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उत्तराखंड की इस सीट पर जीत हासिल करने वाली पार्टी की प्रदेश में नहीं बनती है सरकार पढ़ें क्या है असल सच्चाई ?

प्रदेश में एक ऐसा विधानसभा सीट है, जिस पर कोई दल दिल से जीतने की इच्छा न रखता हो। आखिर ऐसा क्यों है ? और इसके पीछे की क्या वजह है ? जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर।

By इंडिया वॉइस 

Updated Date

Uttarakhand Assembly Election 2022 :  उत्तराखंड में विधानसभा-2022 का चुनाव हो रहा है। इसमें सभी राजनीतिक दल और उम्मीदवार जीत हासिल करने की इच्छा रखते हैं। शायद ही ऐसा कोई हो जो चुनाव हारने के लिए लड़ता हो, लेकिन प्रदेश में एक ऐसा विधानसभा सीट है, जिस पर कोई दल दिल से जीतने की इच्छा न रखता हो। क्योंकि इस सीट से जुड़ा एक मिथक यहां से जीते हुए पार्टी को सत्ता से दूर कर देती है।

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भाजपा-कांग्रेस को डराती रही हैं यहां की मिथक 

कुमाऊं मंडल में अल्मोड़ा जिले का रानीखेत विधानसभा सीट से जुड़ा मिथक भाजपा-कांग्रेस को डराती रही है। क्योंकि अलग राज्य बनने के बाद यहां से जीतने वाली पार्टी राज्य में सरकार नहीं बना पाई है। राज्य बनने के पहले ऐसा कोई मिथक यहां नहीं रहा है, लेकिन राज्य बनने के बाद ऐसा ही होता आ रहा है। केंद्र की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने नवंबर 2000 को उत्तराखंड को अलग राज्य घोषित किया। यहां के लोगों की दशकों पुरानी इस मांग को केंद्र की भाजपा सरकार ने पूरी की थी, इसलिए सभी मानकर चल रहे थे कि राज्य का पहला चुनाव भाजपा ही जीतेगी।

2002 में हुआ था प्रदेश का पहला विधानसभा चुनाव

प्रदेश का पहला विधानसभा चुनाव फरवरी 2002 में हुआ। रानीखेत विधानसभा सीट से भाजपा के अजय भट्ट ने जीत दर्ज कर ली। पूरे प्रदेश के मतगणना में भाजपा आगे चल रही थी। मतगणना के बीच में ही कांग्रेस के प्रमुख नेता हरीश रावत ने हार स्वीकार कर ली। अधिकांश राजनीतिक विश्लेषक भी खुश थे कि उनका आकलन सही निकल रहा है, लेकिन जब मतगणना का अंतिम नतीजा आया तो सब चौंक गए। कांग्रेस पार्टी ने 36 सीटें जीतकर प्रदेश में सरकार बना ली। यहां से रानीखेत सीट के साथ यह मिथक आगे बढ़ता चला गया।

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उस चुनाव में अजय भट्ट को 10,199 वोट मिले थे। कांग्रेस के पूरन सिंह को 7,897 मत मिले थे। इस तरह रानीखेत सीट पर तब अजय भट्ट ने करीब 2200 वोट से चुनाव जीता था। इसके अगले चुनाव में कांग्रेस से करन माहरा चुनाव लड़े। जबकि भाजपा ने अपने सिटिंग विधायक अजय भट्ट को मैदान में उतारा। बसपा से पूरन सिंह बडवाल के मैदान में उतरने से उस बार यहां मुकाबला त्रिकोणीय हो गया। बसपा के पूरन सिंह 6,736 वोट पाये।

