बाड़मेर को मिली नई उम्मीद: अब सिंधु का पानी राजस्थान के लिए?
भारत सरकार द्वारा इंडस वॉटर ट्रीटी (Indus Water Treaty) को निलंबित करने के फैसले ने एक ओर जहां पाकिस्तान को बड़ा झटका दिया है, वहीं राजस्थान के बाड़मेर, जैसलमेर, और आसपास के सूखे इलाकों में नई उम्मीदें जगा दी हैं। वर्षों से जल संकट से त्रस्त ये क्षेत्र अब आशा कर रहे हैं कि इस फैसले के बाद भारत सिंधु नदी के पानी का उपयोग खुद के सूखे राज्यों में करने लगेगा।
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बाड़मेर के स्थानीय निवासियों, किसान संगठनों और जल विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार को इस अवसर का लाभ उठाते हुए सिंधु नदी से पानी का रुख राजस्थान की ओर मोड़ना चाहिए, जिससे मरुस्थली क्षेत्रों में खेती, पशुपालन और जीवन को स्थायित्व मिल सके। यहां के लोगों का कहना है कि यह ऐतिहासिक मौका है जब भारत अपने जल संसाधनों का राष्ट्रीय हित में पुनः आकलन कर सकता है।
राजस्थानी किसानों की मांग: “हमें भी मिलना चाहिए पानी का अधिकार”
राजस्थान के मरु क्षेत्र में सिंचाई के लिए सालों से पानी की कमी एक बड़ी समस्या रही है। किसान अक्सर मानसून पर निर्भर रहते हैं और सूखे की स्थिति में उनकी फसलें बर्बाद हो जाती हैं। बाड़मेर के किसान नेता लालचंद चौधरी का कहना है, “जब हमारा ही पानी पाकिस्तान भेजा जा रहा था, तब भी हमने सहा। अब जब वह समझौता खत्म हुआ है तो सरकार को इस पानी का उपयोग हमारे प्रदेश के लिए करना चाहिए।”
कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी इस पर जोर दिया कि केंद्र सरकार को अब एक जल आपूर्ति मास्टर प्लान तैयार करना चाहिए, जिससे बाड़मेर, जैसलमेर, बीकानेर जैसे इलाकों में स्थायी जल आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके। अगर सिंधु का पानी इन इलाकों तक लाया जाता है, तो यह एक “जल क्रांति” साबित हो सकती है।
जल विशेषज्ञों की राय: तकनीकी रूप से संभव, राजनीतिक इच्छाशक्ति जरूरी
जल प्रबंधन से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि सिंधु का पानी राजस्थान की ओर मोड़ना एक तकनीकी रूप से संभव कार्य है, बशर्ते सरकार इसके लिए आवश्यक ढांचागत तैयारियों और निवेश को प्राथमिकता दे। पानी के डायवर्जन प्रोजेक्ट, कैनाल सिस्टम, और स्टोरेज फैसिलिटीज को सुदृढ़ बनाकर यह लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।
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विशेषज्ञों ने यह भी बताया कि इस परियोजना से सिर्फ राजस्थान ही नहीं, बल्कि पंजाब और हरियाणा को भी लाभ मिल सकता है, जिससे इन राज्यों में जल संसाधनों की समानता लाई जा सकती है।
अंतरराष्ट्रीय और कूटनीतिक असर
भारत का यह फैसला न केवल पाकिस्तान पर दबाव बनाने का तरीका है, बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत के आत्मनिर्भर दृष्टिकोण को भी दिखाता है। भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अपने हितों के साथ कोई समझौता नहीं किया जाएगा। पाकिस्तान द्वारा बार-बार सीमा पार आतंकवाद को बढ़ावा दिए जाने के बाद यह कदम सख्त लेकिन सही संदेश के रूप में देखा जा रहा है।
सरकार ने यह भी कहा है कि इंडस जल संधि को लेकर पुनर्विचार का अधिकार भारत के पास हमेशा रहा है और अब समय आ गया है कि इस अधिकार का उपयोग कर देश की आंतरिक आवश्यकताओं को प्राथमिकता दी जाए।