कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए कहा है कि वह हाल ही में हुई दोनों सर्वदलीय बैठकों में शामिल नहीं हुए। रमेश ने इसे लोकतंत्र के प्रति प्रधानमंत्री की उदासीनता बताया और कहा कि जब विपक्ष सरकार से जवाब मांगता है, तो पीएम अनुपस्थित रहते हैं। यह टिप्पणी संसद सत्र से पहले राजनीतिक हलचलों को और तेज कर सकती है।
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कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पार्टी के प्रमुख प्रवक्ता जयराम रमेश ने एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर सियासी माहौल गरमा दिया है। संसद सत्र से पहले बुलाई गई दोनों सर्वदलीय बैठकों में प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति पर सवाल उठाते हुए रमेश ने कहा कि, “जब लोकतंत्र की बात होती है, तब प्रधानमंत्री पीछे हट जाते हैं।” उन्होंने इसे न केवल लोकतांत्रिक प्रक्रिया की अनदेखी बताया, बल्कि विपक्ष के सवालों से बचने की रणनीति करार दिया।
जयराम रमेश ने कहा कि सर्वदलीय बैठकें संसद में सुचारु कार्यवाही और विपक्ष व सरकार के बीच संवाद के लिए बेहद जरूरी होती हैं। उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब पूरा विपक्ष जिम्मेदारी के साथ चर्चा के लिए तैयार था, तब प्रधानमंत्री खुद ही अनुपस्थित थे।
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने मिलकर बैठक में कई महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाया – मंहगाई, बेरोजगारी, मणिपुर हिंसा, जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी हमले और चुनाव आयोग की निष्पक्षता। विपक्ष का आरोप है कि इन गंभीर मामलों पर प्रधानमंत्री की चुप्पी और उनकी अनुपस्थिति, देश की संवैधानिक संस्थाओं के प्रति उनकी उदासीनता को दर्शाती है।
रमेश ने यह भी कहा, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को ‘मन की बात’ तो सुनाते हैं, लेकिन संसद में विपक्ष के मन की बात सुनने को तैयार नहीं हैं।”
सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेताओं ने इस टिप्पणी को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री की व्यस्तताओं के बावजूद उनकी सरकार संवाद के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने जोर देकर कहा कि बैठक में रक्षा मंत्री, गृहमंत्री और संसदीय कार्य मंत्री जैसे वरिष्ठ नेता मौजूद थे जिन्होंने विपक्ष की हर बात को सुना।
हालांकि, विपक्ष इस सफाई से संतुष्ट नहीं है और उसने ऐलान किया है कि वे संसद सत्र के दौरान इन मुद्दों को बार-बार उठाएंगे।
यह बयान ऐसे समय आया है जब देश लोकसभा चुनाव 2024 की ओर बढ़ रहा है। विपक्ष सरकार पर जनता से जुड़ाव की कमी और संवादहीन शासन प्रणाली के आरोप लगा रहा है। जयराम रमेश का यह बयान न केवल संसद के भीतर बल्कि बाहर भी बहस को तेज करेगा, खासकर तब जब सरकार और विपक्ष दोनों चुनावी मोड में आ चुके हैं।
सर्वदलीय बैठक को जहां राजनीतिक सौहार्द का प्रतीक माना जाता है, वहां प्रधानमंत्री का लगातार अनुपस्थित रहना, विपक्ष को सरकार को घेरने का बड़ा मौका दे रहा है।