प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सात साल बाद हुई चीन यात्रा ने भारत-चीन संबंधों में नई गर्माहट का संकेत दिया है। तियानजिन में आयोजित 25वें शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात ने यह स्पष्ट किया कि दोनों देश अब रिश्तों को टकराव की बजाय साझेदारी और सहयोग की दिशा में आगे बढ़ाना चाहते हैं।
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साझेदारी पर जोर, टकराव से दूरी
बैठक के दौरान भारत और चीन ने यह स्पष्ट किया कि द्विपक्षीय संबंधों को किसी तीसरे देश की नजर से नहीं देखा जाना चाहिए। दोनों देशों ने रणनीतिक स्वायत्तता पर जोर देते हुए कहा कि आपसी सहयोग और विकास ही रिश्तों की असली प्राथमिकता होनी चाहिए।
सीमा पर शांति: रिश्तों की बुनियाद
मोदी और शी दोनों इस बात पर सहमत दिखे कि सीमा पर शांति और स्थिरता ही भारत-चीन रिश्तों की मजबूती की पहली शर्त है। जब तक वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर भरोसे का माहौल नहीं बनता, तब तक व्यापक स्तर पर सहयोग की दिशा में बड़े कदम उठाना मुश्किल होगा।
व्यापारिक संतुलन और आर्थिक संभावनाएँ
बैठक में व्यापार असंतुलन के मुद्दे पर भी चर्चा हुई। भारत लंबे समय से चीन के साथ संतुलित व्यापारिक संबंध चाहता है। दोनों पक्षों ने इस दिशा में नए अवसर तलाशने और आपसी सहयोग बढ़ाने की इच्छा जताई, ताकि व्यापार केवल आर्थिक लाभ का साधन न रहे, बल्कि विकास की साझा यात्रा बने।
वैश्विक मंच पर भारत की सक्रिय भूमिका
मोदी की यह यात्रा केवल भारत-चीन संबंधों तक सीमित नहीं थी। SCO सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और अन्य वैश्विक नेताओं से भी मुलाकात की। इसने यह दिखाया कि भारत बहुपक्षीय कूटनीति को प्राथमिकता देता है और विश्व मंच पर संतुलित भूमिका निभाना चाहता है।
भविष्य के लिए संकेत
तियानजिन की इस यात्रा में भले ही कोई बड़ा समझौता नहीं हुआ, लेकिन संवाद का नया दौर शुरू हुआ है। भारत और चीन ने मिलकर यह संदेश दिया है कि वे टकराव से सहयोग की ओर बढ़ना चाहते हैं। आने वाले समय में यह पहल सीमा पर स्थिरता, व्यापारिक सहयोग और आपसी विश्वास की दिशा में ठोस कदमों का मार्ग प्रशस्त कर सकती है।