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श्रीलंका के बाद नेपाल: क्या दक्षिण एशिया में जनता की आग सत्ता पलटना बना रही है

By HO BUREAU 

Updated Date

श्रीलंका के बाद नेपाल

जब जनता खामोशी से गुमशुदा होने लगे और लोग सड़क पर उतर आएं, तब लोकतंत्र सच में जी उठता है। हाल ही में नेपाल में जो हुआ, वो सिर्फ एक सरकार का अंत नहीं, यह दक्षिण एशिया में लोकतांत्रिक चेतना की वापसी है। आइए एक कड़ी जोड़ते हैं: श्रीलंका, और अब नेपाल।

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Nepal: जनक्रोध से सत्ता पलट तक

नेपाल की राजनीति में अचानक तब भूचाल आया जब सरकार ने 26 प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स पर रोक लगा दी—जिसे युवा वर्ग ने “सेंसर-शिप” डिक्टेटरशिप की शुरुआत समझा। जैसे ही “Gen-Z” युवा सड़कों पर उतरे, आंदोलन में 19 लोग मारे गए। सरकार को बैन हटाना पड़ा, लेकिन इससे चीजें और भड़क उठीं। जब प्रदर्शनकारियों ने संसद और PM के घर को आग के हवाले कर दिया, तो अंतिम नतीजा आया—प्रधानमंत्री KP शर्मा ओली का इस्तीफ़ा। पुलिस कार्रवाई, बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार और “Nepo Kids” की चमकती पोशिश—सब मिला कर आंदोलन ने सत्ता को हिला दिया।

Sri Lanka: जनता की एक और जागरूकता

श्रीलंका की हालिया “Aragalaya” (संघर्ष) ने भी इसी कहानी को दोहराया था। महंगा जीवन, इंधन की कमी, IMF के दबाव में उठाए गए करों ने जनता को टूटने पर मजबूर कर दिया। हजारों लोग सड़कों पर उतरे, राष्ट्रपति Gotabaya Rajapaksa पर असंतोष उफान पर था—अंततः वह भागने को मजबूर हुआ और PM का इस्तीफ़ा होना तो तय था।

क्या यह सिर्फ एक तात्कालिक घटना है या दक्षिण एशिया में बदलाव की शुरुआत?

नेपाल और श्रीलंका, जो लोकतांत्रिक संघर्षों की परंपरा में अक्सर पीछे रहे, अब ऐसे दो उदाहरण बन चुके हैं जहाँ:

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जनता इंक्रिमेंटल सत्ता से उठकर प्रत्यक्ष लोकतंत्र की ओर बढ़ रही है।

युवा वर्ग सिर्फ टिकट नहीं, जहांनुमाई बदलवा चाहता है।

सेंसरशिप, IMF नीतियाँ, और कर-शोषण जैसे मुद्दे अब केवल आर्थिक नहीं—राजनीतिक क्रांति का आधार बनते जा रहे हैं।

दक्षिण एशिया, जहाँ लोकतंत्र अक्सर वंशवादों और एकलुदेशीय शक्तियों की गर्दन पर टिका रहता था, अब बदलाव की ओर कदम बढ़ा रहा है।

 

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आगे क्या हो सकता है?

निजी नेताओं से हटकर राष्ट्र-संचालित पुनर्गठन का दौर शुरू हो सकता है—युवा, विश्वसनीय नेतृत्व के साथ।

संसद में तथाकथित “transition government” की तरफ़ रुख़—जहाँ युवा और नागरिक नेता मिलकर नए रास्ते बनाएं।

अगर लोकतांत्रिक ऊर्जा वैसी ही बनी रही—तो सत्ता स्थायी नहीं रहेगी, और सूक्ष्म सुधार और बड़ी सत्ता परिवर्तन दोनों हो सकते हैं।

 

निष्कर्ष

श्रीलंका से शुरू हुई यह क्रांति —जहां भ्रष्टाचारी सत्ता जनता से लड़ रही थी—अब नेपाल में दागदार तंत्र के खिलाफ़ जंग लड़ने से जीतने तक पहुंच चुकी है। यह सिर्फ सत्ता का पतन नहीं, बल्कि लोकतंत्र की “राइजिंग डॉ”; और असल सवाल ये है: क्या बाकी दक्षिण एशियाई देश भी इसी जंग की शुरुआत करेंगे?

सपन

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