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President Elections 2022 : कौन होगा देश का अगला राष्ट्रपति, कई नाम आए सामने, देखें आंकड़ों का खेल, किस पार्टी को मिलेगी दावेदारी?

भारत में राष्ट्रपति चुनाव लड़ने को लेकर कोई सीमा निर्धारित नहीं है। देश का कोई भी नागरिक कितनी भी बार राष्ट्रपति के लिए चुनाव लड़ सकता है।

By इंडिया वॉइस 

Updated Date

नई दिल्ली, 13 जून। इस बार होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में बीजेपी या NDA उम्मीदवार कौन होगा ये फिलहाल बड़ा सवाल बना हुआ है। बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी इसी इंतजार में हैं कि NDA की ओर से किसे उम्मीदवार बनाया जाता है। अगर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को NDA का उम्मीदवार पसंद नहीं आया तो वो विपक्षी खेमे के साथ जाने से भी गुरेज नहीं करेंगे। तो चलिए सबसे पहले हाल ही में हुए राज्यसभा चुनाव से शुरुआत करते हैं कि जीते हुए उम्मीदवारों से राष्ट्रपति चुनाव पर कितना असर पड़ेगा।

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देश के 15 राज्यों की कुल 57 सीटों पर राज्यसभा चुनाव हुए थे। इनमें से 41 पर निर्विरोध प्रत्याशी जीते तो वहीं शुक्रवार 10 जून को बाकी 16 सीटों पर चुनाव हुए। अब सभी की नजरें 18 जुलाई को होने वाले राष्ट्रपति चुनाव पर है। राष्ट्रपति चुनाव में लोकसभा, राज्यसभा के सभी सांसद और सभी राज्यों के विधायक वोट डालते हैं। इन सभी के वोटों की अहमियत यानी वैल्यू अलग-अलग होती है। यहां तक कि अलग-अलग राज्य के विधायकों के वोट की वैल्यू भी अलग होती है।

राष्ट्रपति चुनाव का कार्यक्रम

राष्ट्रपति पद के लिए होने वाले चुनाव के लिए अधिसूचना 15 जून को जारी की जाएगी। नामांकन की आखिरी तारीख 29 जून होगी। नामांकन पत्रों की जांच 30 जून तक होगी। उम्मीदवार अपना नामांकन 2 जुलाई तक वापस ले सकेंगे। इसके बाद राष्ट्रपति का चुनाव 18 जुलाई को होगा, जिसके नतीजे 3 दिन बाद यानी 21 जुलाई को आएंगे।

राज्यसभा चुनाव का क्या असर पड़ेगा?

जून-जुलाई में 15 राज्यों की 57 राज्यसभा सीटें खाली हुई थीं। इन सभी सीटों पर 10 जून को चुनाव हुए थे। इनमें से 11 राज्यों की 41 सीटों पर निर्विरोध निर्वाचन 3 जून को ही हो गए थे। सभी 57 सीटों के नतीजे आने के बाद आंकड़ें देखें तो सबसे ज्यादा 22 सीटें बीजेपी को मिली हैं। कांग्रेस को 9, YSR कांग्रेस को 4, बीजद और DMK को 3-3 सीटें मिलीं। AAP, एआईएडीमके, राजद, TRC 2-2 सीटें जीतने में सफल रहे। जदयू, झामुमो, शिवसेना, NCP, सपा और रालोद के खाते में एक-एक सीटें आईं। दो निर्दलीय भी जीतने में सफल रहे। इनमें से एक सपा के समर्थन से तो एक को बीजेपी के समर्थन से जीत मिली।

हालांकि जो प्रत्याशी चुनाव जीते हैं उनमें से 2 इस बार राष्ट्रपति चुनाव में वोट नहीं डाल सकेंगे। इनमें कार्तिकेय शर्मा और कृष्णलाल पंवार हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि ये दोनों अगस्त में राज्यसभा की सदस्यता लेंगे। वहीं इस बार चुनाव हारने वाले सुभाष चंद्रा और चुनाव ना लड़ने वाले दुष्यंत गौतम वोट डाल सकेंगे। क्योंकि इनका कार्यकाल राष्ट्रपति चुनाव के बाद खत्म हो रहा है।

देखें राष्ट्रपति चुनाव में कुल कितने वोटर्स होंगे?

