पिछले सप्ताह जम्मू में एक ही दिन में 380 मिमी से अधिक बारिश हुई, जो 1910 के बाद से अब तक का सबसे ऊँचा स्तर है। उधमपुर जिले में तो हालात और भी भयावह रहे, जहाँ 629 मिमी से अधिक वर्षा दर्ज की गई। इन बारिशों ने पूरे क्षेत्र में भूस्खलन और जलभराव की स्थिति पैदा कर दी। जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग और कई रेल सेवाएँ बाधित हो चुकी हैं। लोगों की आवाजाही ठप है और राहत कार्य मुश्किल परिस्थितियों में चल रहे हैं।
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इंसानी जीवन पर असर
सबसे बड़ा असर सीधे तौर पर आम लोगों पर पड़ा है। जम्मू क्षेत्र के कई गाँवों और कस्बों में घर पूरी तरह बह गए हैं। दर्जनों परिवार बेघर हो गए हैं। वृद्ध और छोटे बच्चों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाना राहत दलों के लिए सबसे कठिन काम बन गया है। यात्रियों के लिए भी हालात भयावह हैं- माता वैष्णो देवी जाने वाले कई श्रद्धालु भूस्खलन की चपेट में आ गए, जिनमें कुछ की मौत भी हुई है।
बाढ़ ने रोज़गार और आजीविका को भी तहस-नहस कर दिया है। खेतों में खड़ी फसलें पूरी तरह डूब चुकी हैं, मवेशी बह गए या भूख से मरने की कगार पर हैं। ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाने वाली पशुपालन अब संकट में है।
जानवर और पर्यावरण
इस आपदा का असर जानवरों पर भी गहरा है। गाँवों के पालतू पशु तो प्रभावित हुए ही हैं, जंगलों में रहने वाले वन्यजीव भी बाढ़ और भूस्खलन से बेघर हो रहे हैं। उनके आवास नष्ट हो रहे हैं और कई पशु पानी में बह गए हैं। यह पर्यावरणीय असंतुलन लंबे समय तक असर डाल सकता है।
टूटी सड़कें और ठप संचार
बाढ़ ने सड़कों को पूरी तरह क्षतिग्रस्त कर दिया है। कई जगहों पर सड़कें दरक गईं और पुल टूट गए हैं। अस्पतालों तक पहुँच बंद हो चुकी है, जिससे बीमार और घायल लोग इलाज से वंचित हैं। इसके साथ ही मोबाइल नेटवर्क और इंटरनेट सेवाएँ भी ठप हो गई हैं। लोग न तो अपने परिजनों से संपर्क कर पा रहे हैं, न ही प्रशासन से मदद माँग पा रहे हैं। 24 घंटे से अधिक समय तक पूरे जम्मू क्षेत्र में डिजिटल ब्लैकआउट की स्थिति रही। इस कारण राहत कार्यों का समन्वय भी बाधित हुआ।
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जलवायु परिवर्तन की चेतावनी
विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की आपदाएँ अब जलवायु परिवर्तन के कारण और अधिक बढ़ रही हैं। अंधाधुंध शहरीकरण, जंगलों की कटाई और नदियों के प्राकृतिक प्रवाह में हस्तक्षेप ने हालात को और बिगाड़ा है। हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने राज्यों को पर्यावरण संरक्षण की दिशा में ठोस कदम उठाने के निर्देश भी दिए हैं।
हमारी जिम्मेदारी
यह समय केवल सरकार के प्रयासों पर निर्भर रहने का नहीं है। हम सभी को मिलकर जागरूकता फैलाने और राहत कार्यों में मदद करने की ज़रूरत है।
1. विश्वसनीय संस्थाओं को दान देकर प्रभावित परिवारों तक भोजन, दवाइयाँ और आश्रय पहुँचाने में सहयोग किया जा सकता है।
2. सोशल मीडिया और अन्य मंचों पर सही और विश्वसनीय जानकारी साझा करके भी मदद की जा सकती है।
3. स्वयंसेवी संगठन और युवा डिजिटल माध्यम से प्रभावित क्षेत्रों का नक्शा तैयार कर राहत कार्यों का मार्गदर्शन कर सकते हैं।
जम्मू के लोग इस समय गहरी पीड़ा और कठिनाई से गुजर रहे हैं। उनका घर-बार, रोज़गार और संचार सब कुछ ठप है। इस कठिन घड़ी में पूरे देश को उनके साथ खड़े होने की ज़रूरत है, ताकि वे फिर से अपनी ज़िंदगी पटरी पर ला सकें।