नई दिल्ली, 04 जनवरी। सुप्रीम कोर्ट नीट पोस्ट ग्रेजुएशन आरक्षण मामले पर कल यानी 5 जनवरी को सुनवाई करेगा। आज फिर केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने चीफ जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली बेंच से कहा कि पीजी में नए छात्रों का दाखिला न होने से जूनियर डॉक्टर परेशान हैं। इसे समझा जाना चाहिए।
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मेडिकल पीजी में नए छात्रों का दाखिला न होने का असर देश भर के मौजूदा पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल छात्रों पर पड़ा क्योंकि उन्हें बतौर जूनियर डॉक्टर अस्पतालों में ज्यादा ड्यूटी करनी पड़ रही है। इससे उनकी पढ़ाई भी प्रभावित हो रही है। इसके खिलाफ देश के अलग-अलग हिस्सों में जूनियर डॉक्टर आंदोलन कर रहे हैं। यही वजह है कि केंद्र ने कोर्ट से मामले की जल्द सुनवाई की मांग की है।
ईडब्लूएस कैटेगरी पर हो रहा पुर्नविचार
केंद्र सरकार ने 25 नवंबर को कहा था कि ईडब्ल्यूएस कैटेगरी के लिए मानदंड पर पुनर्विचार किया जा रहा है। कोर्ट ने नीट-पीजी की काउंसलिंग पर लगी अंतरिम रोक बढ़ा दी थी। सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया था कि केंद्र सरकार समीक्षा कर रहा है कि ईडब्ल्यूएस के लिए आठ लाख रुपया सालाना आमदनी की सीमा रहेगी या नहीं।
कोर्ट ने 6 अक्टूबर को नीट-पीजी की काउंसलिंग पर अंतरिम रोक लगा दी थी। 21 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि वो ईडब्ल्यूएस के आरक्षण की पात्रता निर्धारित करने के लिए आठ लाख रुपये की वार्षिक आय के मानदंड को अपनाने के लिए क्या कवायद की। कोर्ट ने केंद्र से पूछा था कि ओबीसी और ईडब्ल्यूएस श्रेणियों के लिए समान मानदंड कैसे अपनाया जा सकता है जब ईडब्ल्यूएस आरक्षण में कोई सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ापन नहीं है।
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कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि आपके पास कुछ जनसांख्यिकीय या सामाजिक-आर्थिक डाटा होना चाहिए। आप हवा में सिर्फ आठ लाख नहीं निकाल सकते हैं। आप आठ लाख रुपये की सीमा को लागू करके असमान को समान बना रहे हैं। कोर्ट ने कहा था कि ईडब्ल्यूएस मानदंड एक नीतिगत मामला है, इसलिए इसकी संवैधानिकता को निर्धारित करने के लिए अपनाए गए कारकों को जानना जरुरी है।
दरअसल नीट परीक्षाओं के अखिल भारतीय कोटे में इस वर्ष ईडब्ल्यूएस के लिए दस फीसदी आरक्षण लागू करने को चुनौती देते हुए कई याचिकाएं दायर की गई हैं। याचिकाओं में इस वर्ष नीट में ईडब्ल्यूएस आरक्षण लागू नहीं करने का अंतरिम आदेश देने की भी मांग की गई है।