जाति गणना को लेकर जयराम रमेश का हमला, केंद्र सरकार पर गंभीर आरोप
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने केंद्र सरकार पर जाति आधारित जनगणना को लेकर गंभीर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि सरकार बार-बार सामाजिक न्याय और सबका साथ-सबका विकास की बात तो करती है, लेकिन जब वास्तविक सामाजिक आंकड़े जुटाने की बात आती है, तब वह पीछे क्यों हट जाती है? जयराम रमेश का यह बयान उस समय आया है जब देश में जाति आधारित जनगणना की मांग जोरों पर है, खासकर बिहार और कुछ दक्षिणी राज्यों की ओर से इस मुद्दे को बार-बार उठाया जा रहा है।
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जयराम रमेश ने कहा कि जातिगत आंकड़े सिर्फ सामाजिक समीकरणों को स्पष्ट करने के लिए नहीं, बल्कि नीतियों को दिशा देने के लिए आवश्यक हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार इस मुद्दे से बचने की कोशिश कर रही है क्योंकि सही आंकड़े आने से “राजनीतिक लाभ” का गणित बिगड़ सकता है।
जाति आंकड़े नहीं तो सामाजिक न्याय अधूरा
रमेश ने दो टूक कहा कि “जब तक सरकार के पास जाति आधारित आंकड़े नहीं होंगे, तब तक वह सही तरीके से आरक्षण, प्रतिनिधित्व और संसाधनों का बंटवारा नहीं कर सकती।” उन्होंने यह भी कहा कि 2011 की सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (SECC) के आंकड़ों को आज तक सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया, इसका जवाब सरकार को देना चाहिए।
उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि अगर केंद्र सरकार गरीबों, पिछड़ों और दलितों के लिए योजनाएं चला रही है तो उसे इन वर्गों की सटीक संख्या की जानकारी क्यों नहीं चाहिए? उनका तर्क है कि बिना स्पष्ट जनसांख्यिकीय डेटा के कोई भी कल्याणकारी योजना केवल दिखावा बनकर रह जाती है।
विपक्षी दलों को मिला मुद्दा
जाति जनगणना अब सिर्फ कांग्रेस का मुद्दा नहीं रह गया है। राष्ट्रीय जनता दल (RJD), समाजवादी पार्टी (SP), द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) जैसे क्षेत्रीय दल पहले से ही इस मांग को जोर-शोर से उठा रहे हैं। जयराम रमेश का यह बयान इस राष्ट्रीय बहस को एक नई गति देता है और केंद्र सरकार को इसे नजरअंदाज करना अब और मुश्किल हो सकता है।
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केंद्र सरकार की चुप्पी पर सवाल
केंद्र सरकार ने अभी तक इस मुद्दे पर कोई ठोस रुख नहीं अपनाया है। हालांकि पिछली कुछ बैठकों में इस पर चर्चा जरूर हुई है, लेकिन स्पष्ट नीति का अभाव बना हुआ है। जयराम रमेश का कहना है कि जातिगत आंकड़े सार्वजनिक करना लोकतांत्रिक जिम्मेदारी है और इससे देश की नीति निर्माण प्रक्रिया पारदर्शी होगी।
निष्कर्ष
जाति आधारित जनगणना एक संवेदनशील लेकिन आवश्यक मुद्दा बन चुका है। जयराम रमेश जैसे वरिष्ठ नेता द्वारा इस विषय पर सवाल उठाना दर्शाता है कि यह बहस आने वाले चुनावों में भी केंद्र में रह सकती है। यदि सरकार इस पर ठोस कदम नहीं उठाती, तो यह न केवल विपक्षी दलों को मुद्दा देगा, बल्कि जनता के बीच विश्वास की कमी भी पैदा कर सकता है।