राष्ट्रपति चुनाव में लोकसभा, राज्यसभा और राज्यों के विधानसभा के सदस्य वोट डालते हैं। 245 सदस्यों वाली राज्यसभा में से 233 सांसद ही वोट डाल सकते हैं, लेकिन कश्मीर में विधानसभा भंग है। यहां 4 राज्यसभा सीटें खाली हैं। ऐसे में 229 राज्यसभा सांसद ही राष्ट्रपति चुनाव में वोट डाल सकेंगे। वहीं राष्ट्रपति की ओर से मानित 12 सांसदों को भी इस चुनाव में वोट डालने का अधिकार नहीं है। दूसरी ओर लोकसभा के सभी 543 सदस्य मतदान में हिस्सा लेंगे। इनमें आजमगढ़, रामपुर और संगरूर में हो रहे उपचुनाव में जीतने वाले सांसद भी शामिल होंगे। इसके अलावा सभी राज्यों के कुल 4 हजार 33 विधायक भी राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोटिंग करेंगे। इस तरह से राष्ट्रपति चुनाव में कुल मतदाताओं की संख्या 4 हजार 809 होगी। इनके वोटों की वैल्यू अलग-अलग होगी। इन वोटर्स के वोटों की कुल कीमत 10 लाख 79 हजार 206 होगी।

NDA के पास कितने वोट?

लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभा की संख्या के मुताबिक सत्तारुढ़ बीजेपी की अगुआई वाले NDA के पास मौजूदा समय में करीब 5 लाख 26 हजार वोट हैं। इनमें दो लाख 17 हजार अलग-अलग विधानसभा और 3 लाख 9 हजार सांसदों के वोट हैं। NDA में अभी BJP के साथ JDU, AIADMK, अपना दल (सोनेलाल), LJP, NPP, निषाद पार्टी, NPF, MNF, AINR कांग्रेस जैसे 20 छोटे दल शामिल हैं। मौजूदा आंकड़ों के हिसाब से NDA को अपने राष्ट्रपति उम्मीदवार को जीत दिलाने के लिए 13 हजार वोटों की और जरूरत पड़ेगी। 2017 में जब NDA ने रामनाथ कोविंद को उम्मीदवार बनाया था तब आंध्र प्रदेश के YSR कांग्रेस और ओडिशा की BJD ने भी समर्थन दिया था। इसके अलावा NDA में न होते हुए भी JDU ने समर्थन दिया था। वहीं पिछली बार NDA का हिस्सा रही शिवसेना और अकाली दल अब अलग हो चुकी है। तो वहीं BJD के पास 31 हजार से ज्यादा वैल्यू वाले वोट हैं और YSRCP के पास 43,000 से ज्यादा वैल्यू वाले वोट हैं। ऐसे में इनमें से किसी एक के समर्थन से भी NDA आसानी से जीत हासिल कर सकती है।

UPA का वोट शेयर :

कांग्रेस की अगुवाई वाले UPA के पास अभी 2 लाख 59 हजार वैल्यू वाले वोट हैं। इनमें कांग्रेस के अलावा, DMK, शिवसेना, RJD, NCP जैसे दल शामिल हैं। कांग्रेस के विधायकों के पास 88 हजार 208 वैल्यू वाले वोट हैं, वहीं 57 हजार 400 वैल्यू के सांसदों के हैं।

तीसरा मोर्चे का वोट शेयर :

मौजूदा समय UPA के अलावा एक तीसरा मोर्चा भी तैयार हो रहा है। अभी इसका पूरा स्वरूप साफ नहीं हुआ है। इनमें पश्चिम बंगाल की सत्ताधारी पार्टी TMC, उत्तर प्रदेश का मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी (SP), आंध्र प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी YSR कांग्रेस, दिल्ली और पंजाब की सत्ताधारी पार्टी आम आदमी पार्टी (AAP), ओडिशा की सत्ताधारी पार्टी BJD, केरल की सत्ताधारी पार्टी लेफ्ट, तेलंगाना की सत्ताधारी पार्टी TRS, AIMIM शामिल हैं। इनके वोट की वैल्यू भी दो लाख 92 हजार है।

NDA और UPA में जो दल शामिल नहीं हैं, उन्हें एकजुट करने के लिए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपनी कोशिशें तेज कर दी हैं। इसके लिए 15 जून को दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में विपक्ष के मुख्यमंत्री और नेताओं के साथ एक संयुक्त बैठक में हिस्सा लेंगी। ममता ने इसमें उन पार्टियों को भी न्यौता भेजा है, जो UPA में शामिल हैं। यहां तक की कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को भी बैठक में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया है।

कौन होगा NDA का उम्मीदवार?

