भी कहा कि आज देश जिन चुनौतियों से गुजर रहा है, उसमें विपक्ष की एकजुटता बेहद ज़रूरी है। उन्होंने सभी विपक्षी दलों से अपील की कि वे एक मंच पर आकर जनता की समस्याओं को मजबूती से उठाएं। उन्होंने कहा कि “जनता के मुद्दों पर सरकार को घेरना हमारा कर्तव्य है और हम इससे पीछे नहीं हटेंगे।”
संजय सिंह ने यह भी आरोप लगाया कि संसद में अक्सर विपक्ष की आवाज़ दबाने की कोशिश होती है। उन्होंने कहा कि यदि लोकतंत्र को बचाए रखना है, तो संसद में संतुलन और संवाद ज़रूरी है।
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संसद में बहस नहीं, सिर्फ बिल पास करवाने की जल्दबाज़ी
संजय सिंह ने सरकार की विधायी प्राथमिकताओं पर सवाल उठाते हुए कहा कि मौजूदा सरकार संसद में बिना बहस के बिल पास कराने की आदत डाल चुकी है। उन्होंने कहा कि “अगर कोई बिल जनता के हित में है, तो उसे पारदर्शी रूप से बहस के बाद ही पास किया जाना चाहिए।”
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि पिछली बार कई अहम बिल बिना पर्याप्त चर्चा के ही पारित कर दिए गए, जिससे जनता में असंतोष है। उन्होंने यह मांग की कि हर महत्वपूर्ण बिल पर समयबद्ध बहस सुनिश्चित की जाए और विपक्ष की राय को महत्व दिया जाए।
मीडिया को दिए स्पष्ट संकेत
प्रेस वार्ता के दौरान संजय सिंह ने यह भी कहा कि मीडिया को लोकतंत्र का प्रहरी बनकर काम करना चाहिए और सिर्फ एकतरफा खबरों के प्रचार से बचना चाहिए। उन्होंने मीडिया से अपील की कि वह संसद में उठने वाले असली मुद्दों पर फोकस करे, न कि विवादित बयानों या नाटकीय घटनाओं पर।