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उम्मीदवार कितनीं सीटों से लड़ सकता है चुनाव ? क्या कहते हैं नियम जाननें के लिए पढ़ें पूरी खबर

अक्सर हम देखते आए हैं कि चुनाव में उम्मीदवारों की सूची जारी होते ही उम्मीदवार कई बार दो विधानसभा या लोकसभा सीटों से चुनाव लड़ते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि एक उम्मीदवार कितनी जगहों से चुनाव लड़ सकता है ? इस आर्टिकल में इन्हीं विषयों पर चर्चा करेंगे।

By इंडिया वॉइस 

Updated Date

UP Assembly Election 2022 : देश के कुल 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव होना है। लिहाज़ा आगामी चुनाव को देखते हुए तारीखों का ऐलान भी हो गया है। इसके अलावा बात करें तो सभी राजनीतिक पार्टियां इन दिनों अपने उम्मीदवारों के चयन का काम भी शुरू कर चुकी हैं।

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पर इन सब बातों से अलग अक्सर हम देखते आए हैं कि चुनाव में उम्मीदवारों की सूची जारी होते ही उम्मीदवार कई बार दो विधानसभा या लोकसभा सीटों से चुनाव लड़ते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि एक उम्मीदवार कितनी जगहों से चुनाव लड़ सकता है ? नियम कानून क्या कहते हैं ? और अगर चयन किए गए सभी सीटों से उम्मीदवार जीत जाए तो फिर आगे क्या हो सकता है ? इन सभी सवालों का जवाब हम इस आर्टिकल के माध्यम से आपको देंगे।

कितनी सीटों से कर सकते हैं उम्मीदवारी ?

इस बारे में बात करने से पहले सबसे पहला सवाल यही उठता है कि आखिरकार एक उम्मीदवार कितनी सीटों से चुनाव लड़ सकता है ?
तो हम आपको बता दें कि चुनाव लड़ने के लिए भारतीय संविधान में एक निश्चित Act बनाया गया जिसको हम Representation Of People Act यानी कि (जन प्रतिनिधित्व अधिनियम) के नाम से जानते हैं। अब इसी अधिनियम की धारा 33 चुनाव लड़ने के लिए उम्मीदवारों के सीटों की सीमा तय करती हैं।

जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 33 के अनुसार उम्मीदवार को एक से ज्यादा कितनी भी सीटों से चुनाव लड़ने का अधिकार प्राप्त था। इसका फायदा उठा कर इतिहास में कई बड़े नेताओं ने 1 से ज्यादा सीटों से चुनाव लड़ा। हालांकि हम आगे उस पर भी चर्चा करेंगे कि कौन सा नेता कितनी सीटों से चुनाव लड़ चुका है। बहरहाल जन प्रतिनिधित्व की धारा 33 को लेकर जब सवाल उठने लगे तो इसमें वर्ष 1996 में संशोधन करते हुए एक नया नियम Act 33 (7) बनाया गया जिसमें कहा गया कि कोई भी उम्मीदवार अब मात्र 2 सीटों से अपनी दावेदारी भर सकता है।

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किन नेताओं ने एक से ज्यादा सीटों से लड़ा चुनाव ?

आजादी के बाद वर्ष 1957 के आम चुनावों में देश के पूर्व प्रधानमंत्री स्व.अटल बिहारी वाजपेई ने उत्तर प्रदेश की तीन लोकसभा सीटों से चुनाव लड़ा था। वो सीटें थी लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर। ठीक इसी प्रकार 1977 के चुनाव में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी रायबरेली से जब चुनाव हार गई थी तब उन्होंने भी 1980 के आम चुनाव में रायबरेली और मेडक दो सीटों से चुनाव लड़ी थी और दोनों जगहों से उन्हें जीत भी मिल गई।

ठीक इसी तरह लालकृष्ण आडवाणी, लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव ने भी एक से अधिक सीटों से चुनाव लड़ा. इसी कड़ी में TDP प्रमुख रहे एनटी रामाराव, हरियाणा के पूर्व उप मुख्यमंत्री देवीलाल ने 1985 में तीन सीटों से चुनाव लड़ा था। इस दौरान एनटीआर ने जहां एक तरफ तीनों सीटों से जीत हासिल की वहीं देवीलाल तीनों सीटों से चुनाव हार गए थे। इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी जैसे नेता भी 2-2 सीटों से अपनी किस्मत आजमा चुके हैं।

सभी सीटों से मिल जाए जीत तो क्या करना होगा ?

