बसपा सुप्रीमो मायावती ने महंगाई को लेकर बीजेपी पर निशाना साधा है ट्वीट करते हुए उन्होंने कहा कि देश में महंगाई से लोग परेशान हैं। प्रदेश की जनता में बेचैनी, हताशा और निराशा है। भाजपा सरकार में महंगाई, बेरोजगारी और गरीबी असली राजनीतिक मुद्दा नहीं रहा। सरकारें भी इन मुद्दों को लेकर उदासीन दिखाई दे रही है।
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1. देश में व्याप्त गरीबी व पिछड़ेपन के लाचार जीवन में महंगाई की मार तथा बेरोजगारी से त्रस्त मेहनतकश लोग हर दिन आटा, दाल-चावल व नमक-तेल आदि के महंगे दाम को लेकर सरकार को कोसते रहते हैं, किन्तु वह इसका जवाब देने व उपाय ढूंढने के बजाय ज्यादातर खामोश बनी रहती है, ऐसा क्यों? (1/3)
— Mayawati (@Mayawati) November 26, 2022
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महंगाई पर वार करते बसपा सुप्रीमों ने आगे लिखा कि देश में व्याप्त गरीबी व पिछड़ेपन के लाचार जीवन में महंगाई की मार तथा बेरोजगारी से त्रस्त मेहनतकश लोग हर दिन आटा, दाल-चावल व नमक-तेल आदि के महंगे दाम को लेकर सरकार को कोसते रहते हैं, किन्तु वह इसका जवाब देने व उपाय ढूंढने के बजाय ज्यादातर खामोश बनी रहती है।
2. लेकिन अब आटा का दाम भी एक साल में काफी महंगा होकर लगभग 37 रुपए प्रति किलो तक पहुँच जाने से लोगों में बेचैनी, हताशा व निराशा है, तो ऐसे में सरकार को अपनी निश्चिन्तता व लापरवाही आदि त्यागकर, इसके समाधान के गंभीर उपाय में जी-जान से जुट जाना ही समय की सबसे बड़ी माँग। (2/3)
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उन्होंने आगे कहा कि अब आटा का दाम भी एक साल में काफी महंगा होकर लगभग 37 रुपए प्रति किलो तक पहुँच जाने से लोगों में बेचैनी, हताशा व निराशा है, तो ऐसे में सरकार को अपनी निश्चिन्तता व लापरवाही आदि त्यागकर, इसके समाधान के गंभीर उपाय में जी-जान से जुट जाना ही समय की सबसे बड़ी माँग।
3. भारत जैसे विशाल आबादी वाले देश में यहाँ वर्षों से व्याप्त विचलित करने वाली गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई आदि अब असली राजनीतिक एवं चुनावी चिन्ता नहीं रही है, तब भी सभी सरकारों को इनके प्रति उदासीन बने रहकर देश की प्रगति व जनता की उन्नति में रोढ़ा बने रहना अनुचित व दुःखद। (3/3)
— Mayawati (@Mayawati) November 26, 2022
बसपा सुप्रीमों मायावती ने आगे कहा कि भारत जैसे विशाल आबादी वाले देश में यहाँ वर्षों से व्याप्त विचलित करने वाली गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई आदि अब असली राजनीतिक एवं चुनावी चिन्ता नहीं रही है, तब भी सभी सरकारों को इनके प्रति उदासीन बने रहकर देश की प्रगति व जनता की उन्नति में रोढ़ा बने रहना अनुचित व दुःखद।