पुरी की जगन्नाथ यात्रा विश्व प्रसिद्ध है। हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि से रथ यात्रा निकलती है।
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नई दिल्ली। पुरी की जगन्नाथ यात्रा विश्व प्रसिद्ध है। हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि से रथ यात्रा निकलती है। इस दौरान भगवान जगन्नाथ के अलावा उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा भी रथ पर सवार होकर जनता का हाल जानने निकलते हैं।
मान्यता है कि जगन्नाथ रथयात्रा के दर्शन मात्र से व्यक्ति के समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं। रथयात्रा में विशालकाय रथों का एक अपना महत्व है। इस साल जगन्नाथ रथयात्रा 20 जून को शुरू होगी। जगन्नाथ रथ यात्रा की शुरुआत को लेकर कई कथाएं प्रचलित है।
एक कथा के अनुसार एक बार देवी सुभद्रा ने अपने भाई श्रीकृष्ण और बलराम से द्वारिका दर्शन की इच्छा जाहिर की, जिसे पूरी करने के लिए तीनों रथ पर सवार होकर द्वारका नगर भ्रमण पर निकले तभी से रथयात्रा हर साल होती है। भगवान जग्गनाथ, बलभद्र व सुभद्रा देवी के रथ नीम की पवित्र और परिपक्व लकड़ियों से बनाये जाते है।
इन रथों के निर्माण में किसी भी प्रकार के कील या कांटे या अन्य किसी धातु का प्रयोग नहीं होता है। सभी रथ इसमें इतनी हल्की लकड़ियां होती है कि रथ को आसानी से खींचा जा सकता है। 832 लकड़ी के टुकड़ों से बना जगन्नाथ जी का रथ 16 पहियों का होता है, जिसकी ऊंचाई 13 मीटर तक होती है। इसका रंग लाल और पीला होता है।
गरुड़ध्वज, कपिध्वज, नंदीघोष ये भगवान जग्गनाथ के रथ के नाम हैं। रथ की ध्वजा यानी झंडा त्रिलोक्यवाहिनी कहलाता है. रथ को जिस रस्सी से खींचा जाता है, वह शंखचूड़ नाम से जानी जाती है.भगवान जगन्नाथ रथ के रक्षक भगवान विष्णु के वाहन पक्षीराज गरुड़ हैं।
सुभद्राजी के रथ पर होता है देवी दुर्गा का प्रतीक
सुभद्राजी के रथ पर देवी दुर्गा का प्रतीक होता है। देवी सुभद्रा के रथ का नाम देवदलन है। लाल और काले रंग का ये रथ 12.9 मीटर ऊंचा होता है। रथ के रक्षक जयदुर्गा व सारथी अर्जुन होते हैं. इसे खींचने वाली रस्सी को स्वर्णचुड़ा कहते हैं।