वैज्ञानिकों की ओर से बनाई गई ये सेंसर डिवाइस विस्फोटकों को नष्ट किए बिना उनका पता लगाने में सक्षम है, आपराधिक जांच, बारूदी सुरंग, सैन्य उपयोग, गोला-बारूद स्थल, सुरक्षा उपयोग और रासायनिक सेंसर में बहुत बड़ी भूमिका निभा सकती है।
नई दिल्ली, 24 सितंबर। भारतीय वैज्ञानिकों ने पहली बार बड़े विस्फोटकों में इस्तेमाल होने वाले नाइट्रो-एरोमैटिक रसायनों का तेजी से पता लगाने के लिए थर्मली स्थिर और अपेक्षाकृत सस्ते प्रभावी इलेक्ट्रॉनिक पॉलीमर-आधारित सेंसर विकसित किया है। विस्फोटकों को नष्ट किए बिना उनका पता लगाना सुरक्षा के लिए जरुरी है। ऐसे मामलों में आपराधिक जांच, बारूदी सुरंग वाले क्षेत्र में ही उपचार, (माइनफील्ड रिमेडिएशन), सैन्य उपयोग, गोला-बारूद उपचार स्थल, सुरक्षा उपयोग और रासायनिक सेंसर बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं।
हालांकि विस्फोटक पॉली-नाइट्रो एरोमैटिक यौगिकों का विश्लेषण आमतौर पर परिष्कृत उपकरणों में इस्तेमाल तकनीकों के जरिए किया जा सकता है। लेकिन अपराध विज्ञान प्रयोगशालाओं या कब्जे से मुक्त कराए गए सैन्य स्थलों में तुरंत फैसला लेने या फिर उग्रवादियों के पास मौजूद विस्फोटकों का पता लगाने के लिए अक्सर सरल, कम लागत वाली और ऐसी चयनात्मक क्षेत्र तकनीकों की जरुरत होती है, जिनकी प्रकृति गैर विनाशकारी हो। नाइट्रो एरोमैटिक रसायनों (NAC) की गैर-विनाशकारी पहचान करना एक कठिन काम है। जबकि पहले के अध्ययन ज्यादातर फोटो-ल्यूमिनसेंट गुणधर्म पर आधारित होते हैं। फिर भी अब तक इन गुणों की प्रविधि के आधार का पता नहीं लगाया जा सका है। गुणों के आधार पर पता लगाने से विस्फोटकों को ढूंढ़ निकालने में सक्षम सरल कहीं भी ले जाया जा सके ऐसा योग्य उपकरण बनाने में सहायता मिलती है, जिसमे एक LED की मदद से परिणाम देखे जा सकते हैं।
इस तरह की कमियों को दूर करने के लिए इंस्टीटयूट ऑफ एडवांस्ड, स्टडी इन साइंस एंड टेक्नॉलोजी, गुवाहाटी के डॉ नीलोत्पल सेन सरमा के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की एक टीम ने परत दर परत ये सेंसर विकसित किया है। जिसमें दो कार्बनिक पॉलिमर होते हैं…
पहला- पॉली-2-विनाइल पाइरीडीन जिसमें एक्रिलोनिट्राइल (पी2वीपी –सीओ- एएन) होता है।
दूसरा- हेक्सेन (पीसीएचएमएएसएच) के साथ कोलेस्ट्रॉल मेथाक्राइलेट का को-पॉलीसल्फोन होता है।
जो कुछ सेकंड के भीतर एनएसी वाष्प की बहुत कम सांद्रता की मौजूदगी में अवरोध (किसी AC सर्किट में प्रतिरोध) आने से पर भारी परिवर्तन से गुजरता है। यहां पिक्रिक एसिड (पीए) को मॉडल NAC के रूप में चुना गया था, और पीए की दृश्य पहचान के लिए एक सरल और लागत प्रभावी इलेक्ट्रॉनिक प्रोटोटाइप विकसित किया गया था। टीम ने इलेक्ट्रोनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार की ओर से वित्त पोषित इस नई प्रौद्योगिकी के लिए एक पेटेंट के लिए भी आवेदन किया है।
डॉ नीलोत्पल सेन सरमा का कहना है कि “पॉलीमर गैस सेंसर से युक्त इस तरह निर्मित एक इलेक्ट्रॉनिक सेंसिंग डिवाइस विस्फोटक का तुरंत पता लगा सकती है।” इस सेंसर डिवाइस में 3 परतें शामिल हैं।
पहला: हेक्सेन (PCHMASH) के साथ कोलेस्ट्रॉल मेथाक्राइलेट का को-पॉलीसल्फोन, और पी2वीपी –सीओ- एएन युक्त स्टेनलेस स्टील की दो जालियों वाली बाहरी परतों के बीच में PCHMASH को रखकर एक्रिलोनिट्राइल के साथ पॉली-2-विनाइल पाइरीडीन का कोपॉलीमर रखा जाता है।
दूसरा: इस प्रणाली की संवेदनशीलता विश्लेषक यानी पिक्रिक एसिड की वाष्प की मौजूदी में समय (सेकंड) के साथ आए अवरोध की प्रतिक्रिया में परिवर्तन की निगरानी के द्वारा निर्धारित की जाती है।
तीसरा: ट्राई-लेयर पॉलीमर मैट्रिक्स नाइट्रो एरोमैटिक रसायनों के लिए बहुत कुशल और प्रभावी आणविक सेंसर पाया गया। ये सेंसर उपकरण डिवाइस की प्रकृति में काफी सरल और रिवर्सिबल है। इसकी प्रतिक्रिया बाकी सामान्य रसायनों और आर्द्रता की मौजूदगी में अलग-अलग ऑपरेटिंग तापमान के साथ नहीं बदलती।
बतादें कि इस डिवाइस को कमरे के सामान्य तापमान पर संचालित किया जा सकता है, इसमें कम प्रतिक्रिया समय होता है और बाकी रसायनों से बहुत कम हस्तक्षेप होता है। इसका निर्माण बहुत ही सरल है और नमी से बहुत कम रूप से प्रभावित होता है और इसमें इस्तेमाल किए जाने वाले कोलेस्ट्रॉल-आधारित पॉलिमर प्रकृति में खुद ही खत्म हो जाते हैं।