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Health Care – सुरक्षित और स्वस्थ भोजन के लिए FSSAI सख्त, भोजन में माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण को रोकने के लिए उठाएगी कदम

By HO BUREAU 

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नई दिल्ली। भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने 18 अगस्त को नई दिल्ली में भोजन में माइक्रोप्लास्टिक संदूषण की बढ़ती चिंता से निपटने के लिए एक अभिनव परियोजना शुरू की है। प्राधिकरण का मानना है कि माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।  यह परियोजना विभिन्न खाद्य उत्पादों में सूक्ष्म और नैनो-प्लास्टिक का पता लगाने के लिए विश्लेषणात्मक तरीके, साथ ही भारत में उनके प्रसार और जोखिम स्तर का आकलन करना है।

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भोजन में बढ़ते प्रदूषण को लेकर भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण ने जताई चिंता

परियोजना के प्राथमिक उद्देश्यों में माइक्रो/नैनो-प्लास्टिक विश्लेषण के लिए मानक प्रोटोकॉल विकसित करना, इंट्रा- और अंतर-प्रयोगशाला तुलना करना और उपभोक्ताओं के बीच माइक्रोप्लास्टिक एक्सपोज़र स्तरों पर महत्वपूर्ण डेटा तैयार करना शामिल है। यह अध्ययन देशभर के प्रमुख अनुसंधान संस्थानों के सहयोग से कार्यान्वित किया जा रहा है, जिसमें सीएसआईआर-इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च (लखनऊ), आईसीएआर-सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फिशरीज टेक्नोलॉजी (कोच्चि) और बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस (पिलानी) शामिल हैं।

एक हालिया रिपोर्ट में खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) ने चीनी और नमक जैसे सामान्य खाद्य पदार्थों में माइक्रोप्लास्टिक की उपस्थिति पर प्रकाश डाला। जबकि रिपोर्ट माइक्रोप्लास्टिक्स के वैश्विक प्रसार को रेखांकित करती है। यह विशेष रूप से भारतीय संदर्भ में मानव स्वास्थ्य और सुरक्षा के निहितार्थ को पूरी तरह से समझने के लिए अधिक मजबूत डेटा की आवश्यकता पर भी जोर देती है।

देश के खाद्य सुरक्षा नियामक के रूप में एफएसएसएआई यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है कि भारतीय उपभोक्ताओं को सुरक्षित और स्वस्थ भोजन मिले। जबकि वैश्विक अध्ययनों ने विभिन्न खाद्य पदार्थों में माइक्रोप्लास्टिक की उपस्थिति पर प्रकाश डाला है। भारत के लिए विशिष्ट विश्वसनीय डेटा उत्पन्न करना अनिवार्य है। यह परियोजना भारतीय भोजन में माइक्रोप्लास्टिक संदूषण की सीमा को समझने में मदद करेगी और सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए प्रभावी नियमों और सुरक्षा मानकों के निर्माण का मार्गदर्शन करेगी।

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इस परियोजना के निष्कर्ष न केवल नियामक कार्रवाइयों को सूचित करेंगे बल्कि माइक्रोप्लास्टिक संदूषण की वैश्विक समझ में भी योगदान देंगे, जिससे भारतीय अनुसंधान इस पर्यावरणीय चुनौती से निपटने के वैश्विक प्रयास का एक अभिन्न अंग बन जाएगा।

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