पहाड़ी सीटों पर बसपा का नहीं है कोई खास जनाधार 

कहा जाता है कि पहाड़ी सीटों पर बसपा का कोई खास जनाधार नहीं था। इसके बावजूद पूरन सिंह को सात हजार के करीब वोट मिले थे। कहा जाता है पूरन सिंह कांग्रेस का वोट काटने में कामयाब हुए थे। इसके बावजूद कांग्रेस के करन माहरा भाजपा के अजय भट्ट को 205 वोट से हरा दिया। रानीखेत में कांग्रेस जीती, लेकिन प्रदेश में भाजपा की सरकार बन गई।

पांच साल बाद 2012 में फिर विधानसभा चुनाव हुआ। इस बार भाजपा-कांग्रेस ने अपने पुराने दिग्गज को ही चुनावी मैदान में उतारा। वहीं बसपा से पूरन सिंह ने फिर ताल ठोका। चुनाव 2007 जैसा ही हुआ लेकिन नतीजा उल्टा रहा। इस बसपा के पूरन सिंह ने 9 हजार से ज्यादा वोट पाए थे। भाजपा के अजय भट्ट को 14,089 वोट मिले। कांग्रेस के करण माहरा को 14, 011 मत मिला। इस तरह भाजपा को मात्र 78 वोट से जीत यहां तो मिल गई लेकिन प्रदेश में भाजपा सरकार नहीं बना पाई।

2017 के चुनाव में भाजपा ने रचा था इतिहास

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इस सीट से बन रहे इतिहास ने पिछले चुनाव में फिर से दोहराया। भाजपा-कांग्रेस से पुराने दिग्गज ही मैदान में थे। करण माहरा अपनी पिछली हार का बदला लेने मैदान में उतरे थे। वहीं अजय भट्ट विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता के साथ-साथ पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी बन गए थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के करीब आ गए थे। 2017 के चुनाव में भाजपा ने इतिहास रच दिया था। अभी तक कोई भी पार्टी 40 का आंकड़ा पार नहीं कर पाई थी। भाजपा ने इतिहास रचते हुए 57 सीटें जीत ली।

कांग्रेस 10 पर सिमट गई। कांग्रेस पार्टी से तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत गढ़वाल और कुमाऊं के वोटरों को प्रभावित करने के लिए 2 सीट से लड़े। हरीश रावत स्वयं दोनों सीट हार गए। इस बावजूद प्रदेश में अपना बड़ा कद बना चुके अजय भट्ट को कांग्रेस ने रानीखेत से हरा दिया। जहां पूरे प्रदेश में भाजपा की लहर थी वहीं रानीखेत में पहली बार किसी उम्मीदवार की हार 5,000 के करीब वोटों से हुई। प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए जिस अजय भट्ट ने पार्टी को दो तिहाई बहुमत से जीत दिलाया, वे खुद अपना चुनाव हार गए।

रानीखेत सीट से कोई उम्मीदवार लगातार दो बार नहीं जीत सका 

रानीखेत सीट पर अभी तक कोई उम्मीदवार लगातार दो जीत दर्ज नहीं कर पाया है। यहां के वोटर बारी-बारी से भाजपा-कांग्रेस को मौका देता रहा है। इसका नतीजा यह हुआ है कि प्रदेश में सरकार बनाने वाली पार्टी का उम्मीदवार यहां जीतने में नाकामयाब रहा है। क्योंकि अभी प्रदेश में भी हर चुनाव बाद सत्ता बदलता रहा है।

इस बार के चुनाव में कांग्रेस ने अपने पुराने नेता और सिटिंग विधायक करण माहरा को ही मैदान में उतारा है। भाजपा ने अपना उम्मीदवार बदला है। पार्टी ने इस बार प्रमोद नैनवाल को टिकट दिया है। प्रमोद नैनवाल पिछले चुनाव भाजपा से बगावत कर निर्दलीय लड़ा और 5701 वोट प्राप्त किया था। इस बार पार्टी ने उन्हें टिकट दिया है। अब चुनाव नतीजे में इस यह देखना दिलचस्प होगा कि इतिहास यहां दोहराया जाता है या कोई नया रिकॉर्ड बनता है।

 

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