अजमेर लोगसभा सीट
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अजमेर में जाट बनाम जाट का मुकाबला है. इस सीट पर भाजपा ने सांसद भागीरथ चौधरी को फिर मौका दिया है. वहीं लम्बे समय से डेयरी चेयरमैन रहे रामचंद्र चौधरी कांग्रेस से प्रत्याशी हैं. यहां धर्म हर मुद्दे से बड़ा है, ऐसे में कांग्रेस को मुस्लिम क्षेत्रों में अच्छी खासी बढ़त मिलती है. भाजपा राम मंदिर, धारा 370 हटाने, केंद्र सरकार के पाकिस्तान के खिलाफ रवैये जैसे मुद्दे के कारण इस सीट को सुरक्षित मान रही है. जाटों के अलावा यहां रावत, गुर्जर, ब्राह्मण और मुस्लिम वोटर्स का प्रभाव सबसे ज्यादा है.
इस लोकसभा सीट पर पहला चुनाव 1952 में हुआ था. उस समय कांग्रेस के ज्वाला प्रसाद शर्मा सांसद चुने गए थे. हालांकि उसी साल उपचुनाव हुआ और फिर कांग्रेस के ही मुकट बिहारी लाल भार्गव सांसद बन गए. जिसके बाद 1977 के चुनाव में यह सीट जनता पार्टी के खाते में चली गई फिर1989 के चुनाव में यह सीट बीजेपी की झोली में आई.
हालांकि 1998 में कांग्रेस की प्रभा ठाकुर ने बीजेपी का विजय रथ रोकने की कोशिश की, लेकिन 1999 और 2004 का चुनाव जीत कर बीजेपी के रासा सिंह रावत ने जोरदार वापसी की, फिर 2004 में कांग्रेस के टिकट पर सचिन पायलट जीते 2014 में बीजेपी के सांवरलाल जाट और 2018 के उपचुनाव में कांग्रेस के रघु शर्मा यहां से जीते थे. 2014 में मोदी लहर के बाद से हुए हर चुनाव में अजमेर राजनीति का केंद्र बना हुआ है. चाहे लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव। हर चुनाव के समय पीएम नरेंद्र मोदी की सभाएं यहां जरूर हुई. इस बार भी 6 अप्रैल को पीएम मोदी ने पुष्कर में विशाल जनसभा को संबोधित किया. जिसके बाद अजमेर में भाजपा को मजबूत माना जा रहा है.
ख्वाजा की नगरी कहलाने वाले अजमेर क्षेत्र में जनता ने किस प्रत्याशी पर अपना विश्वास जताया है ये तो अब 4 जून को ही पता चल पाएगा.
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