संतान की लंबी उम्र-अच्छी सेहत के लिए माताए रखती है जीवित्पुत्रिका व्रत, इस साल यह व्रत 18 सितंबर को रखा जाएगा.
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Jivitputrika Vrat : हिंदू धर्म में माँताए अपनी संतान की लंबी उम्र और खुशहाली के लिए जीवित्पुत्रिका व्रत रखती हैं. इस व्रत को जितिया, जिउतिया और ज्युतिया व्रत भी कहते हैं. यह व्रत निर्जला रखा जाता है , इस साल यह व्रत 18 सितंबर को पड़ रहा है. यह व्रत अश्विन महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रखते हैं. इस व्रत को बहुत कठिन व्रत माना है,
जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व :
जीवित्पुत्रिका व्रत को माताएं अपनी संतान की लंबी आयु के लिए रखती हैं, जीवित्पुत्रिका व्रत निर्जला होता है ,यह कठिन व्रत में से एक है, महिलाएं अपने बच्चों की समृद्धि और उन्नत जीवन के लिए यह निर्जला व्रत रखती हैं, मान्यताओं के अनुसार, संतान के लिए किया गया ये व्रत किसी भी बुरी परिस्थिति में उसकी रक्षा करता है, साथ ही उनके जीवन में हमेशा खुशियां बनी रहती हैं
जीवित्पुत्रिका व्रत शुभ मुहूर्त और पूजा विधि:
जीवित्पुत्रिका व्रत तीन दिनों का त्यौहार होता है. पहले दिन महिलाएं नहाय खाय करती हैं. दूसरे दिन निर्जला व्रत रखा जाता है और तीसरे दिन व्रत का पारण किया जाता. इस साल उदया तिथि के अनुसार, 18 सितंबर 2022 को रखा जाएगा और इसका पारण 19 सितंबर 2022 को किया जाएगा। 19 सितंबर की सुबह 6 बजकर 10 मिनट के बाद व्रत का पारण समय है , जितिया व्रत के दिन माताओ को सुबह उठकर स्नान कर साफ वस्त्र धारण करना चाहिए, इसके बाद व्रत रखने वाली महिलाओं को प्रदोष काल में गाय के गोबर से पूजा स्थल को भी साफ करना चाहिए, और विधि विधान से पूजा करना चाहिए,
जीवित्पुत्रिका व्रत कथा:
गन्धर्वराज जीमूतवाहन बड़े धर्मात्मा और त्यागी पुरुष थे, जीमूतवाहन युवाकाल में ही अपना राजपाट छोड़कर पिता की सेवा करने वन में चले गए , एक दिन भ्रमण करते हुए उन्हें नागमाता मिली जो विलाप कर रही थी , जब जीमूतवाहन ने उनके विलाप करने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि नागवंश गरुड़ से काफी परेशान है, वंश की रक्षा करने के लिए वंश ने गरुड़ से समझौता किया है कि वे प्रतिदिन उसे एक नाग खाने के लिए देंगे और इसके बदले वो हमारा सामूहिक शिकार नहीं करेगा, और आज इसी कारण मेरे पुत्र को गरुड़ के सामने जाना है। नागमाता की पूरी बात सुनकर जीमूतवाहन ने उन्हें आसवासन दिलाते हुये वचन दिया कि ,वे उनके पुत्र को आज कुछ नहीं होने देंगे और उसकी जगह खुद गरुड़ के सामने कपड़े मे लिपट कर उस शिला पर लेट जाएंगे, और गरुड़ उनके पुत्र की जगह उन्हे अपना आहार समझ कर उठा ले जाएगा, और उन्होंने ऐसा ही किया। गरुड़ ने जीमूतवाहन को अपने पंजों में दबाकर पहाड़ की तरफ उड़ चला। जब गरुड़ ने देखा कि हमेशा की तरह नाग चिल्लाने और रोने की जगह शांत है, तो उसने कपड़ा हटाकर जीमूतवाहन को पाया। जीमूतवाहन ने सारी कहानी गरुड़ को बता दी, जिसके बाद उसने जीमूतवाहन को छोड़ दिया और नागों को ना खाने का भी वचन दिया।