बिहार में विधानसभा चुनाव 2025 की आहट तेज हो चुकी है। हर गली-चौराहे पर राजनीति की गहमागहमी है। कहीं लालू प्रसाद यादव के लाल तेजस्वी यादव जनता को रथ पर सवार होकर लुभा रहे हैं, तो वहीं नीतीश कुमार अपनी पुरानी चाल बदलकर नई रणनीति बना रहे हैं।
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पटना: बिहार में विधानसभा चुनाव 2025 की आहट तेज हो चुकी है। हर गली-चौराहे पर राजनीति की गहमागहमी है। कहीं लालू प्रसाद यादव के लाल तेजस्वी यादव जनता को रथ पर सवार होकर लुभा रहे हैं, तो वहीं नीतीश कुमार अपनी पुरानी चाल बदलकर नई रणनीति बना रहे हैं। चिराग पासवान अपनी ‘रोशनी की राजनीति’ से चमकने की कोशिश में जुटे हैं और प्रशांत किशोर ‘दाल-भात’ के एजेंडे पर जनता का दिल जीतने में लगे हैं। लेकिन इस सियासी बिसात में पटना साहिब विधानसभा सीट पर मुकाबला दिलचस्प होने वाला है।
1957 में इस सीट का नाम था पटना पूर्व। तब कांग्रेस की ज़हरा अहमद ने जनसंघ के बृज मोहन को हराया था।
2008 के परिसीमन के बाद इसका नाम बदलकर पटना साहिब रखा गया।
इसके बाद यह सीट भाजपा का गढ़ बन गई और 1995 से अब तक नंदकिशोर यादव का जलवा कायम है।
1995: भाजपा के टिकट पर पहली बार बड़ी जीत।
2000: कांग्रेस के उम्मीदवार को शिकस्त।
2005: साल में दो बार चुनाव हुए, दोनों बार नंदकिशोर यादव ने जीत दर्ज की।
2010: परवेज़ अहमद को 65,000 वोटों से हराकर रिकॉर्ड बनाया।
2015: संतोष मेहता को 2,792 वोट से मात दी, मुकाबला थोड़ा कड़ा दिखा।
2020: कांग्रेस के प्रवीण सिंह को 18,000 वोटों से हराकर भाजपा का परचम लहराया।
आज नंदकिशोर यादव बिहार विधानसभा अध्यक्ष हैं और पटना साहिब को लोग मजाक में “विधानसभा = यादव भवन” भी कहने लगे हैं।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि पटना साहिब सीट भाजपा के लिए “फिक्स डिपॉज़िट अकाउंट” जैसी है, जहां ब्याज हर चुनाव में बढ़ता ही जा रहा है। विपक्षी पार्टियां अब तक केवल नाम भर की मौजूदगी दिखा पाई हैं।
लेकिन इस बार सवाल यही है—
क्या नंदकिशोर यादव अपनी जीत का सातवां रिकॉर्ड बनाएंगे?
या फिर विपक्ष कोई नया चेहरा उतारकर चमत्कार दिखा पाएगा?
क्या जनता “टॉर्च” (राजद) थामेगी या “कमल” (भाजपा) का साथ देगी?
पटना साहिब सीट पर हर चुनाव के बाद वही तस्वीर सामने आती है—भाजपा की बड़ी जीत और विपक्ष की हार। अब देखना होगा कि 2025 में यह सिलसिला जारी रहेगा या कोई “ओवरड्राफ्ट” कर इतिहास बदल देगा।