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गोवा की राजनीति में जनता किसके सिर पर सजाएगी सत्ता का ताज, क्या पार्टियों का समीकरण होगा सफल

By इंडिया वॉइस 

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गोवा में आज वोटिंग के बाद से नेताओं और पार्टियों की नजरें चुनावी नतीजों पर टिक जाएगी। इस छोटे से राज्य गोवा में बड़ी राजनीतिक दलों के साथ ही छोटे व स्थानीय दल बेहद सक्रिय रहे हैं। इस बार मैदान में बीजेपी, कांग्रेस के साथ ही टीएमसी, आप भी अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं। टीएमसी ने ममता बनर्जी के दम चुनाव प्रचार में बेहद ही आक्रामक तेवर के साथ प्रचार किया। वहीं आप के प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने भंडारी समुदाय का सीएम उम्मीदवार उतार सभी पार्टियों के अंदल खलबली मचा दी। गोवा की आबादी पर नजर डाले को कुछ आंकड़े बताते हैं कि यहां पर 40 लाख लोग रहते हैं। इस चुनाव में पार्टियां धार्मिक ध्रुवीकरण कर लोगों को अपने पक्ष में करने में दिखाई दीं।
जातीय समीकरण पर राजनीतिक माहौल 
टीएमसी – तृणमूल कांग्रेस व आम आदमी पार्टी ने इस बार गोवा में ओबीसी दांव खेला है। आप के प्रमुख व दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने इस बार भंडारी समुदाय से सीएम उम्मीदवार को मैदान में उतारा है। भंडारी समुदाय गोवा के पिछड़े वर्ग से आता है। इस जाति के अधिकतर लोग काश्तकार या सेना में कार्यरत हैं। गोवा के राजनैतिक इतिहास की बात करें तो जब से गोवा पूर्णतः राज्य बना तब से यहां सीएम अगड़ी जाति या ईसाई धर्म से ही रहा है। आप ने भंडारी समुदाय को साधकर इस बार गोवा की बड़ी आबादी को अपने पक्ष में करने का कार्य किया है। आपको बता दें कि गोवा में रहने वाली हिंदू आबादी का 30 फीसदी भाग भंडारी समुदाय का ही है। आप यदि इस समुदाय में सेंध लगाने में सफल रही तो बीजेपी की मुश्किलें बढ़ सकती है। ऐसा इसलिए क्योंकि बीजेपी ने गोवा की राजनीति में हिंदू वोटरों को साधने का ही कार्य किया है। जबकि बीजेपी को कुछ ईसाई समुदाय के लोगों से भी उम्मीदें हैं। पूरे राज्य में तकरीबन 66 फीसदी आबादी हिंदुओं की है, जबकि 25 प्रतिशत ईसाई धर्म के लोग है। यहां पर तीसरी सबसे बड़ी संख्या मुस्लमानों की ही जो गोवा की कुल आबादी का नौ प्रतिशत है। ये आबादी मुख्यतः बीजेपी को छोड़कर अन्य दलों को समर्थन देती है। पहली बार गोवा की 40 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ रही बीजेपी ने अन्य पिछड़ी जाति वर्ग और भंडारी जाति के उम्मीदवारों पर भरोसा जताया है।
पार्टियों का चुनावी गणित
बीते वर्षों के चुनावों पर नजर डालते हैं तो पता चलता है कि गोवा की क्षेत्रीय पार्टियां यहां चुनावी रणनीतिकारों के दावों को बिगाड़ने का बड़ा काम करती हैं। फिलहाल इस बार के चुनाव में दो राष्ट्रीय पार्टियां बीजेपी व कांग्रेस, 4 छोटी राष्ट्रीय पार्टियां व आठ स्थानीय पार्टियां मैदान में उतरी है। जबकि 14 पार्टियां इस बार के चुनाव में आगे नहीं आईं हैं। राजनीतिक परिदृश्य की ओर देखने पर पता चलता है कि यहां पर किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत मुश्किल से ही प्राप्त होता है। 2017 के चुनावों में भी कुछ ऐसा ही समीकरण हुआ था। उस समय कांग्रेस को 17 सीटे मिली थी, वहीं बीजेपी को मात्र 13 सीटें ही मिली थी, लेकिन उन्होंने स्थानीय दलों के साथ मिलकर अपनी सरकार बनाई थी।
बहरहाल इस बार कांग्रेस की स्थिति कमजोर हुई है। उसके कई विधायक टीएमसी में शामिल हुए हैं। बीजेपी के प्रमोद सावंत का राजनैतिक कद और जनता के बीच लोकप्रियता पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर की तरह नहीं है। ऐसे में टीएमसी और आप को चुनावों से बेहद उम्मीद है। टीएमसी को अपने प्रशांत कुमार से खासी उम्मीदें हैं। प्रशांत कुमार के दम पर टीएमसी ने गोवा में भ्रष्टाचार का पुराना मुद्दा दोबारा से उठाया है।
इसके अलावा इस बार के चुनाव में हर पार्टी ने अपने-अपने वादों से जनता को लुभाने का वादा किया है। लेकिन जनता ने पार्टी और नेताओं की किस्मत का वोट डाल दिया है। जिसके नतीजे अब वोट काउंटिंग के दिन ही होंगे।
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