पिछले चुनावों के लिहाज से देखा जाए तो 2014 के बाद से बीजेपी वही कर रही है, जो कोई सोचा नहीं पाता। जैसे 2017 में अचानक रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति और वैंकैया नायडू को उपराष्ट्रपति बनाया गया। उस वक्त भी इन दोनों नाम पर कोई चर्चा नहीं थी। इस बार भी कुछ ऐसा ही हो सकता है। ऐसे में मौजूदा हालातों को देखते हुए तीन वर्ग से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार उतारा जा सकता है।

1. महादलित या फिर आदिवासी : ऐसा संभव है कि इस बार बीजेपी महादलित या किसी आदिवासी को देश के राष्ट्रपति या फिर उपराष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार के तौर पर उतार सकती है। खासतौर पर दक्षिण भारत के महादलित या आदिवासी चेहरे को ये मौका मिल सकता है।

2. सिख : मौजूदा समय में बीजेपी का पंजाब पर काफी फोकस है। किसान आंदोलन के बाद सिख समुदाय में बीजेपी के प्रति नाराजगी बढ़ गई थी। ऐसे में हो सकता है कि सिख चेहरे को राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाया जा सकता है।

3. मुस्लिम : किसी मुस्लिम चेहरे को भी राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाए जाने के कयास लगाए जा रहे हैं। क्योंकि पिछले दिनों में आई अलग-अलग मीडिया रिपोर्ट्स में इसके लिए 2 नामों की चर्चा भी हो रही है। इनमें केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान और केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी शामिल हैं।

तो इस बीच राष्ट्रपति चुनाव के लिए NCP प्रमुख शरद पवार का नाम भी चर्चा में है। कई छोटी पार्टियों ने इस बात पर अपना समर्थन दिखाया है। जानकारी के मुताबिक
सोनिया गांधी का समर्थन भी शरद पवार को हासिल है। लेकिन फिलहाल शरद पवार ने अभी तक इस मामले में चुप्पी बनाई हुई है।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नाम पर चर्चा

तो वहीं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नाम भी राष्ट्रपति पद की दावेदारी के लिए चर्चाओं में है। बिहार के मुख्य विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल ने दो टूक कह दिया है कि अगर बीजेपी नीतीश कुमार का नाम राष्ट्रपति पद के लिए आगे बढ़ाती है तो राजद नीतीश का समर्थन करेगा। तो वहीं जब बात राजनीति की हो रही हो तो फिर कांग्रेस और जदयू भला क्यों पीछे रहते। कांग्रेस के प्रवक्ता ने भी कह दिया कि अगर बीजेपी नीतीश कुमार के नाम पर आगे बढ़ती है तो वो समर्थन देगी, क्योंकि मामला “बिहारी प्राइड” का जो है।

दरअसल सीएम नीतीश कुमार ने सोमवार को संकेत देते हुए कहा कि पिछले दो राष्ट्रपति चुनाव में जदयू का स्टैंड अलग रहा है। उन्होंने कहा कि पिछले दोनों चुनावों में हम जहां थे उससे अलग जाकर वोट किया। इस बार अभी तक कुछ भी साफ नहीं है कि कौन उम्मीदवार होगा। उन्होंने कहा कि अभी NDA के घटक दलों में इस पर कोई बातचीत नहीं हुई है। इसलिए पहले बात होने दें उसके बाद फैसला लेंगे। हालांकि उन्होंने साफ संकेत दिए हैं कि जैसे पिछले दोनों राष्ट्रपति चुनावों में जदयू ने गठबंधन से अलग जाकर मतदान किया था इस बार भी जदयू उस विकल्प पर जा सकती है। जदयू का कहना है कि नीतीश कुमार में प्रेजीडेंशियल मैटेरियल तो है ही। अगर उनका नाम आगे बढ़ता है तो ये पार्टी के लिए बड़ी बात तो होगी ही, बिहार के लिए भी बड़ी बात होगी।

गौरतलब है कि इस बार के राष्ट्रपति चुनाव में NDA गठबंधन को जीत के लिए पर्याप्त वोट नहीं है। निर्वाचक मंडल के विश्लेषण से पता चला है कि विधायकों के वोट के मामले में बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन (2.22 लाख) की तुलना में NDA विरोधी दलों के पास (2.77 लाख) अधिक वोट हैं। हालांकि संसद में इसका उल्टा है और NDA के पास 3.20 लाख वोट हैं, जबकि उनके विरोधियों के पास 1.72 लाख ही होते हैं। ऐसे में NDA उम्मीदवार को जितने के लिए विपक्ष के कुछ दलों के वोट की जरूरत होगी। वहीं अब सीएम नीतीश ने साफ संकेत दिया है कि उनकी पसंद का उम्मीदवार नहीं होने पर वो पिछले चुनावों की तरह गठबंधन से अलग होकर वोट कर सकते हैं। चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक सांसदों के वोटों का कुल मूल्य 5,43,200 है। जबकि विधायकों के वोटों का कुल मूल्य 5,43,231 है, जिससे कुल वोट 10,86,431 हो गए हैं।

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