“अगला दलाई लामा कौन होगा?” – धर्म से लेकर ड्रैगन तक फैली इस रहस्यमयी लड़ाई की पूरी कहानी!
पढ़ें :- मिग-21: भारतीय आसमान का शेर, जिसने दुश्मनों को कांपने पर मजबूर किया, अब इतिहास का हिस्सा
2 जुलाई 2025, धर्मशाला — एक शांत पहाड़ी शहर में बैठे 89 वर्षीय संत ने एक ट्वीट किया… और बीजिंग में हड़कंप मच गया।
“मेरे बाद भी दलाई लामा की परंपरा जारी रहेगी। अगला अवतार गदेन फोहरड्रांग ट्रस्ट के माध्यम से चुना जाएगा — कोई और नहीं।”
यह साधारण-सा बयान नहीं था। यह एक आध्यात्मिक एलान था, जो सीधे चीन के राजनीतिक दिल में जाकर चुभा। एक ट्वीट ने 600 साल पुरानी परंपरा, आधुनिक भू-राजनीति, और सांस्कृतिक आत्मनिर्भरता की बहस को फिर जिंदा कर दिया।
इतिहास की परतें: एक मासूम बच्चे से निर्वासित संत तक
पढ़ें :- लालू परिवार में फूट: रोहिणी आचार्य ने तेजस्वी सहित अन्य सदस्यों को किया अनफॉलो, राजनीतिक अटकलें तेज़
साल था 1937, तिब्बत के एक छोटे से गांव ताकस्तेर में एक किसान परिवार में लामो धुंडुप नाम का एक बच्चा जन्मा। उसकी आदतें अजीब थीं—वह अपने खिलौनों को इस तरह संजोता जैसे वे किसी पूर्व जन्म की धरोहर हों। जब उसकी आंखों के सामने तेरहवें दलाई लामा की छड़ी लाई गई, तो उसने फौरन कहा, “यह मेरी है।”
बस यहीं से शुरू हुआ सफर—14वें दलाई लामा का।
- 1950 में चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी तिब्बत में घुसी और परंपरागत बौद्ध राज्य को कब्जे में ले लिया।
- 1959 में जब दमन असहनीय हो गया, दलाई लामा वेश बदलकर हिमालय पार कर भारत आ गए।
- धर्मशाला को उन्होंने नया घर बनाया, जहां आज भी तिब्बती शरणार्थियों की निर्वासित सरकार कार्यरत है।
- तब से अब तक, चीन और दलाई लामा के बीच यह लड़ाई जारी है—धर्म बनाम राज्य, करुणा बनाम नियंत्रण।
चीन को क्यों मच गई घबराहट?
दलाई लामा का नया बयान चीन को इसीलिए खटक गया क्योंकि—
- वह अगला दलाई लामा अपनी पसंद से नहीं चुन पाएगा।
- चीन को डर है कि कोई स्वतंत्र आत्मा फिर से तिब्बती स्वायत्तता की आवाज़ बन सकती है।
- और इससे तिब्बत में एक नई क्रांति की चिंगारी भड़क सकती है।
चीन चाहता है कि अगला दलाई लामा बीजिंग की मुहर वाला हो, एक कठपुतली जो केवल सरकार के इशारों पर बोले। लेकिन दलाई लामा ने कह दिया—“नहीं, हमारी परंपरा हमारी है।“
पढ़ें :- दिल्ली छात्र संघ चुनाव में ABVP ने मारी बाज़ी: 4 में से 3 सीटों पर कब्जा, एक सीट NSUI को
आख़िर अगला दलाई लामा चुना कैसे जाता है?
यह कोई चुनाव या नियुक्ति नहीं होती। यह एक रहस्यमय खोज यात्रा है:
- पिछले दलाई लामा के निधन के बाद 9 महीनों तक उस आत्मा के पुनर्जन्म के संकेत खोजे जाते हैं।
- सपनों, पवित्र चिन्हों, झीलों में दिखते अक्षरों और रहस्यपूर्ण इशारों के आधार पर हजारों बच्चों में से एक को चुना जाता है।
- फिर होती है असली परीक्षा: पहचान, आचरण, याददाश्त और पवित्र वस्तुओं की पहचान।
- यह परंपरा सदियों से सिर्फ बौद्ध भिक्षुओं और गदेन फोहरड्रांग ट्रस्ट द्वारा निभाई जाती रही है। लेकिन चीन चाहता है इसमें उसका ‘गोल्डन अर्न’ नियम लागू हो—जिसमें अंतिम निर्णय ‘सरकार’ दे।
पंचेन लामा की गुमशुदगी: धर्म की सियासत में खोया बचपन
1995 में 14वें दलाई लामा ने एक 6 साल के बच्चे गेधुन चोएक्यी न्यिमा को पंचेन लामा घोषित किया—जो कि दलाई लामा के बाद दूसरा सबसे बड़ा धार्मिक पद है।
पढ़ें :- PM मोदी @75: सेवा, समर्पण और संकल्प को राज्यों के सीएम का सलाम
लेकिन कुछ ही दिनों में वह बच्चा लापता हो गया।
चीन ने तुरंत एक “अपना” पंचेन लामा घोषित कर दिया, लेकिन तिब्बती आज भी असली पंचेन लामा के इंतजार में हैं।
यह घटना बताती है कि अगला दलाई लामा भी अगर चीन के हाथ लगा, तो उसकी आत्मा से पहले उसकी स्वतंत्रता गायब कर दी जाएगी।
भारत और अमेरिका की चुप सहमति या खुला समर्थन?
भारत ने दलाई लामा को पनाह दी, लेकिन खुलकर तिब्बत का समर्थन कभी नहीं किया—शायद कूटनीति की मजबूरी। लेकिन जब हाल ही में अमेरिकी कांग्रेस ने “Resolve Tibet Act” पास किया और अमेरिकी सांसद धर्मशाला आए, तो यह संकेत जरूर गया कि दुनिया तिब्बत के पीछे खड़ी हो रही है।
पढ़ें :- India Vs Pakistan: ऑपरेशन सिंदूर के बाद पहली बार आमने-सामने, देखें बड़ा मुकाबला
भारत सरकार ने कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया, लेकिन प्रतिनिधियों को धर्मशाला आने की अनुमति देना, एक मौन समर्थन तो है ही।
यह सिर्फ पुनर्जन्म नहीं… यह पहचान की लड़ाई है
दलाई लामा का यह एलान सिर्फ धार्मिक नहीं है—यह एक संस्कृति बचाने की घोषणा है।
यह तिब्बती आत्मा को, उसकी आवाज़ को, और उसकी अस्मिता को बनाए रखने की साजिशों के खिलाफ खड़ा होना है।
जब एक बूढ़ा साधु कहता है—
“मेरा उत्तराधिकारी कोई सरकार नहीं, मेरी परंपरा चुनेगी,”तो वह सिर्फ एक धर्मगुरु नहीं, सत्ता के सामने खड़ी एक अंतरात्मा बन जाता है।