झारखंड में सीएम हेमंत सोरेन के रुख से कांग्रेस के भितरखाने खलबली मची हुई है। झारखंड सरकार में आई खटास की झलक मंच पर भी दिखी।
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रांची, 16 जुलाई। राष्ट्रपति चुनाव के बहाने झारखंड में राजनीति सुलग चुकी है। माना जा रहा है कि महाराष्ट्र के बाद झारखंड में भी राजनीतिक बदलाव की बात सिर्फ शिगूफा नहीं है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पिछले दिनों दिल्ली में हुई गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात के बाद से इन अटकलों को और हवा मिली गई है। देवघर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यक्रम को लेकर मुख्यमंत्री की सक्रियता को भी हवा को गति मिली है। मुख्यमंत्री ने देवघर में प्रधानमंत्री का स्वागत जिस गर्मजोशी से किया उससे सियासी कयासों को बल मिला है। वहीं प्रधानमंत्री मोदी की रवानगी के 48 घंटे बाद ही झारखंड मुक्ति मोर्चा ने राष्ट्रपति चुनाव में UPA से किनारा करते हुए NDA उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू के समर्थन की घोषणा कर दी। इन तमाम समीकरणों को जोड़ा जाए तो परिणाम क्या होंगे ये सभी को पता है।
RJD-कांग्रेस के बीच दूरी!
वहीं झारखंड में सीएम हेमंत सोरेन के रुख से कांग्रेस के भितरखाने खलबली मची हुई है। झारखंड सरकार में आई खटास की झलक मंच पर भी दिखी। जहां शुक्रवार को झारखंड सरकार के श्रम, नियोजन, प्रशिक्षण एवं कौशल विकास विभाग द्वारा समारोह का आयोजन किया गया था। मंच पर RJD मंत्री सत्यानंद भोक्ता और कांग्रेस मंत्री आलमगीर आलम दूरी बनाकर बैठे थे, बीच में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का स्थान था। ऐसे में कई ओर कयासों को हवा मिली है।
झारखंड में बड़े राजनीतिक फेरबदल के आसार
तो दूसरी ओर राष्ट्रपति चुनाव के बहाने बीजेपी लोकसभा चुनाव को लेकर अपनी ताकत को माप रही है। कौन साथ है और कौन नहीं इस पर बीजेपी की पैनी नजर है। जो साथ हैं उन्हें आगे भी साथ लेकर चलने में बीजेपी को कोई दिक्कत नहीं है। झारखंड में सत्तारूढ़ दल JMM के बदले रुख को बीजेपी की तरफ बढ़ती नजदीकियों से जोड़कर देखा जा रहा है। जिसे देखकर आंदाजा लगाया जा रहा है कि झारखंड में बड़े राजनीतिक फेरबदल के आसार बने हुए हैं।
झारखंड की राजनीति पर शाह की नज़र
वहीं लोकसभा चुनाव की कमान संभाले गृहमंत्री अमित शाह झारखंड के संदर्भ में भी अपने स्तर पर फीडबैक ले रहे हैं। बीजेपी विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी ने भी अमित शाह से मुलाकात के जिक्र में इस बात की पुष्टि की है। अमित शाह ने बाबूलाल मरांडी से राज्य की वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों पर चर्चा करने के साथ ही लोकसभा चुनाव को लेकर भी चर्चा की है।
झारखंड सत्ताधारी दल को लेकर बीजेपी का लचीला रुख
झारखंड में तेजी से बदल रही राजनीतिक हालातों का आकलन करें तो ये साफ दिखेगा कि सिर्फ JMM ही नहीं बीजेपी का रुख भी झारखंड के सत्ताधारी दल को लेकर लचीला हुआ है। खनन लीज आवंटन मामले में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को घेरने वाली बीजेपी ने खुद मामले में सुनवाई के दौरान समय मांगा है। जानकारी के मुताबिक बीजेपी के अधिवक्ता कुमार हर्ष ने कुछ एडिशनल सबमिशन दाखिल करने की दलील देते हुए समय मांगा।
JMM द्वारा राजनीतिक करवट लेने की परंपरा
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के देवघर दौरे के क्रम में सीएम सोरेन की सक्रियता कांग्रेस को रास नहीं आ रही है। लेकिन हेमंत सोरेन के रुख में बदलाव को लेकर कांग्रेस कड़े तेवर अख्तियार करने की स्थिति में नहीं है। कांग्रेसी नेता इसे आलाकमान के ऊपर छोड़कर पल्ला झाड़ रहे हैं। बीजेपी के साथ झामुमो की नजदीकी पर कांग्रेस की नजर है, लेकिन मौजूदा हालातों में कोई ठोस कदम उठाने से पहले पार्टी फिलहाल परहेज करेगी। क्योंकि झारखंड मुक्ति मोर्चा द्वारा राजनीतिक करवट लेने की परंपरा पुरानी है। प्रदेश में साल 2009 में हुए विधानसभा चुनाव में त्रिशंकु जनादेश आने के बाद JMM और BJP ने मिलकर सरकार बनाई थी। उस वक्त शिबू सोरेन प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। उस वक्त केंद्र में UPA गठबंधन की सरकार थी। एटामिक डील पर झामुमो ने UPA सरकार का साथ दिया था। लेकिन इसका खामियाजा भी उन्हें उठाना पड़ा। तब बीजेपी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने तुरंत फैसला करते हुए झामुमो की सरकार से समर्थन वापस लेने का ऐलान कर दिया था। बाद में अर्जुन मुंडा के नेतृत्व में सरकार बनी थी। हेमंत सोरेन उनकी कैबिनेट में उप मुख्यमंत्री थे।
बतादें कि झारखंड में लोकसभा की 14 सीटों में से BJP अभी 12 पर आसिन है। आगामी चुनाव में इस आंकड़े को तोड़ना या बनें रहना बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती है। झारखंड में पिछले विधानसभा चुनाव के बाद हुए 4 उपचुनावों में भी बीजेपी पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक ही रहा है। ऐसे में बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व इन सभी परिस्थितियों का बारीकी से अध्ययन कर रहा है।