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पैन्गोंग झील पर अपने क्षेत्र में पुल बना रही है चीनी सेना

भारत के ‘ऑपरेशन स्नो लेपर्ड’ में मात खाने के बाद चीन ने महसूस की थी इस पुल की जरूरत निर्माणाधीन पुल चीन के खुर्नक से झील के दक्षिणी किनारे तक 180 किमी. के लूप को काट देगा

By इंडिया वॉइस 

Updated Date

नई दिल्ली, 04 जनवरी। भारतीय सेना का मुकाबला करने के लिए चीन अपने क्षेत्र में पैन्गोंग झील पर पुल का निर्माण कर रहा है। चीन ने इस पुल के निर्माण की जरूरत अगस्त, 2020 में भारत के उस ‘ऑपरेशन स्नो लेपर्ड’ में मात खाने के बाद महसूस की थी जिसमें भारतीय सेना ने पैन्गोंग झील के दक्षिणी किनारे की आधा दर्जन रणनीतिक चोटियों पर तिरंगा फहरा दिया था।

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चीनी सेना को इस ऑपरेशन की जरा भी भनक नहीं लग पाई थी लेकिन अब निर्माणाधीन पुल रुडोक के माध्यम से चीन के खुर्नक से झील के दक्षिणी किनारे तक 180 किमी. के लूप को काट देगा। एलएसी के पास 60 हजार चीनी सैनिक तैनात हैं, इसलिए भारत ने भी पूर्वी लद्दाख में निगरानी बढ़ा दी है।

झील का दो तिहाई हिस्सा चीन के पास

पूर्वी लद्दाख के पहाड़ों के बीच पैन्गोंग झील भारत से तिब्बत तक 134 किलोमीटर लंबी है। समुद्री तल से 14 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित झील का दो तिहाई हिस्सा चीन के पास है, जबकि करीब 45 किलोमीटर का हिस्सा भारत के पास है। चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) पैन्गोंग झील के सबसे संकरे हिस्से खुर्नक के अपने क्षेत्र में एक पुल का निर्माण कर रही है। यह पुल रुडोक के माध्यम से खुर्नक से झील के दक्षिण तट तक 180 किमी के लूप को काट देगा। यह पुल बनने के बाद खुर्नक से रुडोक तक की दूरी 40-50 किलोमीटर रह जाएगी जबकि पहले लगभग 200 किलोमीटर थी।

जनरल एमएम नरवणे की अगुवाई में चला था ‘ऑपरेशन स्नो लेपर्ड’ 

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भारत और चीन के बीच मई, 2020 से शुरू हुए गतिरोध के बीच भारतीय सेना ने पैन्गोंग झील के दक्षिणी किनारे पर 29/30 अगस्त, 2020 को ‘ऑपरेशन स्नो लेपर्ड’ चलाया। भारतीय थलसेना के प्रमुख जनरल एमएम नरवणे की अगुवाई में इस ऑपरेशन की चीनी सेना को जरा भी भनक नहीं लगने दी गई।

आख़िरकार रणनीतिक ऊंचाइयों वाली पहाड़ियों ब्लैक टॉप, गुरुंग हिल, रेजांग ला, मगर हिल, रेचिंग ला, हेलमेट टॉप पर भारतीयों सैनिकों ने तिरंगा फहरा दिया था। चीनी सेना की हर चाल को बेनकाब करने का नतीजा रहा कि चीन को भारत से समझौता करने के लिए इसी साल की शुरुआत फरवरी में घुटने टेकने पड़े। चीन ने खुद ही तंबू उखाड़े, बंकर तोड़े और पैन्गोंग झील के दोनों किनारों को खाली करके चीन को वापस अपनी हद में जाना पड़ा।

पुल के निर्माण से 40-50 किलोमीटर रह जाएगी दूरी 

भारत से मुंह की खाने के बाद चीनी सेना ने पैन्गोंग झील के अपने क्षेत्र में एक पुल के निर्माण की इसलिए जरूरत महसूस की क्योंकि उसे भारतीय सेना के ‘ऑपरेशन स्नो लेपर्ड’ की जरा भी भनक नहीं लग पाई थी। चीनी सेना झील के सबसे संकरे हिस्से खुर्नक के अपने क्षेत्र में एक पुल का निर्माण कर रही है।

यह पुल रुडोक के माध्यम से खुर्नक से झील के दक्षिण तट तक 180 किमी के लूप को काट देगा। यह पुल बनने के बाद खुर्नक से रुडोक तक की दूरी 40-50 किलोमीटर रह जाएगी जबकि पहले लगभग 200 किलोमीटर थी। इसी दूरी की वजह से चीनी सेना रणनीतिक ऊंचाइयों वाली पहाड़ियों ब्लैक टॉप, गुरुंग हिल, रेजांग ला, मगर हिल, रेचिंग ला, हेलमेट टॉप पर भारतीय कब्ज़ा होने के 48 घंटे बाद पहुंच पाई थी।

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पुल के अलावा सड़क निर्माण का भी हो रहा कार्य 

रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने कहा कि भविष्य में भारतीय सेना के किसी भी ऑपरेशन का मुकाबला करने के लिए इस पुल को पूर्व-निर्मित संरचनाओं के साथ बनाया जा रहा है।PLA ने पुल से आने-जाने के लिए सड़क बनाने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है, ताकि सैनिकों और निर्माण सामग्री को तेजी से वहां तक पहुंचाया जा सके।

चीनी सेना ने तेजी से पुल का निर्माण करने के लिए कई कदम उठाए हैं। इसके अलावा चीनी सेना यहां नई सड़कें और पुल बना रही है। चीन ने भारतीय सैनिकों को दरकिनार करने के लिए मोल्दो गैरीसन के लिए एक नई सड़क बनाई है। चीन ने गतिरोध के दौरान इस सड़क पर काम शुरू किया था और 2021 के मध्य में ब्लैक टॉपिंग को पूरा किया था।

60 हजार चीनी सैनिक तैनात हैं 

पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) का लक्ष्य भविष्य में भारतीय बलों के किसी भी संभावित अभियान का मुकाबला करने के लिए कई मार्ग बनाना है। चीन ने गतिरोध के दौरान भी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर अपने बुनियादी ढांचे का निर्माण तेज किया है। इसमें नई सड़कों का निर्माण, सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल साइट, हेलीपोर्ट, आवास आदि शामिल हैं।

इसके विपरीत भारत ने भी एलएसी के साथ नई सड़कों, सुरंगों, भूमिगत गोला-बारूद डिपो के निर्माण और नए युद्धक उपकरणों को शामिल करने के साथ कई बुनियादी ढांचे का निर्माण किया है। एलएसी के पास 60 हजार चीनी सैनिक तैनात हैं, इसलिए भारत ने भी पूर्वी लद्दाख में निगरानी बढ़ा दी है।

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