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Caste Census : जातीय जनगणना पर केंद्र और राज्य फिर हुए आमने-सामने

Nitish Kumar Statement : कर्नाटक के बाद बिहार जातीय जनगणना (Caste Census In Bihar) कराने वाला देश का दूसरा राज्य होगा।

By इंडिया वॉइस 

Updated Date

Bihar Caste Census : बिहार में लम्बे समय से चल रही ‘जातीय जनगणना’ (Caste Census) की मांग को देखते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) ने बड़ा ऐलान किया है। आपको बता दें कि नीतीश कुमार ने केंद्र सरकार से इतर जातीय जनगणना को लेकर अपना निर्णय ले लिया है। उन्होंने यह ऐलान किया है कि बिहार में जल्द ही राज्य सरकार जातीय जनगणना कराएगी। सिर्फ इतना ही नहीं सीएम नीतीश कुमार ने यह भी साफ़ किया कि राज्य सरकार अपने खर्च पर प्रदेश में जातीय जनगणना कराएगी। हालाँकि वहीं बीजेपी इसके पक्ष में नहीं है। साथ ही केंद्र सरकार ने भी अपना रुख साफ़ कर दिया है कि वो जातीय जनगणना के पक्ष में नहीं हैं।

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कर्नाटक के बाद जातीय जनगणना कराने वाला दूसरा राज्य होगा बिहार

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पत्रकारों को दिए अपने बयान में बताया कि प्रदेश में होने वाली जातीय जनगणना पूर्ण रूप से पारदर्शी (Transparent) तरीके से कराई जाएगी। उन्होंने कहा कि इस बात का खास ख्याल रखा जाएगा कि जनगणना में किसी भी प्रकार की कोई कमी या चुक ना हो। सीएम ने कहा कि जनगणना को लेकर तमाम सियासी दलों की सहमती बन गई है, हम जल्द ही इसको लेकर एक सर्वदलीय बैठक भी करेंगे।

सीएम ने कहा कि जनगणना को लेकर मैंने डिप्टी सीएम से भी बात कर ली है जल्द ही एक तारीख तय कर के हम इस पर सर्वदलीय बैठक बुलाएंगे। आपको बता दें कि इससे पहले कर्नाटक अपने स्तर पर प्रदेश में जातीय जनगणना करा चुका है। ऐसे में कर्नाटक के बाद बिहार जातीय जनगणना (Caste Census) कराने वाला देश का दूसरा राज्य होगा।

 

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विपक्ष में रहते हुए भाजपा ने भी उठाया था जातिगत जनगणना का मुद्दा

बात वर्ष 2010 की है जब केंद्र में कांग्रेस पार्टी की सरकार थी। उस वक्त बीजेपी विपक्षी पार्टी थी। ऐसे में उस दौरान बीजेपी के नेता (दिवंगत) गोपीनाथ मुंडे ने लोकसभा में यह बयान दिया था कि अगर देश में ओबीसी (OBC) जातियों की जनगणना नहीं कराई जाती है तो यह जातियां 10 वर्ष पीछे चली जाएंगी। लिहाजा उस वक्त ओबीसी चेहरे के नेताओं ने देश में जातीय जनगणना कराए जाने को लेकर जोर-शोर से आवाज उठाने लगे। अब जब बीजेपी सत्ता में है और मांग उठ रही है जातीय जनगणना कराए जाने की तो बीजेपी (BJP) पीछे हट रही है।

 

कब कब हुई जातीय जनगणना की मांग ?

आपको बता दें कि देश में जब अंग्रेजों का शासन हुआ करता था तब देश में लोगों को जातियों के हिसाब से गिना जाता था। बात जब जातीय जनगणना की हो रही है तो इसमें यह जानना बेहद जरुरी हो जाता है कि पहली बार जातीय जनगणना कब हुई थी। दरअसल आपको बता दें कि देश में पहली बार जातीय जनगणना सन 1881 में हुई थी। जिसमें पहली बार जातीय जनगणना के आंकड़े जारी किए गए थे। तब से हर 10 वर्ष में जातीय जनगणना होती है।

आपको बता दें कि 1931 तक की जनगणना में जातिवार आंकड़े भी जारी होते थे। लेकिन 1941 की जनगणना में जातिवार आंकड़े जुटाए तो जरुर गए थे पर उन्हें जारी नहीं किया गया था। जनगणना को पब्लिश न किए जाने के पीछे उस दौरान जनगणना कमिश्नर एम डब्ल्यू यीट्स ने बताया था कि पूरे देश में जाती आधारित टेबल तैयार नहीं किया जा सका था जिसके कारण आंकड़े पेश नहीं किए गए। आजादी के बाद से सरकार ने सिर्फ अनुसूचित जाती और अनुसूचित जनजाति की आबादी का आंकड़ा जारी करने का फैसला किया।

 

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1953 में बना ‘काका कालेकर आयोग’

हालांकि इसके बाद 1953 में नेहरू सरकार में काका कालेकर आयोग बनाया गया था। इस आयोग ने देश में पिछड़े वर्ग का हिसाब लगाया। अब इस आंकड़ों में जाति के आंकड़ों का आधार था 1931 की जातीय जनगणना। हालांकि काका कालेकर आयोग की गठित टीमों के बीच आयोग के सदस्यों में यह सहमति नहीं बन पाई कि पिछड़ेपन आधार जातिगत होना चाहिए या फिर आर्थिक।

 

