टेक्नोलॉजी की दुनिया में एक बड़ा भूचाल तब आया जब मेटा (Meta) के सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने अमेरिका की कोर्ट में एक ऐतिहासिक एंटीट्रस्ट ट्रायल में गवाही दी। यह ट्रायल इस बात की जांच कर रहा है कि क्या मेटा ने इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप को खरीदकर सोशल मीडिया मार्केट में एकाधिकार (Monopoly) बना लिया है।
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मेटा, जो पहले फेसबुक के नाम से जानी जाती थी, पर आरोप है कि उसने छोटे लेकिन तेजी से बढ़ते सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को खरीदकर प्रतिस्पर्धा को खत्म कर दिया। कोर्ट का मानना है कि इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप को खरीदने के पीछे मेटा की मंशा मार्केट पर पूरा कंट्रोल पाने की थी। अगर यह साबित होता है, तो मेटा को इंस्टाग्राम को अलग करने यानी उसे बेचने का आदेश भी मिल सकता है।
क्या कह रहे हैं मार्क जुकरबर्ग?
गवाही के दौरान मार्क जुकरबर्ग ने कहा कि उन्होंने ये अधिग्रहण (Acquisitions) यूजर्स को बेहतर अनुभव देने के लिए किए थे। उन्होंने कोर्ट में जोर देकर कहा कि इंस्टाग्राम को खरीदने से पहले सोशल मीडिया में बड़ी प्रतिस्पर्धा थी, और आज भी है। “हमने ये फैसले बिजनेस ग्रोथ और इनोवेशन को ध्यान में रखते हुए लिए थे, ना कि प्रतिस्पर्धा को खत्म करने के लिए,” जुकरबर्ग ने कहा।
सरकार का तर्क क्या है?
अमेरिकन फेडरल ट्रेड कमिशन (FTC) का कहना है कि फेसबुक ने जानबूझकर इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप को खरीदा ताकि कोई नया खिलाड़ी मार्केट में न आ सके। उनका मानना है कि मेटा का व्यवहार टेक्नोलॉजी सेक्टर में प्रतिस्पर्धा को कुचलने वाला है। FTC के वकीलों ने कोर्ट में इंटरनल ईमेल्स और रिपोर्ट्स पेश किए, जिसमें जुकरबर्ग ने खुद माना था कि इंस्टाग्राम भविष्य में फेसबुक के लिए एक बड़ा खतरा बन सकता है।
क्या इंस्टाग्राम बिकेगा?
इस केस की सबसे बड़ी बात यह है कि अगर कोर्ट मेटा के खिलाफ फैसला सुनाता है, तो कंपनी को इंस्टाग्राम को अलग करने यानी बेचने के आदेश मिल सकते हैं। यह केवल मेटा के लिए नहीं, बल्कि पूरे ग्लोबल टेक सेक्टर के लिए एक मिसाल बन सकती है। इससे पहले शायद ही कभी किसी बड़ी टेक कंपनी को इस तरह से अपने एक प्रमुख हिस्से को अलग करने को कहा गया हो।
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भारत पर क्या असर हो सकता है?
भारत में इंस्टाग्राम एक बेहद लोकप्रिय प्लेटफॉर्म है, खासकर युवाओं और कंटेंट क्रिएटर्स के बीच। अगर मेटा को इसे बेचना पड़ता है, तो इससे ऐप की नीतियों, एल्गोरिद्म और यूजर एक्सपीरियंस में बदलाव आ सकता है। इसका सीधा असर भारतीय यूजर्स और डिजिटल मार्केटिंग इंडस्ट्री पर भी पड़ सकता है।
सोशल मीडिया की आज़ादी बनाम मुनाफाखोरी
यह केस एक बहुत बड़ा सवाल उठाता है – क्या टेक्नोलॉजी कंपनियों को इतना बड़ा होने देना चाहिए कि वे पूरी इंडस्ट्री को कंट्रोल करने लगें? या फिर सरकारों को समय रहते दखल देना चाहिए? सोशल मीडिया अब केवल एक एंटरटेनमेंट प्लेटफॉर्म नहीं है, यह आज की डिजिटल अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा बन चुका है।
आगे क्या?
यह केस अगले कुछ महीनों तक चलेगा और इसका फैसला पूरी दुनिया की निगाहों में होगा। टेक कंपनियों की जवाबदेही और उनके विस्तार की सीमाओं को तय करने के लिए यह ट्रायल एक मिसाल साबित हो सकता है।