नई दिल्ली। एक देश, एक चुनाव के वादे को मोदी सरकार पूरा करने जा रही है। इस दिशा में सरकार ने पहला कदम उठाते हुए कमेटी का भी गठन कर दिया है। कमेटी के अध्यक्ष पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद बनाए गए हैं। उधर, विपक्षी पार्टियों ने सरकार के इस कदम पर सवाल उठाए हैं।
पढ़ें :- 27 का चुनाव दूर... सियासत भरपूर ! हाथरस केस....सियासत तेज !
कांग्रेस ने सवाल किया है कि अभी इसकी क्या जरूरत है ? पहले महंगाई, बेरोजगारी जैसे मुद्दों का समाधान होना चाहिए। बता दें कि चुनाव कराने की वित्तीय लागत, बार-बार प्रशासनिक अस्थिरता, सुरक्षा बलों की तैनाती में होने वाली परेशानी और राजनीतिक दलों की वित्तीय लागत को देखते हुए मौजूदा सरकार एक देश, एक चुनाव की योजना पर विचार कर रही है।
इसके तहत सरकार लोकसभा और सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ कराना चाहती है। साल 1951-52 में लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए थे। इसके बाद 1957, 1962 और 1967 में भी लोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए।
लेकिन बाद में 1968, 1969 में कुछ विधानसभाओं के समय से पहले भंग होने और 1970 में लोकसभा को समय से पहले भंग होने से यह साथ चुनाव कराने का चक्र बाधित हो गया। यही वजह है कि अब स्थिति ये हो गई है कि हर साल कहीं ना कहीं चुनाव हो रहे होते हैं। ऐसे में सरकार फिर से लोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की संभावनाओं पर विचार कर रही है।