मंडल आयोग 

बहरहाल अब बात करते हैं सन 1978 की जब देश में जनता पार्टी की सरकार थी और देश के प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई थे। उस वक्त मोरारजी देसाई की सरकार ने बीपी मंडल की अध्यक्षता में एक पिछड़ा वर्ग आयोग बनाया। जिसके बाद 1980 में उस आयोग ने अपना रिपोर्ट सौंपा पर तब तक जनता पार्टी की सरकार जा चुकी थी। मंडल आयोग की उस रिपोर्ट में देश की कुल आबादी में 52 % हिस्सेदारी पिछड़े वर्ग की मानी गई।

इसके बाद आयोग ने पिछड़े वर्ग के लोगों को सरकारी नौकरियां और शिक्षण संस्थानों में 27 % आरक्षण देने की सिफारिश की जिसमें 9 साल तक कुछ भी नहीं हुआ। पर वर्ष 1990 में वीपी सिंह की सरकार ने मंडल आयोग की उन सिफारिशों में से एक सिफारिश को लागू कर दिया।

इस सिफारिश में अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों के लिए सरकारी नौकरियों में सभी स्तर पर 27 % आरक्षण देने की मांग थी। आयोग की इस सिफारिश के लागू होने के बाद से देश भर में आंदोलन हुए, खूब बवाल मचे, देशभर में प्रदर्शन हुए जिसके बाद से वो मामला कोर्ट भी पहुंचा जहां सुप्रीम कोर्ट ने मंडल आयोग की सिफारिश को सही ठहरा दिया। लेकिन कोर्ट ने आरक्षण की सीमा 50 % तक सीमित कर दी।

 

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‘इंद्रा साहनी जजमेंट’ और 2006 में ‘मंडल पार्ट 2’

इसके बाद 1992 की ऐतिहासिक इंद्रा साहनी जजमेंट उसके बाद वर्ष 2006 में मंडल पार्ट 2 की मांग को लागू किया गया जिसमें सरकारी नौकरियों, सरकारी शिक्षण संस्थानों, मसलन आईआईटी, आईआईएम, मेडिकल कॉलेज में भी पिछड़े वर्गों को आरक्षण देने की मांग थी। उसे भी लागू किया गया हालांकि उस वक्त भी बवाल हुआ पर सरकार ने इस फैसले को लागू कर दिया।

 

2011 में प्रणब मुखर्जी की अगुवाई में बनी कमेटी

जातीय जनगणना को लेकर एक बार फिर 2010 में मांग उठाई गई जिसमें लालू यादव, शरद यादव, मुलायम सिंह यादव और गोपीनाथ मुंडे जैसे कई ओबीसी नेता शामिल थे। हालांकि उस वक्त कांग्रेस सरकार इस फैसले के पक्ष में नहीं थी पर उनकी मांग के आगे उन्हें झुकना पड़ा।

OBC नेताओं की मांग पर 2011 में प्रणब मुखर्जी की अगुवाई में एक कमेटी गठित की गई जिसने जातीय जनगणना के पक्ष में अपना सुझाव दिया।
उस जनगणना को नाम दिया गया था ‘सोशियो इकोनॉमिक एंड कास्ट सेंसस’। उस वक्त की मौजूदा कांग्रेस सरकार ने कुल 4800 करोड़ रुपए खर्च कर के जनगणना कराई जिसका आज तक कोई डाटा नहीं मिला।

हालांकि इसके बाद समय समय पर जातिगत जनगणना कराने की मांग होती रही है. उसी कड़ी में एक बार फिर बिहार में यह मांग तेजी से उठाई जा रही है। जिस पर मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने अपना फैसला सुना दिया है और उन्होंने यह साफ़ कर दिया है कि बिहार सरकार जल्द ही राज्य में जातिगत जनगणना कराएगी।

 

जातीय जनगणना को लेकर तेजस्वी यादव ने उठाई थी मांग

विधानसभा के शीतकालीन सत्र में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव (Tejasvi Yadav) ने मुख्यमंत्री नितीश कुमार से मिलकर राज्य में जातीय जनगणना की मांग उठाई थी। जिसके बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव को इस बात का भरोसा दिलाया था कि बिहार सरकार जल्द ही राज्य में जातीय जनगणना कराएगी। लिहाज़ा सोमवार को नीतीश कुमार के दिए बयान के बाद से अब यह साफ़ हो गया है कि राज्य में जल्द ही जातीय जनगणना काराई जाएगी।

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जनगणना में नहीं होगी कोई कमी 

जनगणना को लेकर सीएम नीतीश कुमार ने कहा कि जातीय जनगणना में सभी लोगों की राय जरुरी है। ऐसे में राज्य भर में जातीय जनगणना कैसे करानी है ? कब कारानी है ? किस माध्यम से करानी है ? इन सभी बातों पर मीटिंग में चर्चा की जाएगी। साथ ही मीटिंग में सभी दलों की सहमती के बाद इस काम को आगे बढ़ाया जाएगा ताकि जनगणना में किसी भी प्रकार की कोई कमी ना रह जाए।

 

जनगणना को लेकर प्रदेश के 10 नेता पीएम से भी कर चुके हैं मुलाकात

आपको बता दें कि राज्य में जातीय जनगणना को लेकर इस मसले पर अगस्त महीने में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव सहित बिहार के अन्य सभी दलों के नेताओं ने पीएम मोदी (PM Narendra Modi) से भी मुलाकात की थी। पीएम मोदी से मुलाकात के दौरान इन नेताओं ने 2021 में जातीय जनगणना की मांग को लेकर पीएम के साथ चर्चा की थी। फिलहाल आपको बता दें कि बिहार में केवल भाजपा (BJP) को छोड़कर लगभग सभी दल राज्य में जातीय जनगणना की मांग कर रहे हैं। हालांकि मोदी सरकार (Modi Government) जातीय जनगणना को लेकर पहले ही इनकार कर चुकी है।

 

(उज्जवल मिश्रा )

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