नई दिल्ली। जवाहारलाल नेहरू विश्वविद्यालय के भारतीय भाषा केंद्र में प्रसिद्ध समकालीन हिन्दी लेखिका एवम् विचारक क्षमा कौल के साथ संवाद का आयोजन किया गया। उन्होंने अपने व्याख्यान और परिचर्चा में कश्मीरी पंडितों की समस्याओं को साझा किया। अपनी पुस्तक ‘दर्दपुर’ और ‘उन दिनों कश्मीर में’ के माध्यम से कश्मीर की ज्ञान परंपरा और इतिहास की चर्चा करते हुए महाख्यान के विलोपीकरण के बारे में बताया।
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कश्मीरी पंडितों के घर से बेघर होने के दुख को साझा करते हुए बताया कि जब मेरे पास कुछ नहीं था, हम भिखमंगे बन चुके थे तब पूरा भारतीय समाज चुप बैठा था। हम ससशरीर मृत हो चुके थे। देश के किसी भी लेखक ने इस पर लिखना ज़रूरी नहीं समझा। देश में जब सत्य लिखने की ज़रूरत थी तो लेखिका अमृता प्रीतम व्यक्तिगत प्रेम की बात कर रही थी। देश में ‘तमस’ लिखकर झूठा प्रोपोगेंडा फैलाया जा रहा था। वो राष्ट्र की बात नहीं करना चाहते थे।वो महादेश की बात करते हुए कश्मीर कि समस्या से मुँह चुरा रहे थे।हिंदू होने का पापबोध हममें भरा जा रहा था। रचनाकारों ने प्रोपोगेंडा साहित्य लिखा। लेकिन कश्मीर की बात नहीं की।
दिल्ली के अलीपुर में निर्वासित जीवन बिताने के दुख को भी किया साझा
उन्होंने तत्कालीन गृहमंत्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद की बातें करते हुए कहा कि देश पाकिस्तान के हाथों संचालित होने लगा था। लेखक का एक बड़ा वर्ग विमर्श की बातें करके सत्य का अंकन करने से दूर रहा। वो दलित की बात करते हैं हम महादलित हैं। हमारी बातें लेखक क्यों नहीं करते। हमने अपना घर बनाया उस घर में हम नहीं जा सकें। गृह प्रवेश तक नहीं हो सका। हमने दिल्ली के अलीपुर में निर्वासित जीवन बिताया।
हमेशा हमें देश और धर्म का रिश्ता मज़बूत रखना चाहिए। 1339 में पहला नरसंहार हमारा किया गया।1990 में सातवीं बार नरसंहार किया गया। हमारी आर्मी विश्व की सबसे बड़ी मोरल आर्मी रही है।उसके बारे में भी प्रोपोगेंडा फैलाया गया।हमारे जातिवाद ने हमें चुप करा दिया है।अमानवीयता है जातीय जनगणना। संपूर्ण भारत को जाति – पातीं से ऊपर उठकर जीने की बात करना होगा। साधना और अंतर्दृष्टि आवश्यक है।
सही मायने में सृजन करने के लिए हम सिर्फ़ स्थान से विस्थापित नहीं हों रहे बल्कि अपने महाआख्यानक परंपरा से भी दूर होते जा रहें हैं। हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी के आने से कश्मीर में सकारात्मक बदलाव के लक्षण दिखने शुरू हो गए हैं।35 साल से हम संघर्ष कर रहें हैं। संस्कृति की रक्षा के साथ आत्मबल आवश्यक है।
Dialogue in JNU
छात्रों के प्रश्नों का दिया उत्तर
अतिथि लेखक क्षमा कौल का स्वागत करते हुए प्रो. बंदना झा ने कहा साहित्य के परिपेक्ष्य को समझना आवश्यक है। कल्हण की राजतरंगिनी और बिल्हण की पंचशती के देश में हिंसा का तांडव कश्मीर के पंडित कबतक सहते रहेंगे।उन्हें समझने और जानने की आवश्यकता है।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. मलखान सिंह और धन्यवाद ज्ञापन करते हुए डॉ. ज्ञानेंद संतोष ने कहा कि साहित्य की प्रामाणिकता को देखना ज़रूरी है।आजकल लेखक बिना यथार्थ को जाने यथार्थ का आभाष करवाते हैं। सत्य से कोसों दूर साहित्य को रखते हैं। ऐसे में कश्मीर के यथार्थ को जानने के लिए क्षमा कौल जी को पढ़ना अत्यंत आवश्यक है।