झारखंड में हुए 34वें राष्ट्रीय खेल समारोह घोटाले की जांच अब सीबीआई करेगी। पटना सीबीआई ने झारखंड एसीबी से घोटाले के दस्तावेज मांगे।
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नई दिल्ली, 21 अप्रैल 2022। झारखंड में वर्ष 2011 के 34वें राष्ट्रीय खेल समारोह व स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स निर्माण में हुए घोटाले की जांच अब सीबीआई के हाथों सौंप दी गई है। झारखंड हाईकोर्ट ने सोमवार को जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए आदेश दिया है कि इस मामले की जांच सीबीआई करें। इससे पहले खेल आयोजन घोटाले की जांच एसीबी (एंटी करप्शन ब्यूरो) कर रही थी। लेकिन एसीबी की जांच काफी धीमी गति से आगे से बढ़ रही थी, साथ ही एसीबी ने अदालत को गुमराह करने की कोशिश भी की थी। इस वजह से जांच सीबीआई को सौंपी गई है। अदालत ने सीबीआई को जांच के आदेश देते हुए ये भी कहा है कि सीबीआई जांच को प्रभावित करने वाले अधिकारियों के नामों को उजागर करें। साथ ही हाईकोर्ट ने सरकार से जांच में सीबीआई की मदद करने के निर्देश दिये हैं। इसके बाद सीबीआई की पटना शाखा के अधिकारी रांची पहुंचे हैं और झारखंड पुलिस की भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) से संबंधित दस्तावेज की मांग की है।
झारखंड में कब हुआ था राष्ट्रीय खेल का आयोजन
34वें राष्ट्रीय खेल का आयोजन 2008 में झारखंड में होना था, लेकिन अलग-अलग वजहों से आयोजन 6 बार टालना पड़ा और अंत में 2011 के फरवरी में झारखंड के रांची (Ranchi) और धनबाद (Dhanbad) जिले में इस खेल का आयोजन हुआ था।
एसीबी ने जांच कब शुरु की थी
जानकारी के अनुसार 34वां राष्ट्रीय खेल घोटाला 28 करोड़ 38 लाख रुपये का बताया गया है। आयोजन में खेलों के लिए हुई खरीदारी और अन्य खर्चों में बड़े पैमाने में गड़बड़ी की खबरें सामने आने लगी। इससे झारखंड का एंटी करप्शन ब्यूरो ने वर्ष 2010 में कांड संख्या 49/10 एफआईआर दर्ज करते हुए गड़बड़ियों की जांच शुरु कर दी। इस एफआईआर में आयोजन समिति के अध्यक्ष आर के आनंद, कोषाध्यक्ष मधुकांत पाठक व महासचिव एसएम हाशमी को आरोपी बनाया गया था। इसके साथ ही उस समय के खेल मंत्री बंधु तिर्की को भी घोटाले का आरोपी बनाया गया था।
जांच मे क्यों हो रही है देरी
जानकारी के अनुसार एसीबी की जांच का दायरे मे कई बड़े सरकारी अधिकारी भी आते हैं। हाई कोर्ट को आशंका है कि इन अधिकारियों की वजह से एसीबी की जांच प्रभावित हो रही है। घोटाले के समय राज्य में हेमंत सोरेन के पिता सीबू सोरेन की सरकार थी। फिलहाल मेगा स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स से जुड़ी कंपनियों की जांच के लिए राज्य से बाहर जाना एसीबी के दायरे में नहींं आता है। ऐसे में भी सीबीआई की जरूरत महसूस हो रही थी।
दायर की गईं जनहित याचिकाएं
इस घोटाले व एसीबी की जांच में हुई देरी को लेकर झारखंड अगेंस्ट करप्शन सेंटर फॉर आरटीआई के सुशील कुमार सिंह मंटू की ओर से अलग-अलग जनहित याचिकाएं कोर्ट में दायर की गई थीं। इन याचिकाओं पर सुनवाई के बाद कोर्ट की ओर से मामले की जांच सीबीआई को सौंपने का आदेश दिया है।