Advertisement
  1. हिन्दी समाचार
  2. देश
  3. गिग वर्कर्स की हड़ताल: सुविधा के पीछे छुपी असुविधा

गिग वर्कर्स की हड़ताल: सुविधा के पीछे छुपी असुविधा

By HO BUREAU 

Updated Date

ON Strike

31 दिसंबर को जब शहर पार्टी की तैयारी में था, उसी दिन देशभर में गिग वर्कर्स ने काम रोक दिया। खाना, किराना, टैक्सी, जिन सेवाओं ने शहरी जीवन को “तुरंत” बना दिया, वही अचानक ठहर गईं। यह हड़ताल सिर्फ़ डिलीवरी रोकने का ऐलान नहीं थी; यह सिस्टम को आईना दिखाने की कोशिश थी।

पढ़ें :- दुर्गा मंदिर से उठी सियासी आँधी: ममता बनर्जी का बयान और उसके मायने

गिग वर्कर्स का सवाल सीधा है, काम पूरा, अधिकार अधूरे क्यों? न्यूनतम भुगतान, बीमार पड़ने पर छुट्टी, महिला कर्मियों की सुरक्षा, बीमा, ये मांगें किसी विलासिता की सूची नहीं, बुनियादी हक़ हैं। प्लेटफ़ॉर्म कंपनियाँ “लचीलापन” बेचती हैं, लेकिन जोखिम पूरा का पूरा मज़दूर पर डाल देती हैं।

डिजिटल अर्थव्यवस्था की चमक में यह सच्चाई अक्सर छिप जाती है कि एल्गोरिदम इंसान नहीं होते। रेटिंग गिरते ही आमदनी गिरती है, सड़क पर हादसा हो तो ज़िम्मेदारी बिखर जाती है। नया साल मनाने से पहले यह हड़ताल याद दिलाती है कि सुविधा की कीमत कोई और चुका रहा है।

शहरों में सेवाएँ प्रभावित हुईं, और उपभोक्ताओं को पहली बार महसूस हुआ कि उनकी रोज़मर्रा की सहूलियत कितनी नाज़ुक है। यह असुविधा अस्थायी है; असुरक्षा स्थायी, अगर नीति नहीं बदली।

सरकार और कंपनियों को तय करना होगा: क्या गिग वर्क “काम” है या सिर्फ़ “क्लिक”? अगर काम है, तो अधिकार भी होंगे। 31 दिसंबर की यह आवाज़ चेतावनी है, नई अर्थव्यवस्था पुराने अन्याय पर नहीं टिक सकती।

पढ़ें :- 2026 India Rules Change: क्या बदलेगा आपकी ज़िंदगी में

सपन दास

Advertisement