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बिहार : स्पाइनल मस्कूलर एट्रॉफी टाइप वन के दूसरे मरीज की हुई पुष्टि !

इस बीमारी के इलाज के लिए '16 करोड़' रुपये वाली सुई की पड़ेगी जरूरत अमेरिका में किया जाता है इस इंजेक्शन का उत्पादन

By इंडिया वॉइस 

Updated Date

बेगूसराय, 13 अक्टूबर। स्पाइनल मस्कूलर एट्रॉफी टाइप-वन नामक दुसाध्य बीमारी का बिहार में दूसरा मरीज रोसड़ा में मिला है। आपको बता दें कि सीएमसी वेल्लोर में जांच के बाद इस बीमारी का खुलासा हुआ है। वहीं बैंगलोर के डॉक्टर ने अमेरिका में ’21 मिलियन डॉलर’ (भारत में करीब 16 करोड़ रुपये) में मिलने वाला ‘जोल्जेनसमा नामक इंजेक्शन’ लाने को कहा है। इंजेक्शन लगने के बाद ही इस छोटी बच्ची की जान को बचाया जा सकता है।

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आयांश के बाद स्पाइनल मस्कूलर एट्रॉफी से ग्रसित एक वर्षीय शिवन्या रोसड़ा के वार्ड नंबर-दो निवासी गौतम राज की बेटी है। कई जगहों पर जांच एवं इलाज में लाखों रुपये खर्च करने के बाद बंगलोर में जब इस दुसाध्य बीमारी की पुष्टि हुई तब से इतनी बड़ी रकम को लेकर शिवन्या के परिजन की चैन छिन गई है।

अनेक माध्यमों से क्राउड फंडिग

बेटी के इलाज की कीमत सुनकर विचलित माता-पिता ने मुख्यमंत्री और मंत्रियों के साथ विधायक और सांसद से भी मदद की अपील की है। इसके साथ ही सुई के लिए रकम जल्दी जुटाने के लिए इंपैक्ट गुरु के माध्यम से क्राउड फंडिग शुरू किया गया है।

बखरी निवासी ‘सामाजिक कार्यकर्ता’ और शिक्षक ‘कौशल किशोर क्रांति’ ने बेगूसराय में भी अधिक से अधिक लोगों तक यह जानकारी पहुंचाकर छोटी-छोटी राशि सहयोग के लिए प्रेरित करने का अभियान शुरू किया है। कौशल किशोर क्रांति ने बताया कि ‘दशहरा शक्ति और बेटी की पूजा का पर्व है, इस बीच रोसड़ा की दुर्गा रूपी शिवन्या की जान बचाने के लिए छोटी से छोटी राशि बड़ा काम कर सकती है’।

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उन्होंने ने लोगों से अपील करते हुए कहा कि मेले में अपने बच्चों को एक खिलौना कम देकर उसी राशि से एक बच्ची की जान बचाने में मदद करना हमारा धर्म होना चाहिए। उत्क्रमित मध्य विद्यालय लालपुर में नियोजित शिक्षक राजेश राज और गृहिणी वंदना कुमारी की एकमात्र पुत्री शिवन्या की मदद के लिए धीरे-धीरे हाथ उठने लगे हैं। सभी लोगों को इसमें सहयोग करना चाहिए, फंडिंग के साथ-साथ भारत सरकार से मदद लेने की भी प्रक्रिया की जा रही है।

गर्दन काम करना कर चुका है बंद

बीमारी को लेकर पीड़ित बच्ची के पिता राजेश राज ने बताया कि शिवान्या का शरीर अब पूरी तरीके से काम नहीं करता है। ‘स्पाइनल मस्कूलर एट्रॉफी टाइप-वन’ का सबसे ज्यादा प्रभाव गर्दन पर दिख रहा है। उन्होंने बताया कि शिवान्या का गर्दन अब पुरी तरह से काम करना भी बंद कर चुकी है। बिमारी के शुरुआती दौर में स्थानीय चिकित्सक से लेकर पटना तक के ‘नस एवं मांसपेशी विशेषज्ञों’ से लंबा इलाज कराया, लेकिन सुधार के बदले मांसपेशी और कमजोर होती चली गयी।

इसके बाद सितंबर में ‘सीएमसी वेल्लोर’ पहुंचे तो कई प्रकार की जांच प्रक्रिया पूरी होने के बाद अब इस बीमारी के बारे में पता चला है। उन्होंने बताया कि लाखों बच्चों में से किसी एक को होने वाले ‘स्पाइनल मस्कूलर एट्रॉफी’ में बच्चे का अंग धीरे-धीरे काम करना बंद कर देता है। इस जेनेटिक बीमारी का सबसे खतरनाक पहलू है कि घर मेंं तीन अन्य बच्चों को भी यह बीमारी अपने आगोश में ले सकती है। डॉक्टरों ने बताया है कि ऐसा 75 प्रतिशत से अधिक खतरा बना रहता है।

इंजेक्शन की कीमत 16 करोड़ रुपये 

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इस बीमारी के इलाज के लिए ”जोल्जेनसमा” नामक इंजेक्शन की जरूरत पड़ती है। अमेरिका में निर्मित होने वाली इस इंजेक्शन के पूरे डोज की कीमत 16 करोड़ रुपये है। अस्पताल के मेडिकल एक्सपर्ट के अनुसार यह बीमारी बच्चों के नस और मांसपेशियों पर अपना प्रभाव डालती है और बच्चे को काफी कमजोर कर देती है। बीमारी के लक्षण के साथ जन्म लेने वाले बच्चे अधिक से अधिक दो साल तक जीवित रह पाते हैं। इस बीच उक्त सुई से समुचित इलाज हो गया तो बच्चे को नया जीवन मिल सकता है। सबसे बड़ी बात है कि अमेरिका में बनने वाली उक्त इंजेक्शन भी किसी संस्था के माध्यम से ही उपलब्ध हो सकती है।

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