अबू आज़मी का BJP पर सीधा हमला: “जातिगत जनगणना से क्यों डरती है सत्ता?”
समाजवादी पार्टी (सपा) के वरिष्ठ नेता अबू आज़मी ने केंद्र सरकार और खासकर भारतीय जनता पार्टी (BJP) पर जातिगत जनगणना को लेकर बड़ा आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि भाजपा जातिगत जनगणना से इसलिए भाग रही है क्योंकि उसे सामाजिक असमानता, आरक्षण की हकीकत और वास्तविक जनसंख्या डेटा सामने आने का डर है।
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अबू आज़मी ने यह भी कहा कि यदि सरकार वाकई में सामाजिक न्याय की समर्थक है, तो उसे बिना देरी किए जातिगत जनगणना की घोषणा करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि “जब तक समाज के हर वर्ग की वास्तविक जनसंख्या का पता नहीं चलेगा, तब तक समान अवसर और अधिकार केवल एक भ्रम बने रहेंगे।”
“जातिगत जनगणना से ही होगा न्याय”
सपा नेता ने कहा कि आज देश में OBC, SC, ST और अन्य वर्गों के लिए आरक्षण की व्यवस्था है, लेकिन वह आंकड़ों के बिना अधूरी है। उन्होंने सरकार से पूछा कि “जब जनगणना में जानवरों, वाहनों और घरों की गिनती हो सकती है, तो OBC वर्ग की गिनती क्यों नहीं?”
अबू आज़मी ने यह भी जोड़ा कि यदि भाजपा सच में सामाजिक न्याय में विश्वास रखती है, तो उसे यह डर नहीं होना चाहिए कि जातिगत जनगणना के बाद सामाजिक ढांचे में नीतिगत बदलाव करने पड़ेंगे।
विपक्ष का एकजुट रुख
जातिगत जनगणना को लेकर विपक्ष लगातार एकजुट दिखाई दे रहा है। सपा, कांग्रेस, राजद और जदयू जैसे दल लगातार इस मुद्दे पर केंद्र सरकार को घेर रहे हैं। अबू आज़मी ने विपक्षी दलों से अपील की कि वे इस मुद्दे को लेकर संसद से सड़क तक आंदोलन करें और इसे जनता का आंदोलन बनाएं।
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उन्होंने यह भी कहा कि यह केवल चुनावी मुद्दा नहीं है, बल्कि भारत के भविष्य की सामाजिक बुनियाद से जुड़ा मुद्दा है।
BJP की प्रतिक्रिया
भाजपा की ओर से हालांकि अब तक इस पर सीधा बयान नहीं आया है, लेकिन पार्टी के कुछ नेताओं ने इसे “वोट बैंक की राजनीति” करार दिया है। अबू आज़मी ने इस आरोप को खारिज करते हुए कहा कि “अगर समान अधिकारों की मांग वोट बैंक है, तो हां, हम वोट बैंक की राजनीति करते हैं। हम संविधान की राजनीति करते हैं।”
उन्होंने कहा कि भाजपा सिर्फ धार्मिक ध्रुवीकरण और जातीय विभाजन से चुनाव जीतना चाहती है, लेकिन अब जनता को हकीकत समझ आ गई है।
निष्कर्ष
अबू आज़मी का यह बयान एक बार फिर से जातिगत जनगणना के मुद्दे को केंद्र में ले आया है। आने वाले समय में यह मुद्दा राजनीतिक बहस के साथ-साथ नीतिगत निर्णयों में भी अहम भूमिका निभा सकता है। यदि केंद्र सरकार इस पर ठोस कदम नहीं उठाती है, तो यह आने वाले चुनावों में बड़ा मुद्दा बन सकता है।