केरल की धरती पर हिम्मत की फसल: बंजर ज़मीन पर धान उगाने वाली बुजुर्ग महिला की प्रेरक कहानी
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जहां आज की युवा पीढ़ी खेती से दूरी बना रही है, वहीं केरल की एक बुजुर्ग महिला ने न सिर्फ खेती को अपनाया, बल्कि एक बंजर पड़ी ज़मीन पर धान की हरियाली ला दी। यह कहानी है अलप्पुझा जिले की 70 वर्षीय कमलाक्षी अम्मा की, जिन्होंने ज़िंदगी भर मेहनत कर ज़मीन से नाता नहीं तोड़ा।
बंजर ज़मीन से हरियाली तक का सफर
कमलाक्षी अम्मा के पास एक पुरानी जमीन थी जो सालों से खाली और बंजर पड़ी थी। आसपास के लोगों ने कहा कि इस पर खेती संभव नहीं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। अपने दम पर उन्होंने इस ज़मीन को साफ किया, मिट्टी में बदलाव किए और खुद ही धान की बुवाई शुरू की।
मेहनत, आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास की मिसाल
कमलाक्षी अम्मा ने न तो किसी सरकारी स्कीम का सहारा लिया और न ही किसी NGO की मदद मांगी। केवल अपने अनुभव और दृढ़ निश्चय के दम पर उन्होंने इस ज़मीन को उपजाऊ बना दिया। आज उनकी खेती से सालाना अच्छी उपज हो रही है जिससे वे न सिर्फ अपने घर का खर्च चला रही हैं, बल्कि पास के गाँव के लोगों को भी प्रेरित कर रही हैं।
उम्र नहीं, इरादे मायने रखते हैं
70 वर्ष की आयु में भी कमलाक्षी अम्मा सुबह 5 बजे खेतों में पहुंच जाती हैं। वे खुद हल चलाती हैं, पानी देती हैं और फसल की देखरेख करती हैं। उन्होंने यह साबित कर दिया है कि “उम्र केवल एक संख्या है, अगर इरादे मजबूत हों तो कुछ भी मुमकिन है।”
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जैविक खेती की ओर झुकाव
कमलाक्षी अम्मा रासायनिक खाद और कीटनाशकों से दूर रहकर पूरी तरह जैविक खेती कर रही हैं। वे गोबर की खाद, नीम का तेल, और अन्य प्राकृतिक तरीकों से धान की पैदावार को बढ़ावा देती हैं। इससे न सिर्फ उनकी फसलें सुरक्षित हैं बल्कि पर्यावरण भी।
क्या कहती हैं कमलाक्षी अम्मा?
उनका कहना है, “मुझे किसी सरकारी मदद की जरूरत नहीं। मेरी ज़मीन ही मेरा धन है। मैं चाहती हूं कि आने वाली पीढ़ी भी खेती को अपनाए, न कि इससे भागे।”
समाज में फैला प्रभाव
उनकी इस मेहनत को देखकर आसपास के कई नौजवान खेती की ओर लौट रहे हैं। कई स्कूल और कॉलेज के छात्र उनके खेत का दौरा कर प्राकृतिक खेती और ग्रामीण जीवनशैली को समझ रहे हैं। यह प्रयास न सिर्फ आर्थिक रूप से उपयोगी है, बल्कि सामाजिक और शैक्षिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।
सम्मान और पहचान
कमलाक्षी अम्मा को उनके इस कार्य के लिए कई स्थानीय स्तर के पुरस्कार मिल चुके हैं। राज्य सरकार ने भी उनके योगदान को सराहा है और उन्हें “ग्राम गौरव महिला किसान” की उपाधि दी है।
निष्कर्ष
केरल की कमलाक्षी अम्मा की यह कहानी हम सभी के लिए एक प्रेरणा है। एक ओर जहां खेती संकट में है, वहीं उन्होंने दिखाया कि सही सोच, मेहनत और आत्मविश्वास के साथ कोई भी बंजर ज़मीन हरियाली में बदली जा सकती है। यह कहानी भारत के हर राज्य में उन किसानों को नई रोशनी देती है जो खेती को दोबारा अपनाने की सोच रहे हैं।