भारत और यूरोपीय संघ (EU) के रिश्तों में इस समय एक नई गर्माहट है। चाहे Indo-Pacific में रणनीतिक तालमेल की बात हो या Free Trade Agreement (FTA) की जटिल बातचीत—दोनों पक्षों ने तय कर लिया है कि अब ‘धीरे-धीरे’ वाला दौर ख़त्म, और तेज़ रफ़्तार की ज़रूरत है।
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भारत और यूरोपीय संघ (EU) के रिश्तों में इस समय एक नई गर्माहट है। चाहे Indo-Pacific में रणनीतिक तालमेल की बात हो या Free Trade Agreement (FTA) की जटिल बातचीत—दोनों पक्षों ने तय कर लिया है कि अब ‘धीरे-धीरे’ वाला दौर ख़त्म, और तेज़ रफ़्तार की ज़रूरत है।
EU, दुनिया का सबसे बड़ा ट्रेड ब्लॉक है और भारत, दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक।
भारत के लिए EU सबसे बड़ा निर्यात बाज़ारों में गिना जाता है।
EU को भारत से दवाइयाँ, टेक्सटाइल, IT सेवाएँ और ऑटो पार्ट्स जैसे सेक्टर्स में सप्लाई मिलती है।
बदले में भारत को EU से एडवांस्ड टेक्नोलॉजी, इंवेस्टमेंट और क्लीन एनर्जी में सहयोग मिलता है।
इसलिए दोनों के बीच रिश्ते मज़बूत होना सिर्फ़ राजनीति का सवाल नहीं, बल्कि भविष्य की अर्थव्यवस्था का सवाल भी है।
इस हफ़्ते दिल्ली में भारत और EU के प्रतिनिधि मिले और FTA को लेकर बातचीत आगे बढ़ाई। जल्द ही ब्रसेल्स में अगला राउंड होने वाला है।
1. ट्रेड और इन्वेस्टमेंट: टैरिफ घटाने और मार्केट एक्सेस बढ़ाने पर बातचीत।
2. काउंटर-टेररिज़्म: दोनों पक्ष मिलकर सुरक्षा सहयोग को मज़बूत करने की कोशिश कर रहे हैं।
3. Indo-Pacific: चीन के बढ़ते प्रभाव के बीच, भारत और EU दोनों ही क्षेत्र में स्थिरता और स्वतंत्र नौवहन को अहम मानते हैं।
FTA की बातचीत आसान नहीं है। भारत कृषि और डेयरी सेक्टर को लेकर सतर्क है, जबकि EU पर्यावरण और लेबर स्टैंडर्ड्स पर सख्ती दिखा रहा है। इसके अलावा, डेटा प्रोटेक्शन और डिजिटल ट्रेड जैसे नए मुद्दे भी टेबल पर हैं।
विशेषज्ञ कहते हैं कि अगर ये डील हो जाती है तो यह अब तक की सबसे व्यापक साझेदारी होगी, जो दोनों अर्थव्यवस्थाओं के लिए बड़ा गेमचेंजर साबित होगी।
17 सितंबर को EU एक नया Strategic Agenda 2030 लॉन्च करने वाला है, जिसमें भारत को प्राथमिकता दी गई है। वहीं, भारतीय नेताओं के यूरोप दौरों और यूरोपीय नेताओं की दिल्ली यात्रा से साफ है कि यह रिश्ता अब “डिप्लोमैटिक शिष्टाचार” से आगे बढ़कर “स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप” की दिशा में है।
भारतीय स्टार्टअप्स और IT कंपनियाँ इस डील से यूरोपीय बाज़ारों तक आसान पहुंच की उम्मीद कर रही हैं।
वहीं, यूरोपीय कंपनियाँ भारत के तेज़ी से बढ़ते इंफ्रास्ट्रक्चर और ग्रीन एनर्जी सेक्टर्स में निवेश करना चाहती हैं।
आम जनता के लिए इसका मतलब होगा—सस्ती यूरोपीय प्रोडक्ट्स और भारत से यूरोप को एक्सपोर्ट बढ़ने से नए रोजगार के मौके।
भारत–EU रिश्तों की गाड़ी अब सिर्फ़ कूटनीति तक सीमित नहीं है। यह व्यापार, सुरक्षा और रणनीति का पूरा पैकेज बन चुका है। Indo-Pacific में शक्ति संतुलन से लेकर वैश्विक सप्लाई चेन तक—दोनों की साझेदारी आने वाले दशक की दिशा तय करेगी।
अगर FTA सफल होता है, तो यह न सिर्फ़ दोनों पक्षों की अर्थव्यवस्थाओं को नया पंख देगा बल्कि दुनिया को भी संदेश देगा—कि लोकतांत्रिक साझेदार मिलकर ग्लोबल ऑर्डर को नया रूप दे सकते हैं।
फिलहाल इतना तय है कि भारत और EU की यह नई दोस्ती अब “slow burn” नहीं, बल्कि “fast track romance” मोड में है।