नई दिल्ली। संसद भवन का उद्घाटन रविवार यानि 28 मई को होने वाला है। ऐसे में कई सवाल खड़े हो रहे थे कि आखिर पीएम मोदी से क्यों इसका उद्घाटन कराया जा रहा है और राष्ट्रपति को क्यों दूर रखा जा रहा है। इसी को लेकर एक याचिका दाखिल की गई थी। इस याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। इसपर सुनवाई से साफ इंकार कर दिया है।
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याचिका को खारिज करते हुए कहा है कि हम जानते हैं कि यह याचिका किस कारणवश दाखिल की गई है। ऐसी याचिकाओं को देखना सुप्रीम कोर्ट का काम नहीं है । कोर्ट ने पूछा कि इस याचिका से किसका फायदा होगा ? इसपर याचिकाकर्ता सटीक जवाब नहीं दे पाया।
बता दें कि याचिका में शीर्ष अदालत से नए भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति के कराने का निर्देश लोकसभा सचिवालय को देने की मांग की गई थी। इस याचिका में साफतौर पर कहा गया था कि लोकसभा सचिवालय का बयान और लोकसभा के महासचिव का उद्घाटन समारोह के लिए जारी निमंत्रण भारतीय संविधान का उल्लघंन है।
कौन है वो याचिकाकर्ता?
जिसने याचिका दाखिल की है , उसका नाम सी आर जयासुकिन है। जयासुकिन तमिलनाडु का रहने वाला है। यह पहली बार नहीं है जब उनकी तरफ से पीआईएल दाखिल की गई है। वो इससे पहले भी कई याचिका दाखिल कर चुके हैं। उनकी इस याचिका में कहा गया कि देश के संवैधानिक प्रमुख होने के नाते राष्ट्रपति ही प्रधानमंत्री की नियुक्ति करते हैं और सभी बड़े फैसले राष्ट्रपति के नाम पर ही लिए जाते हैं।
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विपक्षी दलों ने किया बायकॉट
हर जगह बस नए संसद भवन के उद्घाटन का मुद्दा उठ रहा है। अभी तक 19 विपक्षी पार्टी ऐसी हैं जिन्होंने इस उद्घाटन समारोह का बहिष्कार कर दिया है। उनका साफतौर पर कहना है कि आखिर पीएम मोदी क्यों उद्घाटन कर रहे हैं। देश का पहला नागरिक राष्ट्रपति होता है, उनसे क्यों नहीं संसद भवन का उद्घाटन करवाया जा रहा है।
क्या दी गई थी दलील?
याचिकाकर्ता ने अपने दलील में कहा है कि अनुच्छेद 85 के मुताबिक राष्ट्रपति ही संसद का सत्र बुलाते हैं और अनुच्छेद 87 के तहत उनका सदन में पहले अभिभाषण होता है। जिसमें वह दोनों सदनों को संबोधित करते हैं। संसद कोई भी विधायक को पारित करने के लिए भी राष्ट्रपति की मंजूरी चाहिए होती है और इसके बाद ही कानून बनता है। इसीलिए नए संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति से ही करवाना चाहिए।
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