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क्यों सुल्ताना का सपना हर किसी को पढ़ना चाहिए- भले ही आप साहित्य से दूर हों-

इस कहानी में वे एक काल्पनिक जगह- लेडीलैंड - की तस्वीर पेश करती हैं, जहाँ महिलाएँ सत्ता में हैं, विज्ञान प्रगति कर रहा है और समाज में अमन-चैन है। अपने समय से बहुत आगे की यह सोच इसे भारत की शुरुआती नारीवादी कहानियों में एक खास मुकाम देती है।

By HO BUREAU 

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बेगम रुकैया की कल्पना में दिखता है महिलाओं की आज़ादी और बराबरी का सपना

अगर आप आम तौर पर साहित्य नहीं पढ़ते, तो भी सुल्ताना का सपना एक ऐसी कहानी है जिसे पढ़ना आपको पसंद आएगा। यह लंबी नहीं है- बस कुछ ही पन्नों की- लेकिन इसके विचार गहराई तक असर डालते हैं। 1905 में बेगम रुकैया ने यह कहानी अंग्रेज़ी में लिखी थी। वे उस दौर में महिलाओं की शिक्षा और आज़ादी की सबसे मज़बूत आवाज़ों में से एक थीं।

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इस कहानी में वे एक काल्पनिक जगह- लेडीलैंड – की तस्वीर पेश करती हैं, जहाँ महिलाएँ सत्ता में हैं, विज्ञान प्रगति कर रहा है और समाज में अमन-चैन है। अपने समय से बहुत आगे की यह सोच इसे भारत की शुरुआती नारीवादी कहानियों में एक खास मुकाम देती है।

कहानी की रूपरेखा

कहानी की नायिका सुल्ताना सपने में पहुँचती है लेडलैंड, एक ऐसी जगह जहाँ महिलाएँ शासन करती हैं और पुरुष घरों तक सीमित हैं। वहाँ शिक्षा, तकनीक और न्याय व्यवस्था पूरी तरह महिलाओं के हाथ में है।

यह कल्पना उस समय की पितृसत्तात्मक सोच को पलट देती है और बताती है कि मौक़े मिलने पर महिलाएँ भी समाज चला सकती हैं और तरक़्क़ी ला सकती हैं।

 

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शिक्षा और प्रगति का संदेश

लेडलैंड में महिलाएँ पढ़ी-लिखी हैं और उन्होंने विज्ञान और तकनीक की मदद से-

* सौर ऊर्जा का इस्तेमाल शुरू किया है,
* अपराध पर काबू पाया है,
* और समाज में अमन-शांति कायम की है।

बेगम रुकैया यह दिखाना चाहती थीं कि शिक्षा ही असली ताक़त है, जो बराबरी और तरक़्क़ी का रास्ता खोलती है।

 

हिंसा नहीं, समझदारी की दुनिया

लेडलैंड में कोई युद्ध या हिंसा नहीं है। यहाँ के नेता दिमाग़ और वैज्ञानिक सोच से फैसले लेते हैं, ताक़त या डर से नहीं। यह बताता है कि सत्ता में आने पर महिलाएँ भी न्यायपूर्ण और संतुलित समाज बना सकती हैं।

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पितृसत्ता पर व्यंग्य

कहानी में एक हल्का-सा हास्य भी है- जहाँ पुरुष घरों में क़ैद हैं और महिलाएँ दुनिया चला रही हैं। यह उस हक़ीक़त पर व्यंग्य है, जहाँ सदियों तक महिलाओं को शिक्षा और स्वतंत्रता से वंचित रखा गया।

 

क्यों पढ़ें यह कहानी

अगर आप साहित्य नहीं पढ़ते, तो भी यह कहानी पढ़ने में आसान और मज़ेदार है। यह देती है-

* बराबरी और आज़ादी का संदेश
* नारीवादी सोच की शुरुआत का दस्तावेज़
* और यह भरोसा कि छोटी कहानियाँ भी बड़े सवाल खड़े कर सकती हैं।

 

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आज भी प्रासंगिक

सौ साल से ज़्यादा वक़्त गुज़रने के बाद भी सुल्ताना का सपना हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि मौक़े और शिक्षा मिलने पर महिलाएँ किस तरह समाज को बदल सकती हैं।

अगर आपको लगता है कि साहित्य आपके लिए नहीं है, तो इस कहानी से शुरुआत करें। यह छोटी है, सरल है और आपके नज़रिए को बदल सकती है।

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