सबसे पहले तो यह जान लें कि अक्सर जब उम्मीदवार को चुनाव में अपनी सीट से हारने का डर होता है तब वह एक से ज्यादा सीटों का चुनाव करता है। ऐसे में सवाल उठता है कि अगर वह उम्मीदवार दोनों सीटों से ही जीत गया तो क्या करना होगा ? तो ऐसे में नियम के अनुसार उम्मीदवार को किसी एक सीट का चयन करना होगा बाकी अन्य सीट से उम्मीदवारी वापस लेनी होगी।

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नियमों के अनुसार उम्मीदवार को चुनाव का परिणाम आने के 10 दिनों के भीतर किसी एक सीट से अपनी उम्मीदवारी वापस लेनी होगी अर्थात वह सीट छोड़नी होगी। लिहाज़ा उम्मीदवार मात्र एक ही सीट चाहे वह लोकसभा हो या विधानसभा किसी एक ही सीट का चुनाव करना होगा।

ऐसा पहले भी हो चुका है। 1980 में इंदिरा गांधी को रायबरेली और मेडक दोनों सीटों से जीत हासिल हुई थी जिसमें उन्होंने आखिरी में कांग्रेस का गढ़ कहे जाने वाले रायबरेली को चुना और मेडक की सीट छोड़ दी। ठीक इसी प्रकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 2014 के लोकसभा चुनाव में वाराणसी और वड़ोदरा लोकसभा सीटों से चुनाव लड़ा और उन्हें दोनों सीटों से जीत मिली। बाद में उन्होंने वाराणसी को चुना और वड़ोदरा की सीट छोड़ दी।

खाली पड़े सीटों पर कराया जाता है उप-चुनाव

यूं तो नियमों के अनुसार चुनाव में उम्मीदवार दो सीटों से चुनाव लड़ सकता है। दोनों सीटों से चुनाव जीतने के बाद वो किसी एक सीट का चुनाव भी कर लेता है और एक सीट को छोड़ देता है। पर सबसे बड़ी समस्या आती है उस सीट पर उपचुनाव कराने की। इसके लिए चुनाव आयोग को फिर से मेहनत करनी पड़ती है। एक बार फिर से चुनाव के लिए आयोग को तमाम व्यवस्थाएं भी करनी पड़ती है। यह सब कुछ जान प्रतिनिधित्व कानून की धारा 33(7) के तहत किया जाता है।

कई बार उठे सवाल

हालांकि इसको लेकर भी कई बार सवाल उठाए गए पर इसका कुछ ठोस निस्कर्ष नहीं निकल सका। इस नियम का विरोध करने वाला एक धड़ा यह मानता है कि दो सीटों से चुनाव लड़ना लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के खिलाफ है। 2019 के चुनाव से पहले एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थी जिसमें यह कहा गया था कि उपचुनाव की स्थिति में सरकार को बड़े स्तर पर राजस्व का नुकसान होता है। लिहाज़ा नियम में संशोधन करते हुए किसी भी उम्मीदवार को मात्र एक सीट से ही चुनाव लड़ने की अनुमति दी जाए। हालांकि इस याचिका को चुनाव आयोग का भी समर्थन मिला पर सरकार इसके खिलाफ थी।

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सरकार ने याचिका पर जताई आपत्ति 

सरकार ने इस याचिका पर आपत्ति जताते हुए यह कहा था कि अगर जनप्रतिनिधित्व एक्ट की धारा 33 (7) में संशोधन किया जाता है तो इससे उम्मीदवारों के अधिकारों का उल्लंघन होगा। हालांकि इससे इतर चुनाव आयोग ने यह प्रावधान भी चाहा था कि अगर उपचुनाव कराया जाता है तो उस स्थिति में उपचुनाव का खर्च जीते हुए प्रत्याशियों से लिया जाय। इसमें लोकसभा चुनाव के लिए 10 लाख रुपए तो वहीं विधानसभा चुनाव के लिए 5 लाख रुपए तक का प्रावधान चुनाव आयोग चाहता था।

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