योगी सरकार ने अपने हलफनामे में कहा कि जहां तक दंगे के आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई का सवाल है, राज्य सरकार उनके खिलाफ पूरी तरह से अलग कानून के मुताबिक सख्त कदम उठा रही है। जमीयत ने राज्य की मशीनरी और उसके अधिकारियों के खिलाफ निराधार आरोप लगाए हैं।
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नई दिल्ली, 22 जून। उत्तर प्रदेश में विवादित संपत्तियों पर बुलडोजर चलाए जाने को लेकर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अहम दलीलें पेश की हैं। योगी सरकार ने बुलडोजर कार्रवाई का बचाव करते हुए सुप्रीम कोर्ट में कहा कि संपत्तियों पर बुलडोजर नियमानुसार चलाए जा रहै हैं, जिसका दंगाइयों के खिलाफ कार्रवाई से कोई संबंध नहीं है।
बतादें कि उत्तर प्रदेश में हाल ही में की गई बुलडोजर कार्रवाई को जमीयत उलमा-ए-हिंद ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। जमीयत की अर्जी के जवाब में यूपी सरकार ने SC में हलफनामे में ये दलीलें दी हैं। योगी सरकार ने कहा कि राज्य में हाल ही में बुलडोजर से संपत्तियां ढहाने का काम प्रक्रिया का पालन करते हुए ही किया गया। ये कार्रवाई किसी भी तरह से दंगों के आरोपी व्यक्तियों से संबंधित नहीं है।
प्रयागराज में कार्रवाई का दंगे से कोई संबंध नहीं
सरकार की ओर से दायर हलफनामे में कहा गया कि दंगाइयों के खिलाफ अलग-अलग कानूनों के मुताबिक कार्रवाई की जा रही है। कानून की उचित प्रक्रिया का पालन करने के बाद 12 जून को प्रयागराज विकास प्राधिकरण अधिनियम की धारा 27 के तहत ही उचित सुनवाई और पर्याप्त अवसर देने के बाद ही अवैध निर्माण को ध्वस्त किया गया था। जिसका दंगे की घटना से कोई संबंध नहीं था।
बुलडोजर कार्रवाई दंगे से पहले शुरू हो गई थी
उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि जमीयत उलमा-ए-हिंद की याचिका में कोई दम नहीं है, इसलिए इसे खारिज किया जाना चाहिए। प्रयागराज में जावेद मोहम्मद के घर को गिराने का उदाहरण देते हुए याचिकाकर्ता को चुनिंदा मामले को उठाने का दोषी ठहराते हुए यूपी सरकार ने कहा कि इस अवैध निर्माण को गिराने की प्रक्रिया दंगों की घटनाओं से बहुत पहले शुरू की गई थी।
तथ्यों से परे जमीयत की याचिका
योगी सरकार ने अपने हलफनामे में कहा कि जहां तक दंगे के आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई का सवाल है, राज्य सरकार उनके खिलाफ पूरी तरह से अलग कानून के मुताबिक सख्त कदम उठा रही है। जमीयत ने राज्य की मशीनरी और उसके अधिकारियों के खिलाफ निराधार आरोप लगाए हैं। उसके आरोप कुछ मीडिया रिपोर्ट पर आधारित हैं। ये तथ्यों से परे हैं। संगठन वो राहत मांग रहा है जिनका कोई कानूनी या तथ्यात्मक आधार नहीं है।