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नेताओं की पहली पसंद क्यों है लखनऊ कैंट विधानसभा सीट ? इस सीट के लिए क्यों छिड़ी है जंग ?

लखनऊ कैंट विधानसभा सीट भाजपा के लिए हमेशा से खास रही है। यही कारण है कि पार्टी के तमाम बड़े नेता अधिकांश इस सीट से अपनी दावेदारी जताते हैं। आइये आपको बताते हैं कि यह सीट इतनी खास क्यों है ?

By इंडिया वॉइस 

Updated Date

UP Assembly Election 2022 : उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एक ऐसी विधानसभा सीट है जो वर्षों से काफी महत्वपूर्ण विधानसभा सीट मानी जाती है। जी हां हम बात कर रहे हैं लखनऊ कैंट विधानसभा सीट की। कैंट विधानसभा सभा सीट एक ऐसी सीट रही है जहां भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल हमेशा से मजबूत रहे हैं। इसके अलावा कैंट विधानसभा सीट को भाजपा का किला भी माना जाता रहा है। कारण है इस सीट से भाजपा का मजबूत होना।

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कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियों का रह चुका है दबदबा 

दरअसल अगर हम बात करें लखनऊ कैंट विधानसभा सीट के इतिहास की तो इस सीट से 7 दफा भाजपा को तो वहीं 7 दफा कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार को जीत मिली है। हालांकि इस विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी को कभी जीत नहीं मिली हैं। यानी कि लखनऊ कैंट विधानसभा सीट हमेशा से कांग्रेस और भाजपा के लिए सुरक्षित सीटों में से एक रही है। हां ये बात अलग है कि इस सीट पर सभी लोगों की नजर रहती है।

क्या राजनीतिक पृष्ठभूमि

लखनऊ कैंट विधानसभा सीट के राजनीतिक पृष्ठभूमि की अगर हम बात करें तो ये सीट देश की आजादी के बाद शुरुआती वर्षों में कांग्रेस पार्टी का गढ़ रही है। कैंट विधानसभा सीट से 1957 में कांग्रेस पार्टी के श्याम मनोहर मिश्रा, 1962 में कांग्रेसी नेता बालक राम वैश्य, 1974 में कांग्रेसी नेता चरण सिंह, वर्ष 1980, 85 और 1989 में कांग्रेस पार्टी की प्रेमवती तिवारी और 2012 में कांग्रेस की टिकट पर डॉ. रीता बहुगुणा जोशी जैसे तमाम कांग्रेसी नेताओं ने विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज कर चुके हैं।

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भाजपा को 1991 में मिली थी जीत

लखनऊ कैंट विधानसभा सीट वर्ष 1991 में पहली बार भाजपा के पाले में गई थी। इस सीट से 1991 और 1993 में भाजपा की टिकट पर सतीश भाटिया ने जीत दर्ज की थी। इसके अलावा 1996, 2002 और 2007 में भाजपा के प्रत्याशी सुरेश चंद्र तिवारी ने जीत हासिल की। इसके अलावा 1967 में जनता पार्टी के कृष्णकांत, 1969 में भारतीय क्रांति दल के सच्चिदानंद और 1977 में निर्दलीय उम्मीदवार बीपी अवस्थी ने कैंट सीट से चुनाव में जीत दर्ज किया था।

2007 के बाद वर्ष 2017 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी छोड़ भाजपा में शामिल हुई रीता बहुगुणा जोशी ने एक बार फिर इस सीट से चुनाव में जीत दर्ज की। हालांकि रीता बहुगुणा जोशी को लोकसभा के लिए जब निर्वाचित किया गया तब उन्होंने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। बाद में इस सीट पर उपचुनाव कराया गया और 2019 में हुए उपचुनाव में भाजपा के सुरेश चंद्र तिवारी ने जीत दर्ज की।

ब्राह्मण उम्मीदवारों की हुए है जीत

लखनऊ कैंट विधानसभा सीट पर ब्राह्मण उम्मीदवारों का वर्चस्व रहा है। इस सीट से ब्राह्मण उम्मीदवार बड़ी संख्या में जीते हैं। आपको बता दें कि अब तक इस सीट से 12 बार ब्राह्मण उम्मीदवार चुनाव जीत कर विधानसभा में जा चुके हैं। इसका एक कारण यह भी माना जाता रहा है कि जिस तरह से उत्तर प्रदेश और बिहार को जातिगत राजनीति का गढ़ माना जाता रहा है। उस तरह से लखनऊ कैंट सीट का वोटिंग पैटर्न कभी जातिगत आधार पर नहीं रहा है। आसान शब्दों में कहें तो इस सीट पर जातिगत फैक्टर नजर नहीं आता। इस सीट पर हर जाति वर्ग के मतदाताओं की अच्छी तादात है।

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कई बड़े नेता जता रहे हैं दावेदारी 

अब जब चुनाव नजदीक है ऐसे में लखनऊ कैंट सीट से उम्मीदवारों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। एक तरफ रीता बहुगुणा जोशी अपने बेटे को दावेदार बनाने पर अड़ी हुई हैं वहीं दूसरी तरफ खबर आ रही है कि राजनाथ सिंह भी अपने बेटे नीरज सिंह को चुनावी मैदान में उतारने का मन बना बैठे हैं।

इसके अलावा वर्तमान विधायक सुरेश तिवारी अपनी दावेदारी जता रहे हैं। इन सब से अलग राजनीतिक गलियारों में अब यह भी खबर सामने आने लगी है कि हाल ही में सपा से भाजपा में शामिल हुई मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव को भी भाजपा इस सीट से उम्मीदवार घोषित कर सकती है।

बहरहाल देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में भाजपा किसे अपना उम्मीदवार बनाती है। क्योंकि भाजपा के लिए हमेशा से यह सीट एक सेफ सीट मानी जाती रही है।

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