देहरादून के गढ़ी कैंट में भगवान भोलेनाथ का एक मंदिर स्थित है। नाम है टपकेश्वर महादेव। इस मंदिर का ना सिर्फ धार्मिक आस्था है। बल्कि महादेव के इस मंदिर की राजनीतिक आस्था भी आपार है।
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देहरादून। देहरादून के गढ़ी कैंट में भगवान भोलेनाथ का एक मंदिर स्थित है। नाम है टपकेश्वर महादेव। इस मंदिर का ना सिर्फ धार्मिक आस्था है। बल्कि महादेव के इस मंदिर की राजनीतिक आस्था भी आपार है। कहते हैं कि पांडवों और कौरवों के गुरु द्रोणाचार्य ने महादेव की घोर तपस्या की थी।
जिससे प्रसन्ना होकर देवों के देव महादेव ने उनको धनुर्विद्या सिखाई थी। तप और साधना के कारण ये जगह कलयुग में भी पवित्र है। एक और मान्यता ये भी है कि द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा का जन्म भी इसी गुफा में हुआ था। महादेव का इस दरबार भक्तों की जितना आगाढ़ श्रद्धा है।
ये दरबार उतना ही दिव्य भी है। महादेव का ये मंदिर एक प्राकृतिक गुफा में स्थित है.. जहां दिव्य रूप से प्राकृतिक जल शिवलिंग पर टपक देवाधिदेव का जलाभिषेक करता है। जिस कारण इस मंदिर का नाम टपकेश्वर महादेव मंदिर पड़ गया। इस प्राकृतिक जलाभिषेक से जुड़ी एक मान्यता ये है कि द्वापर युग के दौरान ये जल दूध हुआ करता था। जिस कार द्वापर में इस मंदिर को दूधेश्वर महादेव भी कहा गया था। द्रोणाचार्य की तपस्या के कारण देहरादून को द्रोणा नगरी के नाम भी जाना जाता है।
टपकेश्वर मंदिर के मुख्य पुजारी ने बताया कि। इस मंदिर के प्रति स्थानीय लोगों के साथ-साथ दूर-दराज के लोगों की भी गहरी आस्था है। शाम के समय भोले नाथ का विशेष श्रृंगार किया जाता है। और शाम को भोले भंडारी की संध्या आरती होती है। यहां पर शाम के 6 बजे तक पौराणिक शिवलिंग पर जलाभिषेक होता है। उसके बाद पीतल के बने शिवलिंग से ढक कर भोलेनाथ का पुष्प श्रृंगार होता है।
सावन के महीने में तो यहां भक्तों का अपार हुजूम उमड़ता है। पूरे सावन महादेव के इस दरबार में भक्तों की भीड़ लगी रहती है.. और सोमवार को भक्तों की आपार भीड़ उमड़ती है। और सावन के इस आखिरी सोमवार को टपकेश्वर महादेव के दर पर आगाढ़ श्रद्धा के साथ भारी संख्या में भक्त उमड़े। जिस कारण मंदिर में भक्तों की लंबी कतारें देखने कि मिली। देश के कोने-कोने से भक्त भोले भंडारी के इस दरबार में हाजिरी लगाने पहुंचे थे। जैसे हमारे महादेव अद्भूत, अलौकिक हैं।
वैसा ही अद्भूत और अलौकिक है उनका ये टपकेश्वर दरबार। जो भोले भंडारी के जयकारों से गूंज रहा है.. और द्वापर से उनकी महिमा का बखान कर रहा है। इस दरबार में हाजिरी लगाने ना सिर्फ दूर-दूर से भक्त पहुंचते हैं.. बल्कि उत्तराखंड की राजनीति मान्यता ये भी है कि जब भी कोई मुख्यमंत्री बनता है। तो वो महादेव के इस दरबार में पहुंचकर आपनी हाजिरी जरूर लगाता है। और देवाधिदेव का आशीष लेकर सत्ता पर आरूढ़ होता है।