इस प्रथा पर सर्वप्रथम अप्रैल 1853 ईस्वी में मेवाड़ में महाराणा स्वरुप सिंह के समय में खेरवाड़ा (उदयपुर) में इसे गैर कानूनी घोषित कर दिया था
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लोहरदगा : समाज कल्याण विभाग की ओर से जिले में डायन प्रथा उन्मूलन के लिए प्रचार रथ को सोमवार को उपायुक्त दिलीप कुमार टोप्पो ने समाहरणालय परिसर से सभी प्रखंडों के लिए रवाना किया। इस प्रचार रथ के साथ एक कला दल का जत्था भी अगले सात दिन साथ में रहेगा, जहां कलाकारों द्वारा डायन प्रथा उन्मूलन के लिए लोगों को जागरूक किया जाएगा।
यह प्रचार रथ पांच अक्टूबर को भंडरा, छह अक्टूबर को कैरो, सात अक्टूबर को कुडू, आठ अक्टूबर को सेन्हा, नौ अक्टूबर को किस्को और दस अक्टूबर को पेशरार प्रखंड में मौजूद रहेगा। लोगों को डायन प्रथा उन्मूलन के प्रति जागरूक किया जायेगा।
क्या है डायन प्रथा ?
ग्रामीण औरतों पर डाकन यानी अपनी तांत्रिक शक्तियों से नन्हें शिशुओं को मारने वाली पर अंधविश्वास से उस पर आरोप लगाकर निर्दयतापूर्ण मार दिया जाता है। इस प्रथा की शिकार औरतों की संख्या थमने का नाम नहीं ले रही हैं । 16वीं शताब्दी में राजपूत रियासतों ने कानून बनाकर इस प्रथा पर रोक लगादी थी। इस प्रथा पर सर्वप्रथम अप्रैल 1853 ईस्वी में मेवाड़ में महाराणा स्वरुप सिंह के समय में खेरवाड़ा (उदयपुर) में इसे गैर कानूनी घोषित कर दिया था लेकिन लोगों के अंधविस्वास ने इस कुप्रथा को जीवित रखा। यह प्रथा मुख्य रूप से राजस्थान में देखने को मिलती थी, मगर पूJर्वी उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश के कुछ पिछड़े हुए इलाके हैं जहाँ यह कुप्रथा ग़ैरकानूनी होने के बावजूद भी अपने पाँव पसार रही है।