जब भी धर्म और राजनीति की बात होती है तब बहस तेज़ हो जाती है। 29 दिसंबर 2025 को दिया गया यह बयान भी उसी परंपरा का नया अध्याय बन गया है, जहाँ सवाल सिर्फ़ यह नहीं कि क्या बनाया जा रहा है, बल्कि यह भी कि क्यों और किस समय पर बनाया जा रहा है।
Updated Date
29 दिसंबर 2025 को एक बयान आया जिसने पश्चिम बंगाल की सियासत को गर्मा दिया है, जिसने धार्मिक आस्था और सत्ता की राजनीति एक बार फिर आमने-सामने कर दिया है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कोलकाता के न्यू टाउन क्षेत्र में प्रस्तावित “दुर्गा आंगन” परियोजना को लेकर जो कहा, वह केवल एक सांस्कृतिक घोषणा नहीं था, वह एक स्पष्ट राजनीतिक संदेश भी था, जिसे नज़रअंदाज़ करना मुश्किल है।
ममता बनर्जी ने इस परियोजना को बंगाल की सांस्कृतिक पहचान से जोड़ते हुए कहा कि यह स्थान सिर्फ़ पूजा-पाठ तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि एक ऐसा केंद्र बनेगा जहाँ संस्कृति, पर्यटन और रोज़गार, तीनों को बढ़ावा मिलेगा। उनके अनुसार, यहाँ माँ दुर्गा की आराधना पूरे वर्ष होगी और यह बंगाल की परंपरा को वैश्विक मंच तक ले जाएगा।
लेकिन बयान यहीं नहीं रुका। ममता ने उन आरोपों पर भी सीधा पलटवार किया, जिनमें उन्हें “तुष्टिकरण की राजनीति” करने वाली नेता कहा जाता रहा है। उन्होंने साफ़ शब्दों में कहा कि वे खुद को काग़ज़ी नहीं, बल्कि वास्तविक अर्थों में धर्मनिरपेक्ष मानती हैं, जो हर धर्म, हर समुदाय और हर उत्सव में समान रूप से उपस्थित रहती हैं। उनका सवाल था कि जब वे सभी धर्मों के कार्यक्रमों में जाती हैं, तो सिर्फ़ कुछ ही घटनाओं को क्यों बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता है?
इस बयान के सामने आते ही राजनीतिक प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई। विपक्ष ने दुर्गा आंगन को आस्था से ज़्यादा राजनीति से जुड़ा कदम बताया और आरोप लगाया कि धार्मिक भावनाओं को सत्ता के हित में इस्तेमाल किया जा रहा है। उनके अनुसार, जब सरकार सीधे धार्मिक संरचनाओं को आगे बढ़ाती है, तो धर्म और राजनीति की रेखा धुंधली हो जाती है।
असल में, यह विवाद किसी एक मंदिर या परियोजना तक सीमित नहीं है। यह उस बड़े सवाल को सामने लाता है कि क्या सत्ता में बैठा व्यक्ति धार्मिक पहचान को विकास और संस्कृति के नाम पर राजनीतिक रणनीति में बदल सकता है? या फिर यह सचमुच एक सांस्कृतिक पहल है, जिसे राजनीतिक रंग दे दिया गया है?
दुर्गा आंगन अब एक प्रतीक बन चुका है, कुछ के लिए बंगाल की आत्मा का विस्तार, तो कुछ के लिए सत्ता की चतुर चाल। ममता बनर्जी का बयान इसीलिए साधारण नहीं माना जा रहा, क्योंकि उसमें आस्था, जवाबदेही और राजनीतिक आत्मरक्षा, तीनों एक साथ दिखाई देते हैं।
जब भी धर्म और राजनीति की बात होती है तब बहस तेज़ हो जाती है। 29 दिसंबर 2025 को दिया गया यह बयान भी उसी परंपरा का नया अध्याय बन गया है, जहाँ सवाल सिर्फ़ यह नहीं कि क्या बनाया जा रहा है, बल्कि यह भी कि क्यों और किस समय पर बनाया जा रहा है।