नई दिल्ली । दुनिया का हर व्यक्ति चाहता है कि उसकी बातों को सुनने के लिए कोई उसके पास हो और एक खास बात यह है कि लोग उसे पसंद करें फिर जब कोई बातें सुन ही रहा है तो उसपर अपनी सहमती भी दे दें। लेकिन जब लोग उनकी बातों को नकारने लगते हैं तो व्यक्ति को रिजेक्शन फील होने लगता है। कई लोग इस रिजेक्शन को दिल पर नहीं लेते हैं लेकिन कई बार कई लोग इस रिजेक्शन को मन में बैठा लेते हैं और ये इस कदर उन पर हावी हो जाती है कि उनकी निजी जिंदगी, दिनचर्या बुरी तरीके से प्रभाव पड़ने लगता है। इस स्थिति को रिजेक्शन ट्रॉमा कहा जाता है। चलिए तो जानते है कि रिजेक्शन ट्रॉमा क्यों होता है इसके लक्षण और बचाव क्या है?
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क्या है रिजेक्शन ट्रॉमा?
बता दें कि रिजेक्शन ट्रॉमा एक तरह की मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रिया है। इसमें व्यक्ति को हर वक्त रिजेक्ट होने का डर सताने लगता है। ये यह समस्या अचानक से नहीं होती है। कई बार बचपन के खराब अनुभव। बीते कुछ महीना या सालों में मिलने वाले रिजेक्शन, काम में रिजेक्शन, अपने करीबी के स्वभाव में बदलाव, रिलेशनशिप में धोखा, भी इसका कारण हो सकता है।
क्या है इसके लक्षण?
- व्यक्ति के आत्मसम्मान में लगातार गिरावट आने लगती है. कॉन्फिडेंस बिल्कुल लो हो जाता है.खुद पर संदेह करने लगता है. हर बुरी चीजों के लिए वह खुद को जिम्मेदार ठहराने लगता है।
- रिजेक्शन ट्रॉमा से पीड़ित लोग अक्सर दूसरे लोगों से मिलने से कतराने लगते हैं.अपने अनुभवों को शेयर करने से बचने लगते हैं. उन्हें ऐसा लगता है कि अगर वह फिर से कुछ कहेंगे तो फिर से लोग उन्हें रिजेक्ट कर देंगे।
कैसे करें बचाव
- आत्म जागरूकता से व्यक्ति को रिजेक्शन ट्रॉमा को कम करने में मदद मिलती है। व्यक्ति को खुद ही समझना होगा कि कैसे नकारात्मक विचार को दूर रखना है।
- नेगेटिव विचारों को दूर रखने के लिए कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी लेने से मदद मिल सकती है।