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जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने ली भारत के 50 वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ यूयू ललित के बाद भारत के 50वें मुख्य न्यायाधीश बने। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें शपथ दिलाई।

By इंडिया वॉइस 

Updated Date

India’s 50th CJI: सुप्रीम कोर्ट के जज डी वाई चंद्रचूड़ ने बुधवार को भारत के 50वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में भारत के मुख्य न्यायाधीश के पद की शपथ दिलाई। शपथ ग्रहण पूरा होने के साथ, चंद्रचूड़ 50 वें सीएचआई बन गए, जिन्होंने न्यायमूर्ति यूयू ललित का स्थान लिया, जिन्होंने चंद्रचूड़ के नाम की सिफारिश की। जस्टिस चंद्रचूड़ का कार्यकाल 10 नवंबर, 2024 तक रहेगा। जस्टिस चंद्रचूड़ सुप्रीम कोर्ट के दूसरे सबसे वरिष्ठ जज हैं।

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11 नवंबर, 1959 को पैदा हुए जस्टिस चंद्रचूड़ को 13 मई, 2016 को सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया गया था। उनके पिता जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ 2 फरवरी 1978 से 11 जुलाई 1985 तक भारत के 16वें मुख्य न्यायाधीश थे। जस्टिस चंद्रचूड़ 31 अक्टूबर 2013 से सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति तक इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश थे। वह 29 मार्च, 2000 से इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में अपनी नियुक्ति तक बॉम्बे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने 1998 से बॉम्बे हाईकोर्ट में जज के रूप में अपनी नियुक्ति तक भारत के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के रूप में भी काम किया था। उन्हें जून 1998 में बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा एक वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किया गया था।

पिता के कई फैसलों को पलटा
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ अपने पिता के ही कई महत्वपूर्ण फैसलों को पलट चुके हैं। भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 497 को असंवैधानिक करार देना भी शामिल है। 2018 में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की सदस्‍यता वाली पीठ ने पत्नी को पति का जायदाद की तरह पेश करने वाले प्रावधान को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है। इसलिए आईपीसी की धारा 497 निरस्त की जाती है। वर्ष 1985 में तत्‍कालीन सीजेआई वाईवी चंद्रचूड़ के सामने भी आईपीसी की धारा 497 की वैधता का मामला उठा था। तब सुप्रीम कोर्ट ने व्यभिचार को परिभाषित करने वाली इस धारा को यह कहते हुए बरकरार रखा था कि यह असंवैधानिक नहीं है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने 2017 में ही अपने पिता के एक और पुराने फैसले को पलटा था। वो मामला आपातकाल में व्यक्ति की स्वतंत्रता का था।

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