नई दिल्ली। मणिपुर विश्वविद्यालय ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) के सहयोग से 30 अगस्त को ‘भारत में मानवाधिकारों पर एक दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम’ किया। मणिपुर विश्वविद्यालय के कोर्ट हॉल में आयोजित इस कार्यक्रम में 100 से अधिक कानूनी विशेषज्ञों, शिक्षाविदों, मानवाधिकार रक्षकों और छात्रों ने हिस्सा लिया।
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कार्यक्रम का समापन एनएचआरसी के महासचिव भरत लाल के भाषण के साथ हुआ। इस मौके पर श्री लाल ने संविधान की प्रस्तावना, मौलिक अधिकारों और संविधान में निहित राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांतों के सही अर्थ के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने नागरिकों को न्याय प्राप्त करने के लिए उपलब्ध संवैधानिक और कानूनी उपायों, विशेष रूप से न्याय प्राप्त करने के लिए अनुच्छेद 32 पर भी बात की। श्री लाल ने नागरिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक-आर्थिक अधिकारों को बनाए रखने में सरकार की जिम्मेदारी को एक बार फिर दोहराया।
महासचिव ने संविधान में निहित लोगों के बीच बंधुत्व की भावना को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर जोर दिया और न्याय प्राप्त करने के लिए हिंसा के बजाय, संवैधानिक और कानूनी प्रावधानों पर भरोसा करने का आग्रह किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि मानवाधिकारों का पालन एक आंतरिक प्रतिबद्धता होनी चाहिए, न कि बाहरी रूप से थोपा गया कर्तव्य।
हिंसा का कोई भी रूप मानवाधिकारों का उल्लंघन
श्री लाल ने इस बात पर जोर दिया कि प्रस्तावना, जो कि संविधान की आत्मा है, इसमें समानता, न्याय, स्वतंत्रता और बंधुत्व के मूल आदर्श समाहित हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि हिंसा का कोई भी रूप मूल रूप से मानवाधिकारों का उल्लंघन है और इस बात पर प्रकाश डाला कि युद्ध, आतंकवाद और हिंसा मानव जीवन एवं सम्मान के लिए सबसे बड़े खतरों में से हैं।
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अपने संबोधन में श्री लाल ने छात्रों और शिक्षकों दोनों से सभी लोगों के मानवाधिकारों के लिए शांति एवं सम्मान को सक्रिय रूप से बढ़ावा देने का आग्रह करते हुए, इस बात पर जोर दिया कि ये प्रयास युवा पीढ़ी के लिए समृद्धि और उज्ज्वल भविष्य सुनिश्चित करने के लिए जरूरी हैं।
उन्होंने गुवाहाटी में एनएचआरसी के हाल ही में आयोजित शिविर पर भी प्रकाश डाला, जहां मणिपुर में कथित मानवाधिकार उल्लंघन के 25 मामलों का समाधान किया गया। कार्यक्रम में मानवाधिकारों के महत्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा करने वाले आठ प्रमुख सत्र शामिल थे। पहले दिन पूर्व डीन प्रो. रमेशचंद्र बोरपात्रगोहेन ने मानवाधिकार सिद्धांतों और प्रथाओं के विहंगावलोकन के साथ सत्रों की शुरुआत की।
इसके बाद धनमाजुरी विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. एन. प्रमोद सिंह ने भारत में मानवाधिकार संस्थानों की भूमिका पर चर्चा की। न्यायमूर्ति केएच नोबिन सिंह ने मानवाधिकार और आपराधिक न्याय प्रणाली के मध्य कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में बताया जबकि श्री कैशम प्रदीप कुमार, अध्यक्ष एमसीपीसीआर ने मणिपुर में बाल अधिकार संबंधी चुनौतियों पर प्रकाश डाला।
विमेन एक्शन फॉर डेवलपमेंट की सचिव श्रीमती सोबिता मंगसताबम ने लैंगिक न्याय में गैर-सरकारी संगठनों की भूमिका पर प्रकाश डाला और मणिपुर के मानवाधिकार कानून नेटवर्क के निदेशक श्री मेइहोबाम राकेश ने गिरफ्तारी और नजरबंदी पर संवैधानिक सुरक्षा उपायों पर विचार किया। इंफाल टाइम्स के मुख्य संपादक रिंकू खुमुकचम ने मानवाधिकारों की रक्षा और उनको बढ़ावा देने में मीडिया की भूमिका पर चर्चा की।
यह कार्यक्रम उत्तर-पूर्व में मानवाधिकार शिक्षा और इसकी हिमायत को आगे बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण कदम है, जिसमें मानवाधिकारों के सम्मान एवं समझ को बढ़ावा देने के लिए एनएचआरसी की निरंतर प्रतिबद्धता है।
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एनएचआरसी मानवाधिकारों की रक्षा और बढ़ावा देने तथा प्रत्येक मनुष्य के साथ सम्मान और गरिमा के साथ व्यवहार करने हेतु, जीवन के एक तरीके के रूप में, केंद्र और विभिन्न राज्य सरकारों, उनके अर्ध-सरकारी संगठनों, शैक्षणिक संस्थानों, गैर-सरकारी संगठनों, मानवाधिकार रक्षकों, विशेष रूप से युवाओं और महिलाओं के साथ भागीदारी में नए उत्साह के साथ काम करना जारी रखे हुए है।