कोई भी सरकार मैथिली के गौरवशाली इतिहास को कभी भी दबा नहीं सकती है।
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बिहार,21 अक्टूबर। नेशनल स्पीकर फोरम के सलाहकार समिति सदस्य सह शिक्षाविद मैथिल अभियानी दिलीप कुमार चौधरी ने सेंट्रल टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट सीटेट में मैथिली भाषा को शामिल नहीं करने पर कड़ा रोष प्रकट किया है।
उन्होंने बताया कि जब मैथिली को सांविधानिक स्तर पर अष्टम सूची में शामिल किया जा चुका है तो आखिर अभी भी मैथिली के साथ सौतेला व्यवहार हर सत्ता रूढ़ सरकार क्यों करती आई है। ज्ञात हो कि सीटेट परीक्षा बीस भाषाओं में आयोजित की जाती है लेकिन मैथिली के 2003/04 में अष्टम सूची में शामिल होने के बावजूद भी इस भाषा में परीक्षा नहीं लिया जाता।
श्री चौधरी ने कहा कि मैथिली कोई जाति विशेष की भाषा नहीं है। अपितु यह मिथिला के हर वासियों और जो मैथिल बाहर बसे हैं उनकी भाषा है। कोई भी सरकार मैथिली के गौरवशाली इतिहास को कभी भी दबा नहीं सकती है।
सरकार को चाहिए की मैथिली को हर वो सम्मान मिले जो संविधानिक स्तर पर बाक़ी अष्टम सूची में शामिल भाषाओं को मिलते आया है। साथ ही साथ केंद्रीय स्तर पर आयोजित हर परीक्षा में प्रश्न-पत्र मैथिली में भी अभ्यर्थियों को उपलब्ध कराया जा सके। उन्होंने बताया कि मैथिली एक समृद्ध प्राचीन भाषा है।
जिसकी अपनी लिपि है वही अपना व्याकरण तथा समृद्ध साहित्यिक इतिहास है। जिसकी रचना ईशा शताब्दी से पूर्व किया गया है।उन्होंने बताया कि जब यूपीएससी तथा बीपीएससी जैसे परीक्षाओं में सम्मिलित किया गया है,उसी प्रकार शिक्षक प्रतियोगिताओं में मैथिली भाषा को शामिल किया जाय।