बिहार में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है और राजनीतिक दलों की गतिविधियाँ तेज़ हो गई हैं। इस बार चुनाव से पहले सबसे बड़ी चुनौती सीट बंटवारे की है। सत्ताधारी गठबंधन एनडीए और विपक्षी महागठबंधन (INDIA bloc) दोनों ही खेमों में हिस्सेदारी को लेकर खींचतान खुलकर सामने आ रही है
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बिहार में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है और राजनीतिक दलों की गतिविधियाँ तेज़ हो गई हैं। इस बार चुनाव से पहले सबसे बड़ी चुनौती सीट बंटवारे की है। सत्ताधारी गठबंधन एनडीए और विपक्षी महागठबंधन (INDIA bloc) दोनों ही खेमों में हिस्सेदारी को लेकर खींचतान खुलकर सामने आ रही है।
महागठबंधन के घटक दल सीटों की संख्या को लेकर एक-दूसरे से सहमत नहीं हो पा रहे हैं। विकासशील इंसान पार्टी (VIP) ने तो यहाँ तक घोषणा कर दी कि वह राज्य की 60 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी। यह बयान गठबंधन की एकजुटता पर सवाल खड़े करता है।
आरजेडी नेता तेजस्वी यादव सभी दलों को साथ लाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन छोटे दलों की महत्वाकांक्षाओं के चलते एक साझा फार्मूला निकल पाना मुश्किल होता दिख रहा है। अगर यह असंतुलन बना रहा तो चुनाव में महागठबंधन की पकड़ कमजोर हो सकती है।
दूसरी ओर, एनडीए गठबंधन भी सीट बंटवारे को लेकर पूरी तरह सहज नहीं है। लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगें पूरी नहीं हुईं तो वे अलग चुनाव लड़ सकते हैं। इसने बीजेपी और जेडीयू के बीच बने संतुलन को चुनौतीपूर्ण बना दिया है।
हालांकि अंदरूनी सूत्रों का मानना है कि बीजेपी और जेडीयू लगभग बराबरी के आधार पर सीटें बांटने पर सहमत हो चुके हैं। छोटे दलों जैसे हम पार्टी (जीतन राम मांझी) और रालोसपा (उपेंद्र कुशवाहा) को भी सीमित सीटें देकर संतुष्ट करने की कोशिश की जा रही है। इससे संकेत मिलता है कि गठबंधन का फार्मूला लगभग तय है, बस आधिकारिक घोषणा बाकी है।
महागठबंधन में जहां छोटे दलों का दबाव तालमेल बिगाड़ रहा है, वहीं एनडीए में लोक जनशक्ति पार्टी की नाराज़गी सबसे बड़ी बाधा बन सकती है। अगर दोनों पक्ष समय रहते समझौते तक पहुँच जाते हैं, तो चुनावी मैदान में उन्हें मजबूती मिल सकती है। लेकिन यदि मतभेद गहराए, तो इसका सीधा असर वोटों के बिखराव और नतीजों पर पड़ेगा।
बिहार चुनाव 2025 केवल विचारधाराओं की लड़ाई नहीं, बल्कि सीट बंटवारे की कसौटी भी है। महागठबंधन के भीतर तालमेल और एनडीए में अनुशासन दोनों की अगली परीक्षा यही होगी। आने वाले दिनों में यह साफ होगा कि कौन-सा गठबंधन मतभेदों को पीछे छोड़कर मजबूत तरीके से जनता के सामने उतर पाता है और कौन-सा अंदरूनी असंतोष का शिकार बनता है।