सफाई के दौरान मन्दिर प्रबंधन द्वारा इन्हें एक नियत स्थान पर एकत्रित कर दिया जाता है, जिसे निगम द्वारा उक्त स्थान से उठवाते हुए गोंदिया ट्रेंचिंग ग्राउण्ड में भेजा जाकर खाद बनाया जाता था।
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धार्मिक नगरी उज्जैन में अनेक मठ और मन्दिर स्थापित हैं। यहां विदेश-देश से अनेक श्रद्धालु अपनी आस्था लेकर आते हैं। अत्यधिक संख्या में आने वाले श्रद्धालुओं द्वारा मन्दिर में हारफूल अर्पित किये जाते हैं, जिनकी मात्रा अत्यधिक होती है। सफाई के दौरान मन्दिर प्रबंधन द्वारा इन्हें एक नियत स्थान पर एकत्रित कर दिया जाता है, जिसे निगम द्वारा उक्त स्थान से उठवाते हुए गोंदिया ट्रेंचिंग ग्राउण्ड में भेजा जाकर खाद बनाया जाता था।
लेकिन कुछ साल पहले निगम द्वारा एक अनूठा प्रयास किया गया और मंगलनाथ मार्ग स्थित आयुर्वेदिक कॉलेज के पास एक प्लांट स्थापित किया गया, जहां अगरबत्ती, धूपबत्ती और हर्बल गुलाल बनाया जाता है। उक्त प्लांट का संचालन पुष्पांजली इको के मनप्रीतसिंह अरोरा व दीपाली अरोरा द्वारा किया जा रहा है।
अरोरा ने बताया कि शहर के प्रमुख मन्दिरों महाकालेश्वर, हरसिद्धि, कालभैरव, शनि मन्दिर, मंगलनाथ इत्यादि बड़े एवं छोटे मन्दिरों से निकलने वाले फूलों का पुन: उपयोग कर सुगंधित अगरबत्ती, धूपबत्ती एवं हर्बल गुलाल बनाया जा रहा है। मन्दिरों से फूलों का संग्रहण अलग-अलग दिनों में तय समय-सारणी के अनुसार निर्धारित किये गये निर्माल्य वाहन द्वारा किया जाता है। इससे निर्माल्य का सही उपयोग होने के साथ ही लोगों की धार्मिक आस्थाएं भी आहत नहीं हो रही हैं।
ऐसे बनती है फूलों से अगरबत्ती
मन्दिरों में चढ़ाये गये फूल और अन्य सामग्री रोजाना निर्माल्य वाहनों से प्लांट पर पहुंचती है। यहां गुलाब, गेंदे, मोगरा, चमेली इत्यादि किस्मों के फूलों को अलग-अलग किया जाता है, ताकि सुगंध मिश्रित न हो। निर्माल्य में आई अन्य सामग्री को अलग रखा जाता है, ताकि मसाला कम प्रोसेस में बने। किस्म के अनुसार अलग किये गये फूलों को मशीन में डालकर मसाला तैयार होता है। इस मसाले को खुली धूप व अन्य प्रोसेसिंग से सुखाया जाता है। सूखे मसाले में कुछ जरूरी वस्तुएं मिलाकर इससे अगरबत्ती तैयार होती है।
इसमें अन्य कोई सेन्ट या सामग्री नहीं मिलाई जाती, जिससे इसकी महक प्राकृतिक होती है और वातावरण को आनन्दित करती है। निर्माल्य से तैयार होने वाली अगरबत्ती की खासियत यह है कि यह आम अगरबत्ती की तुलना में अधिक समय तक जलती है और इसकी महक पूरी तरह प्राकृतिक है। संस्था द्वारा महाकाल मन्दिर परिसर के बाहर स्टॉल लगाकर सामग्री का विक्रय भी किया जाता है। श्रद्धालुओं द्वारा इस नवाचार की प्रशंसा करते हुए सामग्री क्रय भी की जा रही है।