मनोज झा का बयान: “PM मोदी की क्षमता पर देश को गर्व”
भारत-पाकिस्तान के तनावपूर्ण संबंध एक बार फिर सुर्खियों में हैं और इस बार राजनीतिक गलियारों में भी एकता की आवाज़ सुनाई दे रही है। राज्यसभा सांसद और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के वरिष्ठ नेता मनोज झा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नेतृत्व क्षमता की खुलकर सराहना की है। उन्होंने कहा कि जब देश की सुरक्षा की बात आती है, तो हर भारतीय को गर्व होना चाहिए कि एक मज़बूत नेतृत्व सरकार में है।
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मनोज झा ने अपने बयान में कहा, “हम भले ही विपक्ष में हैं, लेकिन जब बात भारत-पाकिस्तान तनाव की हो, तो हमें एक साथ खड़े होना चाहिए। पीएम मोदी की रणनीतिक सोच और उनका आत्मविश्वास राष्ट्र को मजबूती देता है। उनके नेतृत्व में देश ने कई बार आतंकवादियों को करारा जवाब दिया है, और इस पर गर्व किया जाना चाहिए।”
राष्ट्रीय सुरक्षा पर विपक्ष और सत्ता को एकजुट होने की सलाह
मनोज झा का यह बयान उस वक्त आया है जब सीमा पर एक बार फिर से घुसपैठ और संघर्षविराम उल्लंघन की घटनाएं बढ़ रही हैं। ऐसे में उन्होंने कहा कि यह समय है जब सत्ता और विपक्ष को राजनीतिक मतभेदों को एक ओर रखकर एकजुट होकर जवाब देना चाहिए।
उन्होंने मीडिया से बातचीत में यह भी कहा कि “हमारे जवान बॉर्डर पर डटे हुए हैं, देश की सीमाओं की रक्षा कर रहे हैं। ऐसे में संसद और सभी राजनीतिक दलों को उनका मनोबल बढ़ाना चाहिए, न कि बयानबाज़ी से माहौल को कमजोर करना चाहिए।”
कश्मीर और सीमा की सुरक्षा को लेकर जताई चिंता
मनोज झा ने जम्मू-कश्मीर की स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा कि पाकिस्तान की तरफ से लगातार उकसावे की कार्रवाई हो रही है। उन्होंने कहा कि सरकार को सख्त कदम उठाने चाहिए और साथ ही अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान की पोल खोलनी चाहिए। झा ने कहा कि “भारत किसी भी स्तर पर शांति के पक्ष में है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम जवाब नहीं देंगे।”
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राजनीतिक मतभेद नहीं, राष्ट्रीय एकता ज़रूरी
मनोज झा ने अपने बयान में स्पष्ट किया कि भले ही उनकी पार्टी और विचारधारा केंद्र सरकार से अलग हो, लेकिन राष्ट्रीय हित सर्वोपरि है। उन्होंने कहा, “राष्ट्रीय सुरक्षा पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। हम सरकार की हर उस नीति का समर्थन करते हैं जो देश की अखंडता और सुरक्षा को मजबूत करती है।”
इस तरह का बयान विपक्ष की ओर से आना यह दर्शाता है कि भारत-पाकिस्तान के तनाव जैसे संवेदनशील मुद्दों पर देश एकजुट है। इससे यह संदेश भी जाता है कि भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में भले ही मतभेद हों, लेकिन जब बात देश की अस्मिता की हो, तो पूरा देश एक आवाज़ में बोलता है।