न्यूज़ीलैंड की संसद में Māori सांसदों ने विरोधस्वरूप पारंपरिक हाका किया, जिसके चलते हाना-रावहिती मैपी-क्लार्क सहित कई नेताओं को निलंबित कर दिया गया। यह विरोध मूलनिवासी अधिकारों और राजनीतिक स्वर को दबाने के खिलाफ था। इस कदम को कई लोगों ने सांस्कृतिक असहमति और स्वाभिमान की अभिव्यक्ति बताया है। संसद में Māori समुदाय की आवाज को दबाने की कोशिशों पर अब वैश्विक बहस छिड़ गई है।
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न्यूज़ीलैंड की राजनीति में इन दिनों एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया है, जब Māori समुदाय से संबंधित कई सांसदों को संसद से निलंबित कर दिया गया। इन सांसदों ने संसद में पारंपरिक हाका (Haka) प्रदर्शन करते हुए विरोध जताया। इस विरोध का नेतृत्व युवा और मुखर नेता हाना-रावहिती मैपी-क्लार्क (Hana-Rawhiti Maipi-Clarke) ने किया।
यह विरोध Māori समुदाय के साथ हो रहे कथित अन्याय और उनके अधिकारों को दबाने के खिलाफ था। संसद में हाका प्रदर्शन करना एक गहरा सांस्कृतिक प्रतीक है, जो Māori लोगों की आत्मा, सम्मान और संघर्ष की आवाज़ को दर्शाता है। हालांकि संसद के नियमों के तहत इसे “विघटनकारी आचरण” कहकर देखा गया और इसमें शामिल सभी सांसदों को कुछ समय के लिए निलंबित कर दिया गया।
हाना-रावहिती मैपी-क्लार्क न्यूज़ीलैंड की सबसे युवा Māori महिला सांसदों में से एक हैं और उन्होंने संसद में यह स्पष्ट किया कि यह प्रदर्शन कोई उग्र राजनीतिक एजेंडा नहीं, बल्कि Māori लोगों की पीड़ा और संस्कृति की अभिव्यक्ति थी। उनका कहना था कि जब सरकार Māori समुदाय की आवाज को अनसुना करती है, तब पारंपरिक तरीकों से प्रतिरोध आवश्यक हो जाता है।
निलंबन के बाद देशभर में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। Māori समुदाय और अन्य मानवाधिकार संगठनों ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सांस्कृतिक अस्मिता पर हमला बताया है। यह मुद्दा अब केवल एक संसदीय घटना नहीं रह गया, बल्कि यह एक सांस्कृतिक संघर्ष का रूप ले चुका है।
न्यूज़ीलैंड की संसद में Māori समुदाय की उपस्थिति ऐतिहासिक रही है, लेकिन आज भी उन्हें पूर्ण समानता और सम्मान की दिशा में संघर्ष करना पड़ रहा है। यह घटना दर्शाती है कि राजनीतिक मंचों पर सांस्कृतिक प्रतीकों और आवाजों को किस तरह से नियंत्रित किया जा रहा है।
विश्लेषण के अनुसार, यह निर्णय सरकार की उस सोच को दर्शाता है, जो लोकतंत्र में विरोध के स्थान को सीमित करने का प्रयास करती है। Māori नेता यह मानते हैं कि यदि उनकी परंपराएं भी संसद में स्वीकार्य नहीं हैं, तो यह केवल नियमों का उल्लंघन नहीं बल्कि पहचान को दबाने का प्रयास है।
भारत जैसे विविधताओं वाले देश के लिए यह घटना कई सबक देती है। जहां हर सांस्कृतिक समुदाय की आवाज़ को सम्मान और प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए, वहीं लोकतांत्रिक संस्थानों में उनकी संस्कृति की जगह सुनिश्चित करना भी ज़रूरी है।
अब देखना यह होगा कि न्यूज़ीलैंड सरकार इस मामले में क्या रुख अपनाती है। क्या वह Māori सांसदों के निलंबन को वापस लेगी? क्या वह इस मुद्दे को बातचीत से हल करेगी या फिर विरोध को और बढ़ावा मिलेगा?
हाना-रावहिती मैपी-क्लार्क और उनके साथियों ने जो साहसिक कदम उठाया है, वह आज Māori युवाओं के लिए प्रेरणा बन गया है। यह आंदोलन अब संसद से निकलकर सड़कों पर पहुंच चुका है और यह संघर्ष Māori पहचान और अधिकारों की पुनःस्थापना की दिशा में एक महत्वपूर्ण मोड़ बन सकता है।
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