नई दिल्ली, 22 जून। कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने जीएसटी दरों में बदलाव से पहले जीएसटी काउंसिल से व्यापारियों से सलाह-मशविरा करने की मांग की है। कैट ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से बिना ब्रांड वाले खाद्यान्न को कर से मुक्त रखने और इसको 5 फीसदी टैक्स स्लैब के दायरे में न लाने का आग्रह भी किया।
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कैट ने बुधवार को कहा कि जीएसटी दरों पर राज्यों के मंत्रियों का गठित समूह (जीएमओ) की सिफारिशों को 28-29 जून को चंडीगढ़ में जीएसटी काउंसिल की होने वाली 47वीं बैठक में लागू करने से पहले व्यापारियों से सलाह-मशविरा किया जाए। कारोबारी संगठन ने यह भी कहा कि टेक्सटाइल और फ़ुटवियर को फीसदी के टैक्स स्लैब के दायरे में ही रखा जाना चाहिए।
कारोबारी संगठन कैट के महामंत्री प्रवीण खंडेलवाल का कहना है कि रोटी, कपड़ा और मकान आम लोगों की जरूरत की चीजें हैं। यदि इन वस्तुओं पर टैक्स लगाया गया, तो इसका सीधा असर देश के 130 करोड़ लोगों पर पड़ेगा, जो पहले से ही महंगाई की मार झेल रहे हैं। क्योंकि, आम आदमी की आमदनी दिन-ब-दिन घट रही है, जबकि खर्चा दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है।
खंडेलवाल ने कहा कि जब प्रतिमाह जीएसटी राजस्व संग्रह के आंकड़ों में बढ़ोतरी हो रही है। ऐसे में किसी भी वस्तु पर अधिक जीएसटी लगाने का कोई औचित्य नहीं है। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि वर्तमान परिस्थितियों में यह जरूरी हो गया है कि जीएसटी क़ानूनों और नियमों की नए सिरे से समीक्षा हो तथा इसकी दरों की विसंगतियों को समाप्त किया जाए। कैट महामंत्री ने कहा कि ऐसी जानकारी मिली है कि जीएमओ ने अनेक वस्तुओं को जीएसटी में प्राप्त छूटों को खत्म करने तथा अन्य वस्तुओं की टैक्स की दरों में वृद्धि करने की एकतरफा सिफारिश की है।
कैट महामंत्री ने कहा कि जीएसटी दरों को युक्तिसंगत बनाने के लिए गठित जीएमओ ने केवल राज्य सरकारों के पक्ष को ही जाना है। इसको लेकर व्यापारियों से कोई चर्चा तक नहीं की गई है। उन्होंने कहा कि जीएसटी स्लैब में बदलाव का कोई भी एकतरफ़ा निर्णय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ईज ऑफ डूइंग बिजनेस तथा पार्टीसीपेटरी गवर्नेस के विरुद्ध ही होगा। क्योंकि, जीएमओ ने सिफ़ारिशें की हैं, उनको लागू करने से कर का ढांचा ज्यादा विकृत तथा असामान्य हो जाएगा।
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उन्होंने कहा कि जीएसटी की मौजूदा दरों में संशोधन पर जीएसटी काउंसिल के विचार से देशभर के व्यापारी सहमत हैं लेकिन एक साथ जीएसटी के सभी टैक्स स्लैब में एक साथ आमूल-चूल परिवर्तन जरूरी है। दरअसल, बड़ी संख्या में अनेक वस्तुएं ऐसी हैं, जो उचित टैक्स स्लैब में नहीं है। एक तरफ कुछ वस्तुओं पर ज्यादा टैक्स है, तो कुछ पर विभिन्न राज्यों में टैक्स की दर अलग अलग है। यह जीएसटी के एक देश-एक कर के मूल सिद्धांत के विपरीत है। ऐसे में व्यापारियों से बातचीत कर टैक्स की दर तय की जाए तो बेहतर होगा और राजस्व में बढ़ोतरी होगी। इसके लिए देशभर के व्यापारी संगठन केंद्र एवं राज्य सरकारों के साथ मिलकर काम करने को तैयार हैं।